अभी तो नापी है मुट्ठी भर ज़मीं हमने, तलाशने को सारा आसमान बाकी है…
भारत की महत्वाकांक्षी ट्रेन-18 टेक्नोक्रेट सुधांशु मणि की अगुवाई व निर्देशन में तैयार हुई है। पर जाते-जाते वो कहते हैं कि ट्रेन-20 बनाने का अधूरा ख्वाब लिए जा रहा हूं, अपनी कविता, चित्रकारी और कला की दुनिया में बसने।

आईएनएन/चेन्नई, @Infodeaofficial
भारत की महत्वाकांक्षी ट्रेन-18 तैयार करने वाले आईसीएफ के महाप्रबंधक सुधांशु मणि का यात्रा चित्र
‘कमान ख़ुश है कि तीर उसका कामयाब रहा, मलाल भी है कि अब लौट के न आएगा…।’ भारतीय रेल के कायाकल्प के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सपने को साकार करने में अहम भूमिका निभाने वाले इंटीग्रल कोच कारखाना (आईसीएफ) चेन्नई के महाप्रबंधक सुधांशु मणि पर मशहूर शायर कृष्ण कुमार नाज का यह शेर मौजूं है। मणि आज 31 दिसम्बर को सेवानिवृत्त हो रहे हैं और उनके सीने पर कामयाबी के अनेक तमगे ऐसे लगे हैं, जो किसी टेक्नोक्रेट की कार्यकुशलता व कामयाबी की यादगार गौरवगाथा हैं।
भारत की महत्वाकांक्षी ट्रेन—18 सुधांशु मणि की अगुवाई व निर्देशन में तैयार हुई है। पर जाते—जाते वो कहते हैं कि ट्रेन—20 बनाने का अधूरा ख्वाब लिए जा रहा हूं, अपनी कविता, चित्रकारी और कला की दुनिया में बसने। उनके नेतृत्व में आईसीएफ ने अपना नाम लिम्का बुक ऑफ रिकार्ड में दर्ज कराया। यह पहली बार था जब आईसीएफ ने अपने निर्धारित लक्ष्य से काफी अधिक ट्रेन कोच का निर्माण किया। सबसे बड़ी बात यह कि उनके ही कार्यकाल में ट्रेन-18 का निर्माण कर इसे ट्रायल रन के लिए यहां से रवाना किया गया।
सुधांशु मणि का गौरवपूर्ण व सफल करियर देखकर कोई भी उन्हें मशीनों, औजारों और यांत्रिक अभिकल्पन में डूबा हुआ महज टेक्नोक्रेट समझने की गलती कर सकता है। लेकिन एक बार उनकी संगत में बैठिए तो आप पाएंगे कि वे लखनवी अदब और शेरो—शायरी की रंगत में डूबे हुए ऐसे कवि हृदय, शायर और कलाप्रेमी हैं, जो जितने बड़े उस्ताद अभियांत्रिकी क्षेत्र के हैं, उतने ही बड़े कला—साहित्य के साधक भी हैं।

इन्फोडिया से विशेष बातचीत में वो कहते हैं, ‘मेरी इच्छा थी कि मेरे नेतृत्व में ट्रेन-20 का निर्माण कार्य आईसीएफ में शुरू हो, पर वक़्त के साथ है मिट्टी का सफ़र सदियों से, किस को मालूम कहाँ के हैं किधर के हम हैं…।
रेलवे की उच्च सेवा में पहली तैनाती वर्ष 1982 में
उत्तर प्रदेश के नवाबों के शहर लखनऊ निवासी सुधांशु मणि ने वर्ष 1975 में 12 वीं की पढ़ाई कर आईआईटी कानपुर दाखिला लिया। लेकिन मनमौजी स्वभाव और अपनी शर्तों पर जीवन जीने के आदी होने के कारण मनचाहा पाठ्यक्रम नहीं मिलने पर फिर से आईआईटी रुड़की में इलेक्ट्रिक इंजीनियरिंग के कोर्स में दाखिला लिया। अभी पढ़ाई को एक साल भी पूरा नहीं हुआ था कि वर्ष 1976 में स्पेशल क्लास रेलवे अप्रेंटिश (एससीआरए) के परिणाम आए जिसमें उनका चयन हो गया था। वो एससीआरए करने के लिए बिहार के जमालपुर स्थित लोकोमेटिव संस्थान चले आए। इसके बाद रेलवे की उच्च सेवा में पहली तैनाती वर्ष 1982 में पूर्व रेलवे के अंडाल वर्कशॉप से शुरू हुई। वर्ष 1991 से 2000 तक उन्होंने लखनऊ के आरडीएस में अपनी सेवा दीं। 36 साल के करियर में उन्होंने बेंगलूरु में बतौर मंडल रेल प्रबंधक (डीआरएम), जर्मनी के बर्लिन स्थित भारतीय दूतावास में भारतीय रेल के सलाहकार के रूप में भी सेवाएं दीं। आईसीएफ के महाप्रबंधक का पदभार संभालने से पूर्व वे बेंगलूरु के यलहंका स्थित रेल व्हील फैक्ट्री मुख्य यांत्रिक अभियंता रहे।
