रेल यात्रा में देरी होने पर मुफ्त पानी व पेपर मुहैय्या कराएगी आईआरसीटीसी

अंकिता.पी.दोशी, आईएनएन/चेन्नई, @infodeaofficial
रेल यात्रा के दौरान अगर आपकी ट्रेन दो घंटे से ज्यादा देर चल रही हो तो आप पेंट्रीकार से एक लीटर पानी की बोतल मुफ्त पा सकते हैं। जी हां, यात्रियों की यात्रा को सुखद बनाने के लिए रेलवे बोर्ड ने ऐसी कई योजनाओं को शुरू करने का विचार किया है।

इस बाबत राजस्थान पत्रिका चेन्नई में छपी खबर में दक्षिण रेलवे की मुख्य वाणिज्य अधिकारी प्रियम्बदा विश्वनाथन ने बताया कि यह मुफ्त सुविधाएं फिल्हाल शताब्दि, दुरंतो और राजधानी जैसे ट्रेनों में दी जाती है।

इन ट्रेनों के परिचालन में अगर दो घंटे से ज्यादा की देरी होती है तो कैटरिंग कर्मचारियों को यात्रियों को दूसरी बोतल मुहैय्या कराने की हिदायत दी गई है। प्रिमियम ट्रेनों में यात्रियों को बिना किसी भुगतान के पीने का पानी और अखबार दिया जाएगा।

इस संबंध में रेलवे बोर्ड ने सभी जोन के मुख्य वाणिज्य अधिकारियों और इंडियन रेलवे कैटरिंग एंड टुरिज्म कारपोरेशन (आईआरसीटीसी) के प्रबंध निदेशक सह चेयरमैन को दिशा निर्देश जारी किया जा चुका है। विश्वनाथन का कहना है कि रेलेवे बोर्ड के आदेशानुसार ट्रेन के सफर में जो यात्री राजधानी और दुरंतो जैसे ट्रेन में 20 घंटे से ज्यादा सफर कर रहे हैं उन्हें भी दूसरी रेल नीर की बोतल मुहैय्या कराई जाएगी।

सूत्रों का कहना है कि आईआरसीटीसी को हमेशा से रेल नीर के बोतलों की कमी रहती है। वहीं अगर रेल नीर उपलब्ध नहीं है तो यह मुख्य वाणिज्य प्रबंधक की जिम्मेदारी है कि वह यात्रियों को नीजी कंपनी का वाटर बोतल मुहैय्या कराएं।

समय से चले ट्रेन तो परेशानी खत्म

अगर ट्रेन समय से चलने लगे तो ये सारी समस्या ही नहीं रहेगी। ट्रेन के देर होने से कइयों को विभिन्न प्रकार की समस्याओं का सामना करना पड़ता है। जैसे ट्रेन की देरी की वजह से दूसरी ट्रेन व फ्लाइट छूटना | इन मुफ्त सुविधाओं के बजाय रेलवे को, सुविधाओं में सूधार लाने पर विशेष ध्यान देने की जरूरत है।
रिंकु संकलेचा, गृहणी

सही शुरूआत और बेहतरी की जरूरतयात्रा में देरी होने पर मुफ्त पानी की सुविधा रेलवे की तरफ से एक सही शुरूआत है पर अभी और कई सूधारों पर भी विचार करने की जरूरत है। जब हम विमान से यात्रा करते हैं तो यात्रा में देरी होने पर विमान कंपनी अपनी ओर से यात्रियों को कई सारी सुविधाएं मुहैय्या कराती हैं, रेलवे को भी ऐसा करने की जरूरत है।
सतीश कुमार श्रीवास्तव, प्रोफेसर

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