बिहार की राजनीति में कांग्रेस बिल्कुल अलग रंग रूप में

आईएनएन/पटना,  @Infodeaofficial

बिहार की राजनीति में कांग्रेस बिल्कुल अलग रंग रूप में है। अखिलेश सिंह को अध्यक्ष पद से हटाकर कांग्रेस ने संकेत दे दिए हैं कि पार्टी अब राजद की छाया से बाहर निकलना चाहती है। कांग्रेस ने दलित अध्यक्ष पर दांव लगाया है। सपना 2015 की तरह 27 सीट या उससे ज्यादा जीतने का है। तब अशोक चौधरी कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष थे। बाद में मदन मोहन झा और अखिलेश सिंह जैसे नेताओं ने कांग्रेस की कमान संभाली। अब एक।बार फिर दलित नेतृत्व के हाथ में कांग्रेस है।

राजेश कुमार राम के पिता दिलेश्वर राम भी विधायक रहे हैं। खुद राजेश 2 बार से विधायक हैं। बिहार कांग्रेस में जब भक्त चरण दास प्रभारी थे तब उन्होंने राजेश राम का नाम अध्यक्ष के लिए भेजा था। लेकिन लालू यादव की सहमति से अखिलेश सिंह अध्यक्ष बने। अब अध्यक्ष पद से हटने के बाद अखिलेश सिंह की स्थिति बहुत कमजोर हो जाएगी। कांग्रेस में नया गुट हावी होगा। अब तक पूरा कंट्रोल अखिलेश सिंह के हाथ में था। अगर परिस्थितियां अनुकूल नहीं हुई तो वो पाला भी बदल सकते हैं।

वैसे अखिलेश सिंह लालू यादव के करीबी हैं। कांग्रेस में उनको ठिकाने लगाने के लिए पप्पू यादव की लॉबी लगी हुई थी। पप्पू, कन्हैया कुमार जैसे नेता एक पिच पर हैं। कन्हैया की यात्रा के पहले दिन अखिलेश सिंह दिखे थे। कांग्रेस के पास बिहार में अभी 17 विधायक हैं। तीन सांसद बिहार में अपने हैं। एक पप्पू यादव । कांग्रेस के नए प्रदेश प्रभारी तीन बार बिहार गए लेकिन।लालू या तेजस्वी से नहीं मिले। उल्टे गठबंधन को कमजोर करने वाला बयान दिया।

अब इसमें क्या रणनीति है वो कांग्रेस जाने ।लेकिन कांग्रेस दलितों पर फोकस करने जा रही है। दो बार राहुल गांधी बिहार जाकर दलित नेताओं को लेकर आयोजित कार्यक्रम में शामिल हो चुके हैं। अब दलित अध्यक्ष। लालू परिवार को कांग्रेस का ये कार्ड पसंद आ सकता है। क्योंकि अभी दलितों पर nda मजबूत है। 5% दुसाध/ पासवान, 3 % मांझी, 1 फीसदी पासी वोट के नेता nda के साथ हैं। दलितों में राम बिरादरी की संख्या 4% के आसपास है। ऐसे में राजद के शिवचंद्र राम, बीजेपी के जनक राम अभी बड़े नेता हैं। पहले रमई राम इस बिरादरी के बड़े नेता थे।

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