आईसीएफ में अपनी उपलब्धियों पर चर्चा करते हुए वे कहते हैं कि ट्रेन-18 भारतीय रेल की उपलब्धि है और अब भारत इससे आगे ट्रेन-20 की ओर कदम बढ़ाने की दिशा में है। ट्रेन—18 व 20 में फर्क यह है कि जहां 18 में स्टेनलेस स्टील बॉडी है, वहीं 20 में कोच की बॉडी अल्युमिनियम की होगी। भारतीय कोच उत्पादन के बारे में वो कहते हैं कि पारम्परिक रेल डिब्बों का निर्माण अब बंद ही कर दिया गया है। इसके बदले केवल एलएचबी कोचों का निर्माण किया जा रहा है। स्टेनलेस स्टील कोच का निर्माण किया जा रहा है। यह पहले से अधिक सुरक्षित हैं। अब नए कोचों में बॉयो टायलेट का निर्माण किया जा रहा है। 2020 तक नए-पुराने हर कोच में बॉयो टायलेट होगा। आईसीएफ नई बोगियों में विशेष डिजाइन व सुविधाओं पर काम कर रहा है। जैसे कि कोचों में खिड़कियों की चौड़ाई बढ़ाई जा रही है। विशेषकर एलएचबी
वातानुकूलित (एसी) कोच में ट्रेन-18 की तरह कांटीनुअंस ग्लास विंडो लगाया जा रहा है। एसी कोच में बॉयो टायलेट विथ वैक्युम एवेक्युएशन का निर्माण किया जा रहा है। इसके बाद ऑन ट्रैक मलनिकासी बीते दिनों की बात हो जाएगी। आईसीएफ में निर्मित ईएमयू ट्रेन में क्रॉनिकल स्प्रींन लगाए जा रहे हैं, ताकि रख-रखाव के साथ यात्रा भी सहज हो। आईसीएफ में ट्रेन-18 की तरह अगले साल दो और ट्रेनों का निर्माण किया जाएगा। इसके अगले साल 8 और ट्रेनों का निर्माण किया जाएगा। इसके लिए रेलवे बोर्ड ने अनुमति भी दे दी है। इन ट्रेनों को शताब्दी व राजधानी ट्रेन रुट पर चलाया जाएगा। ट्रेन-18 का स्लीपर वर्जन भी जल्द तैयार किया जाएगा।
आईसीएफ महाप्रबंधक के रूप में चुनौतियों पर बात करते हुए उन्होंने कहा कि आईसीएफ में पहले के मुकाबले कर्मचारियों की संख्या में काफी कमी हुई है। लेकिन कोर और कमिटेड स्टॉफ की वजह से हम बेहतर प्रदर्शन करने में सक्षम हो पाएं हैं। लिम्का बुक रिकार्ड, लक्ष्य से अधिक कोच का निर्माण, ट्रेन-18 जैसी विश्वस्तरीय ट्रेन के निर्माण का श्रेय यहां के कुशल व समर्पित कर्मचारियों को जाता है। कर्मचारियों की कमी की वजह से कुछ काम आउटसोर्स भी किया जाता है। लेकिन अधिकांश काम आईसीएफ में ही किए जाते हैं। 2015—16 में आईसीएफ ने दो हजार कोच बनाए। 2016—17 में 2277, 2017—18 में 2503 और 2018—19 में 30 प्रतिशत अधिक अर्थात 3200 से अधिक कोच निर्माण का लक्ष्य है। इस संख्या को चार हजार कोच तक ले जाने की योजना में हैं।
