बिहार में डिग्रीधारकों पर भारी पड़े डिप्लोमाधारी
केवल डिप्लोमा धारक ही कर सकते हैं बीएसपीएचसीएल में जेई के लिए आवेदन
राजीव रंजन शर्मा, आईएनएन/पटना, @ranjanrajeev191
रीतिकाल के मशहूर कवि गिरिधर कविराय ने अठारहवीं शताब्दी में जब गुण की सराहना करते हुए लिखा होगा कि गुन के गाहक सहस नर, बिनगुन लहै न कोय तो सोचा भी नहीं होगा कि विकास बाबू की मौजूदा बिहार सरकार एक दिन उनकी इस उक्ति को गलत साबित करे या ना करे लेकिन उल्टा जरूर साबित कर देगी।
गौरतलब है कि देश का प्रमुख राज्य बिहार इन दिनों बिहार स्टेट पॉवर होल्डिंग कंपनी लिमिटेड (बीएसपीएचसीएल) द्वारा निकाले गए अवर अभियंता के विज्ञापन को लेकर पूरे देश में चर्चा का विषय बना हुआ है। दरअसल दिनांक 7 जून 2018 को प्रकाशित इस विज्ञापन, विज्ञापन संख्या 6/2018 एवं 7/2018 में इंजीनियरिंग के डिग्री धारकों से अधिक प्रमुखता डिप्लोमा धारकों को दी गई है। विज्ञापन में दी गई शर्तों के अनुसार बिजली विभाग में अवर अभियंता पद के लिए केवल डिप्लोमाधारी ही आवेदन कर सकते हैं। जिन लोगों ने अभियांत्रिकी में स्नातक की उपाधि हासिल कर रखी है वे इस पद के लिए आवेदन ही नहीं कर सकते।
एक जमाना जब लोग कहते नहीं थकते थे कि पढ़ोगे-लिखोगे बनोगे नवाब, खेलोगे-कूदोगे तो होगे खराब। लेकिन बदलते दौर में तो जैसे इस उक्ति के मायने ही बदल गए हैं। अब तो लोग यहां तक कहने लगे हैं कि खेलोगे-कूदोगे बनोगे नवाब, करके इंजीनियरिंग पछताओगे आप। एक समय था जब लोग शान से कहते थे कि उनका बेटा इंजीनियरिंग कर रहा है और आज आलम यह है कि अभिभावक यह बताने में भी संकोच करते हैं कि उनका लड़का इंजीनियरिंग कर रहा है।
अपना राज्य छोड़ दूसरे प्रदेशों में मोटी रकम खर्च करके इंजीनियरिंग किए हुए लाखों युवा रोजगार की तलाश में दर-दर भटक रहे हैं। हालत यह है कि लाखों खर्च करने के बावजूद आज ये डिग्री धारक निजी कंपनियों में 8-10 हजार रुपए की नौकरी कर रहे हैं। जिन लोगों ने शैक्षणिक ऋण लेकर अपनी पढ़ाई की है उनकी स्थिति तो और भी खराब है। ऐसे में बीएसपीएचसीएल द्वारा अवर अभियंता के पद के लिए निकाला गया यह विज्ञापन इन डिग्रीधारकों के जख्मों पर नमक छिड़कने जैसा है। इन डिग्रीधारकों का कहना है कि निजी क्षेत्र में तो पहले से ही बुरा हाल है अगर सरकार ने भी अपना दरवाजा बंद कर लिया तो वे कहां जाएंगे। उनकी शिकायत है कि वोट की राजनीति के चलते सरकार उनके साथ सौतेला व्यवहार कर रही है।
उल्लेखनी है कि इस बार बीएसपीएचसीएल ने बिना पूर्व सूचना के भर्ती के नियमों में बदलाव करते हुए बी.टेक धारकों को इस पद के लिए अयोग्य घोषित कर दिया। नियमों में इस आकस्मिक परिवर्तन के चलते भारी-भरकम फीस तथा अन्य खर्चे वहन करके शहरों में रहकर प्रतियोगी परीक्षाओं की कोचिंग ले रहे हजारों युवक भी सदमे में हैं। उनका कहना है कि एक तो यहां पहले से ही भारी बेरोजगारी है, ऊपर से भर्ती नियमों में जारी आकस्मिक संशोधन हर तरह से परेशान कर रखा है। बेरोजगारी का तमगा लेकर घर गए तो घरवाले ही नहीं गांव वालों के भी ताने सुनो और नौकरी का यह हाल है कि उसके नियमों में आए दिन बदलाव किए जा रहे हैं।
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महंगे कोचिंग ले रहे अभ्यर्थियों को लगा कि उनके उपर बेरोजगारी का लगा काला धब्बा अब छुटने वाला नहीं है। हालांकि इस मुद्दे को लेकर बिहार से लेकर दिल्ली तक में बवाल मचना शुरू हो गया है। बीई एवं बी.टेक. डिग्रीधारकों ने बिहार सरकार से अपने हक की मांग करते हुए विरोध-प्रदर्शन करना शुरू कर दिया है। दिल्ली के बिहार भवन के सामने भी इनलोगों ने जमकर नारेबाजी की और सरकार से इन नियम में पुनः संशोधन करते हुए डिग्री धारकों को भी आवेदन करने का अधिकार प्रदान करने की मांग की।
