नेत्रहीनो के लिए नेत्रहीन इंजीनियर का अनूठा प्रयास

रीतेश रंजन/आईएनएन/चेन्नई, @royret

हम दूसरों से लाख कहें कि ‘मैं तुम्हारा दर्द समझ सकता हूं’ लेकिन जब तक हम खुद उस स्थिति से नहीं गुजर जाते, हमें उस दर्द का सही एहसास नहीं हो सकता, क्योंकि ‘जाके पांव न फटे बेवाई, ते का समझें पीर पराई’।

कुछ ऐसी ही कहानी दिल्ली के डॉ. टी. के. बंसल का है, जो पहले देख सकते थे, लेकिन रिटिटिस पिगमेंटोसा (आरपी) के कारण मात्र 30 साल की अवस्था में उनके आँखों की रोशनी पूरी तरह से चली गई दी। इसके बाद आईआईटी जैसे संस्थान से पढ़ाई कर, प्रोफ़ेसर पद पर सेवा दे चुके डॉ. बंसल को आँख खोने के साथ-साथ अपनी नौकरी से भी हाथ धोना पड़ा।

नौकरी जाने के बाद जब जगह-जगह, तरह-तरह की समस्याओं से जूझना पड़ा, तब उन्हें यह समझ में आया कि विज्ञान के क्षेत्र में पढ़ाई और काम करने के लिए देश में सुविधाओ की काफी कमी है, खास तौर से तब जब आपके पास, आपकी आँखें न हों। क्योंकि हर जगह आपको ऑनलाइन, ऐसी किताबें नहीं मिल पाएंगी, जो पूरी तरह से आपके विषय से संबंधित हों या जिनके माध्यम से आप अपने खोज संबंधी जानकारी को सही ढंग से समझ सकें।

उदाहरण के तौर पर गणित के हिसाब में लगाए गए ऋण के चिन्ह को अक्सर कोई सॉफ्टवेयर माइनस की जगह डैस पढ़ने की ग़लती कर बैठता है। इस तरफ की गलतियां केवल गणित में ही नहीं होतीं, बल्कि भौतिक और रसायन विज्ञान के इक्वेशन में भी इस तरह के कमियों की भरमार के चलते नेत्रहीन विद्यार्थियों को विज्ञान की पढ़ाई करने में काफी कठिनाई होती है। इतना ही नहीं नेत्रहीन विद्यार्थियों के लिए मददगार साबित होने वाली विज्ञान और गणित संबंधी विषयों के हिंदी माध्यम की किताबों का भी पर्याप्त अभाव है।

दरअसल नेत्रहीन बच्चों की इन चुनौतियों के समाधान में लगे डॉ बंसल ने नौकरी जाने के बाद बंसल ट्यूटोरियल नाम से कंपनी शुरु की और युवाओं को पढ़ाने लगे। हालांकि 2018 में उन्होंने यह कंपनी दूसरे को बेच दी और तन मन धन से नेत्रहीन लोगों की पढ़ाई और भलाई के लिए काम में लग गए। वर्तमान में वे ब्लाइंड टू विजनरी नामक संस्था चला रहे हैं, और अब तक उन्होंने 30 से अधिक विज्ञान की ऐसी किताबें तैयार कर रखी हैं, जो त्रुटिहीन होने के साथ-साथ ऑनलाइन उपलब्ध हैं।

गौरतलब है कि कक्षा 6 से 12 तक के लिए तैयार इन पुस्तकों में से 20 पुस्तकें केवल दसवीं से लेकर बारहवीं तक के विद्यार्थियों के लिए तैयार की गई हैं। इसके अलावा नेत्रहीन बच्चों को वे आईआईटी व अन्य तकनीकी शिक्षण संस्थानों की तैयारी भी कराते हैं। उन्होंने बताया कि नेत्रहीनों के लिए हिंदी माध्यम में विज्ञान की त्रुटिहीन पुस्तक बनाने के साथ साथ वे आध्यात्मिक पुस्तकों पर भी काम करना चाहते हैं।

गौरतलब है कि वे एक शोधार्थी भी हैं, और नेत्रहीनों के लिए कुछ ऐसे उत्पाद बनाने का प्रयास कर रहे हैं, जो सस्ता होने के साथ-साथ नेत्रहीनों के रोजमर्रा की जिंदगी के लिए काफ़ी लाभकारी भी सिद्ध हो। उन्होने अपने वैज्ञानिक दिमाग का इस्तेमाल कर के एक ऐसा केन स्टिक तैयार किया है जिसे खुर स्केट की बजाय रोल किया जा सकता है।

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