आईसीएफ की क्षमता, भारतीय अभियंताओं का कौशल पर उन्हें पूरा भरोसा है और वे कहते हैं, ‘बुलेट ट्रेन बनाने के लिए आईसीएफ के पास हर सुविधा है। यदि भारत सरकार व रेल मंत्रालय यह जिम्मेदारी उन्हें सौपती है तो उनके लिए यह गौरव की बात होगी। आईसीएफ ने अबतक 200 किलोमीटर प्रति घंटा की गति वाली ट्रेन का निर्माण कर चुकी है। हालांकि बुलेट ट्रेन के निर्माण के लिए प्रारंभिक चरण में जापान के साथ मिलकर काम करने की जरूरत पड़ेगी। देश में प्रतिभा और कौशलयुक्त कर्मचारी हैं। इसी भरोसे पर मैं यह कह सकता हूं कि आईसीएफ बुलेट का निर्माण कर सकती है। आईसीएफ के कर्मचारी जापान के सहयोग से ट्रेन के निर्माण का कार्य देखकर सीख लेंगे और फिर हम जापानी डिजाइनरों के साथ मिलकर कोच निर्माण पर काम स्वयं कर लेंगे। इस तरह भले ही पहली बुलेट ट्रेन जापान बनाए, लेकिन बुलेट ट्रेन के अंतिम डब्बे का पूरा काम आईसीएफ अकेले कर सकती है। आईसीएफ के पास इतनी क्षमता है कि वह कांसेप्ट, डिजाइन, बिल्डिंग और टेस्टिंग हर काम में सफल हो सकती है।’
भारतीय रेलवे इन दिनों स्वयं को विश्वस्तरीय बनाने की दिशा में जा रही है। ऐसे में आईसीएफ के महाप्रबंधक के रूप में उनके पास कौन सी परियोजनाएं थीं? इस पर मणि ने बताया कि ईएमयू ट्रेनों में अब बिजली की निर्भरता पर सेलर पर निर्भरता बढ़ाया जा रहा है। ईएमयू ट्रेन के एक कोच में फ्लेसिबल सोलर पैनल लगाया जा रहा है, ताकि ट्रेन में जरूरत की बिजली के लिए इसका उपयोग किया जा सके। अभी एक ईएमयू ट्रेन पर काम किया जा रहा है जो कि जनवरी माह में पटरी पर दौड़ने लगेगी। इसमें बैट्री स्टोरेज की सुविधा नहीं होगी। लेकिन जब भी साफ आसमान में साफ धूप होगा तो इससे उत्पन्न बिजली ट्रेन में उपयोग किया जाएगा। फिलहाल यह प्रायोगिक तौर पर है। इसके अवलोकन के बाद पूरे ट्रेन में सोलर पैनल के प्रयोग और सोलर ट्रेन के निर्माण पर विचार किया जाएगा।

करियर में ‘क्या खोया और क्या पाया’ के सवाल पर वो कहते हैं, ‘हमारे लिए पूर्ण रूप से एलएचबी कोच को तैयार करना नया अनुभव था। हां, हमसे कुछ खामियां हुई होंगी मै इस बात से इंकार नहीं करता। लेकिन ये खामियां ही हमें सीखने और सुधार करने का मौका देती हैं। जैसे मैं यह दावा नहीं करता कि ट्रेन-18 बिलकुल खामीरहित होगी। लेकिन पटरियों पर उतरने के बाद ही उसकी खामियों के बारे में पता लगेगा और अगली ट्रेन-18 में कमियां नहीं होंगी।
भारतीय रेल में सुधार पर उनका कहना है कि अभी भी भारतीय रेल यात्री सुविधा और स्पीड के मामले में पीछे है, जिसपर विशेष ध्यान देने की जरूरत है। इतने लंबे समय तक इतनी जिम्मेदारियों से भरे पद पर होते हुए भी सुधांशु मणि अपने भीतर के कवि, लेखक और साहित्य प्रेमी को जिंदा रखे हुए हैं। वे जहां—जहां भी रहे कार्यालय व संस्थान दोनों में कवि सम्मेलनों, कला प्रदर्शनियों, साहित्य सृजन के लिए प्रोत्साहित करते हुए वातावरण को रसमय बनाए रखे। इसीलिए अब सेवानिवृत्ति के बाद वे अपने शहर लखनऊ लौटकर पुस्तक लेखन, कविता सृजन और चित्रकारी के माध्यम से एक नई रचनात्मक दुनिया बसाना चाहते हैं और उनकी जिंदादिली उनके इन शब्दों में बयां होती है कि ‘ज़िंदगी की असली उड़ान अभी बाकी है, वक्त के कई इम्तेहान अभी बाकी है, अभी तो नापी है मुट्ठी भर ज़मीं हमने, तलाशने को सारा आसमान बाकी है….।