भरत संगीत देव, आईएनएन/नई दिल्ली, @infodeaofficial
पेयजल एवं स्वच्छता मंत्रालय ने हाल ही में राजधानी दिल्ली में ‘स्वच्छ सर्वेक्षण ग्रामीण 2018 (SSG 2018)’ का शुभारंभ किया। इसके तहत सभी ज़िलों में 1 से 31 अगस्त, 2018 तक एक स्वतंत्र सर्वेक्षण एजेंसी द्वारा सर्वेक्षण किया जाएगा और इसके नतीजों की घोषणा मात्रात्मक एवं गुणात्मक स्वच्छता के पैमाने के आधार पर मूल्यांकन कर सभी ज़िलों और राज्यों की रैंकिंग की जाएगी।
‘एसएसजी 2018’ का उद्देश्य ‘एसबीएम-जी’ (स्वच्छ भारत मिशन-ग्रामीण) से जुड़े महत्त्वपूर्ण मात्रात्मक एवं गुणात्मक पैमाने के प्रदर्शन के आधार पर राज्यों और ज़िलों की रैंकिंग करना है। इस प्रक्रिया के तहत देशव्यापी संचार अभियान के ज़रिये ग्रामीण समुदायों को अपने आसपास के क्षेत्रों में स्वच्छता एवं साफ-सफाई में बेहतरी लाने के कार्य से जोड़ा जाएगा।
स्वच्छ सर्वेक्षण ग्रामीण के हिस्से के रूप में देश भर के 698 ज़िलों के 6980 गाँवों को कवर किया जाएगा। सर्वेक्षण के लिये इन गाँवों के कुल 34,000 सार्वजनिक स्थानों जैसे कि स्कूलों, आँगनबाड़ी केंद्रों, सार्वजनिक स्वास्थ्य केंद्रों, हाट/बाज़ार/धार्मिक स्थानों का मुआयना किया जाएगा।ग्रामीणों से सीधी बातचीत के साथ-साथ ऑनलाइन फीडबैक के ज़रिये स्वच्छ भारत मिशन (MBM) से जुड़े मुद्दों पर 50 लाख से भी अधिक नागरिकों के फीडबैक को इकट्ठा किया जायेगा।
जब स्वच्छ भारत मिशन को भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के द्वारा राष्ट्रपिता के सपनो को साकार करने के बास्ते 2 अक्टूबर 2014 में लॉन्च किया गया था, तो अनुमानतः 550 मिलियन भारतीय खुले में शौच के लिये मजबूर थे जिससे देश का स्वच्छता संकेतक दुनिया में सबसे बुरी स्थिति में था। अक्टूबर 2014 से लेकर अब तक स्वच्छ भारत मिशन (ग्रामीण) के तहत ग्रामीण भारत में 7.7 करोड़ से भी अधिक शौचालयों का निर्माण किया गया है।
वर्तमान में सभी राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों में वर्ष 2017-18 में किसी अन्य पक्ष (थर्डपार्टी) द्वारा कराए गए एक स्वतंत्र सर्वेक्षण से इनके उपयोग का आँकड़ा 93 प्रतिशत दर्ज किया गया है| लगभग 4 लाख गाँवों, 400 से भी अधिक ज़िलों और 19 राज्यों तथा केंद्रशासित प्रदेशों ने खुद को ओडीएफ घोषित कर दिया है यानी खुले में शौच मुक्त घोषित किया है।
ज्ञात हो की खुले में शौच मुक्त तब किया जाता है जब कोई गांव वार्ड या पंचायत ,जिला ,राज्य में 75% से 100 % की आबादी के पास खुद का शौचालय हो ,कोई लोग घर से बहार निकल कर खुले में शौचालय नहीं जाता हो ,बहार गंदगी नहीं फैलता हो ऐसा गांव ,जिला,राज्य को ओडीएफ होने का अधिकार है।
हालाँकि, सरकार का अपना आँकड़ा बताता है कि यह प्रगति देश भर में समान नहीं है क्योंकि बिहार, उत्तर प्रदेश और ओडिशा जैसे राज्यों में शौचालयों की पहुँच और उपलब्धता अभी भी एक प्रमुख चिंता का विषय है। सूत्रों की माने तो उससे भी बड़ी चिंता का विषय ये है कि बिहार जैसे राज्य में सरकार ने पहले गाइडलाइन दिया की जो शौचालय निर्माण कार्य करने के लिए 12 हजार रुपये की अनुदान राशि दिया जायेगा जिसमे एक शौचालय ,पानी नल कनेक्शन युक्त, साथ में दो टंकी वाला सोख्ता बनाना जरुरी है।
अगर किसी ने एक ही टंकी वाला शौचालय निर्माण किया है तो उनको अनुदान राशि 11हजार रुपये दिया जा सकता है फिर क्या लोगो ने बना लिया अब शासन के लोग कहता है कि 2 टंकी वाला शौचालय निर्माण करो तभी जाके अनुदान की राशि 12 हजार रुपये गरीबो को मिल पायेगा। अब जरा विचार कीजिये की गांव के गरीब परिवार के लोग महाजन से कर्ज लेके ज़मीन का रकवा कम होने के कारण 1 टंकी वाला शौचालय निर्माण कर दिया तो उसको अनुदान राशि नहीं दिया जायेगा क्योंकि ये 12 हजार रुपये दो टंकी वाले शौचालय निर्माण पर दे है।
अब क्या करे ये गरीब लोग ,कैसे करेगा महात्मा गांधी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सपनो को साकार क्योंकि अनुदान राशि एक टंकी पर कतई नहीं जाने को है गरीब परिवारो के बैंक आकाउंट में तैयार । बरहाल बहुतेरे सवाल है फिर भी नेक सोच की खुले में शौच से मुक्ति का अभियान एक बड़ी चुनौती है| इसका अशिक्षा और गरीबी से गहरा रिश्ता है| नियम शंशोधन, सार्थक शिक्षा और गरीबी दूर किये बिना स्वच्छ भारत का सपना साकार नहीं हो सकता|
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