श्रेया आईएनएन अमृतसर@infodeaofficial हुक्का बार का हुक्का पानी बंद करने की तैयारी में पंजाब सरकार यह जानते हुए भी कि नशा नाश का पर्याय बनता जा रहा है आज यह तथाकथित समाज में स्टेटस का परिचायक बन गया है। पार्टी से लेकर मीटिंग तक, पर्व से लेकर समारोह तक में अगर शराब और सिगरेट जैसी नशीली चीजों का इंतजाम न हो तो मौजूदा दौर का मध्यम एवं उच्च वर्ग इसे फीका करार देने में थोड़ा भी संकोच नहीं करता। इसी तरह एक नशा है जो कभी शानोशौकत का पर्याय माना जाता था। दरअसल इसे सदियों पहले मुगल बादशाह हमारे देश में लेकर आए। समय के साथ यह दरबार से निकलकर बंगलों में पहुंचा और धीरे-धीरे इसने आम आदमी को भी अपनी ओर आकर्षित करना शुरू कर दिया। वैसे तो मौजूदा दौर में यह देश भर में अपनी पहचान बना चुका है लेकिन पांच निदयों से घिरे देश के मशहूर पंचाब प्रांत में ये काफी प्रचलित है। यहां के लोगों में हुक्काप्रियता का यह हाल है कि लोगों को आसानी से हुक्का मुहैय्या कराने के लिए जगह-जगह हुक्का बार खुले हुए हैं। आलम यह है कि किसी जमाने में अपने खान-पान और रहन-सहन के लिए पहचाने जाना वाला यह राज्य आज तस्करी और नशे को लेकर जाना जाता है। पिछले कुछ सालों में इसने यहां के युवाओं को इस कदर अपने जाल में जकड़ लिया है कि पूरा प्रदेश इस परेशानी से पार पाने के लिए तड़प रहा है। अगर यह कहें कि यहां के युवाओं पर चोट करके इसने इस राज्य की कमर तोड़कर रख दी है तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी। हालांकि यहां के लोगों को नशे से निजात दिलाने के लिए पंजाब के मौजूदा मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने सिगरेट एवं तंबाकू उत्पाद अधिनियम 2003 में संशोधन करते हुए 19 मार्च को राजधानी चंडीगढ़ में सभी हुक्का बार बन्द करने की घोषणा कर दी। निसंदेह इस फैसले का मकसद राज्य में हुक्का के बढ़ रहे प्रयोग पर नकेल कसना है ताकि किसी भी देश, प्रांत एवं समाज के रीढ़ की हड्डी माने जाने वाले नौजवानों में नशे के दलदल में फंसने से रोका जा सके। संभावना है कि सरकार के इस फैसले के के बाद इसपर काफी हद तक नियंत्रण पाया जा सकेगा।
नियम बनते हैं और टूट जाते हैं
नशा उन्मूलन को लेकर केंद्र से लेकर राज्य सरकार तक कितनी गंभीर है यह किसी से छिपा नहीं है। दरअसल व्यक्तिगत स्वास्थ्य से लेकर समाज तक के लिए हानिकारक होने के बावजूद सरकारी खजाना भरने में इसकी महत्वपूर्ण भूमिका होती है। इस मामले में सरकार के दोहरे रवैये का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि सरकार आबकारी विभाग के माध्यम से शराब के ठेके भी चलवाती है और नशा उन्मूलन कार्यक्रम चलाकर लोगों को नशे की लत से बाहर निकालने का ढोंग भी करती है। दरअसल यह सरकार के ढुलमुल रवैये का ही नतीजा है कि तमाम नियम और कानून होने के बावजूद यहां नशे की तस्करी अपने चरम पर है। चुनाव के दौरान नेता मंच से झूठे वादे देते हैं। नशे के खिलाफ कड़ी से कड़ी कार्रवाई करने का आश्वासन देते हैं और कुर्सी मिलते ही सबकुछ भूल जाते हैं। चुनाव के दौरान चार हफ्तों में नशे को जड़ से से खतम करने की सौगंध खाने वाले लोग चुनाव के बाद बरसती मेढक की तरह बिल में घुसे पड़े हैं। इधर से उधर ठोकरें खाने वाली बेचारी जनता का हाल यह है कि वह हर पांच साल बाद जुमलों के चक्कर में फंसकर अपने आप को ठगा सा महसूस करती है। उल्लेखनीय है कि नशा उन्मूलने के लिए नियम तो हैं लेकिन तस्करी के गोरखधंधे में आम आदमी से लेकर नेता तक इतनी गहराई से संलिप्त हैं कि नियम बनने के बावजूद टूट जाते हैं।
कानून को कठोरता से लागू करना जरूरी
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