डिग्रीधारकों की इस मांग को मजबूती प्रदान करने के लिए मधेपुरा सांसद राजेश रंजन उर्फ पप्पू यादव ने भी बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को पत्र लिखकर इस जायज मांग पर ध्यान देने के लिए कहा है। गोरतलब है कि खुद मुख्यमंत्री भी बी.टेक डिग्री होल्डर हैं। डिग्री धारकों का कहना है कि जब तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, पंजाब आदि राज्यों में वे इस पद के लिए आवेदन कर सकते हैं तो बिहार में क्यों नहीं? आखिर बिहार सरकार ने उन्हें अचानक अयोग्य क्यों करार दिया? हालांकि सरकार भी यह जानती है कि श्रेष्ठ एवं काबिल उम्मीदवार के चयन के लिए ही प्रदेश से लेकर राष्ट्रीय स्तर पर प्रतियोगी परीक्षाओं का आयोजन किया जाता। फिर बिहार में इस तरह का दोहरा मापदंड क्यों अपनाया जा रहा है?
जब डिग्रीधारकों ने इस मसले पर दिल्ली स्थित बिहार भवन में कार्यरत एक आइएएस अधिकारी से बात की तो उन्होंने बताया कि सरकार ने इस बार डिप्लोमा धारकों को अवसर देने के लिए यह निर्णय लिया है तथा इसी के चलते बी.टेक. धारकों को आवेदन के अधिकार से वंचित कर दिया गया है। हालांकि प्रदर्शनकारी डिग्रीधारक इस जवाब से सहमत नहीं हैं और उनका कहना है कि जिस तरह से बिहार सरकार ने शिक्षकों के स्थान पर शिक्षामित्रों की बहाली करके शिक्षा व्यवस्था का बेड़ागर्त किया वहीं हाल वह बिजली विभाग का भी करना चाहती है।
राज्य में बेहतर शिक्षण संस्थान के आभाव में हर साल लाखो युवाओ को बहार के राज्यों में उच्चा शिक्षा के लिए बहार के राज्यों का रुख करना पड़ता है. पढाई खतम करने के बाद हम जैसे युवा यही चाहते है की हमे अपने राज्य में घर के पास नौकरी मिल जाए. क्या अधिक योग्यता रख किसी निचले पद के लिए आवेदन देना गुनाह है. यदि बेरोजगारी के इस दौर में हमारे पास बेहतर विकल्प होते तो ऐसी नौबत ही नहीं आती.
यदि बड़ी डिग्री लेकर छोटी नौकरी के लिए आवेदन नहीं किया जा सकता तो सरकार बड़ी डिग्री होल्डरों के लिए भी रोजगार के अवसर पैदा करना चाहिए। इंजीयरिंग के डिग्रीधारकों को अवर अभियंता के पद के लिए आवेदन करने से रोकना सरासर अन्याय है। सरकार के इस बेतुके फरमान से जहाँ एक तरफ अयोग्यता को बढ़ावा मिलेगा वहीं पढ़े लिखे बेरोजगार युवको में हताशा और निराशा का भाव पैदा होगा। इसमे कोई संदेह नहीं कि डिग्री धारकों को दरकिनार करके इंजीनियर के पद के लिए डिप्लोमा धारकों को तरजीह देना बेवकुफाना सरकारी निर्णय है।
इस मामले मे मधेपुरा से जन अधिकार पार्टी के सांसद पप्पू यादव ने इसके लिए बिहार के मतदाताओं को ही कटघरे में खड़ा करते हुए कहा कि यहाँ के लोगों ने चुनाव ही गलत प्रतिनिधि का किया है। उन्होंने कहा कि मौजूदा दौर में लोगों को सही एवं ईमानदार जनप्रतिनिधि चुनना भी नहीं आता। दरअसल ये लोग अपने किए की सजा भुगत रहे हैं। बबूल का पेड़ लगाएंगे तो आम खाने के लिए कहाँ से मिलेगा।
जूनियर इंजीनियर के पद के लिए डिप्लोमा होल्डर की योग्यता रखना इसपर फैसला काफी सोच विचार के बाद लिया गया है. कई मामलो में देखा गया है बड़ी डिग्री वाले सरकारी नौकरी के मोह में रोजगार तो पा लेते है पर काम करने में आना कानि करते है. अब पीएचडी की डिग्री रखने वालो को हम पेओन की नौकरी तो नहीं दे सकते
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