भ्रष्टाचार के हमाम में सभी नंगे हो चुके हैं-जस्टिस कर्णन
आईएनएन/नई दिल्ली, @Infodeaofficial;
कुछ माह पूर्व सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों जस्टिस चेलमेश्वर, रंजन गंगोई, एमबी लोकुर और जोसफ कुरियन द्वारा न्यायपालिका की परंपरा तोड़ कर प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा के विरुद्ध की गई प्रेस कान्फ्रेस पर बोलते हुए न्यायमूर्ति कर्णन देश की मौजूदा न्याय व्यवस्था पर सवालिया निशान लगाया है।
हालांकि इन्फोेडिया के साथ खास बातचीत में उन्होंने यह भी कहा कि न्यायमूर्ति दीपक मिश्रा को कटघरे में खड़ा करने वाले ये चारों न्यायाधीश उस सात जजों वाली पीठ के हिस्सा थे जिन्होंने उनके खिलाफ आदेश जारी किया था। उन्होंने कहा कि किसी पर आरोप लगाने से पहले इन्हें खुद को भी तो पाक-साफ साबित करना चाहिए।
बातचीत के दौरान उन्होंने स्पष्ट कहा कि न्यायपालिका में भी कम भ्रष्टाचार नहीं है। उन्होंने पूरी की पूरी व्यवस्था पर प्रश्नचिन्ह लगाते हुए कहा कि न्यायपालिका हो, कार्यपालिका हो या या फिर विधायिका आज किसी भी क्षेत्र में ईमानदारी से काम करने वाले उंगलियों पर गिने जा सकते हैं। आलम यह है कि आज ईमानदारी से काम करने वालों का बुरा हाल है।
हां ईमानदारी का मुखौटा पहनकर बेईमानी करने वालों की आजकल चांदी है। उन्होंने खेद प्रकट करते हुए कहा कि ईमानदारी से काम करने वालों का हाल आप खुद जाकर देख लीजिए। इनमें कई लोग तो ऐसे मिलेंगे जिन्हें फोन पर आए दिन धमकियां मिलती रहते हैं तथा कई अब इस दुनिया में ही नहीं हैं। न्यायाधीश कर्णन ने बताया उन्होंने न्यायपालिका में फैले भ्रष्टाचार को काफी नजदीक से देखा है और जब उन्होंने उसके खिलाफ आवाज उठाई तो उन्हें बाहर का रास्ता दिखा दिया गया।
अपनी पीड़ा प्रकट करते हुए कहा कि न्यायपालिका में व्याप्त भ्रष्ट्राचार के बारे में उन्होंने आवाज उठाई तो परेशान करने के लिए पहले उनका स्थानांतरण मद्रास उच्च न्यायालय से कोलकाता उच्च न्यायालय कर दिया गया। इससे भी जी नहीं भर तो उन्हें उनके ही अधिकारों से वंचित कर दिया गया।
भ्रष्टाचार के विरुद्ध राजनैतिक दलों की स्थिति के बारे में पूछने पर उन्होंने कहा कि इस भ्रष्टाचार के हमाम में आजकल सभी नंगे हैं फिर चाहे वह न्यायपालिका हो अथवा विधायिका।
उन्होंने कहा कि उन्होंने प्रधानमंत्री को भेजे गए कुछ दस्तावेजों के साथ 20 भ्रष्ट न्यायाधीशों की एक सूची भी उनके पास भेजी थी पर सब कुछ रद्दी की टोकरी मे डाल दिया गया। लाख आवाज उठाने के बावजूद इस मुद्दे पर किसी राजनीतिक दल ने भी उनका कोई सहयोग नहीं किया। न्यायपालिका ने भी इस पर संज्ञान लेने के बजाय उन्हें ही दूध की मक्खी की तरह निकालकर बाहर फेंक दिया।
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