‘बम’ को डिफ्यूज करेगा प्लास्टिक मुक्त बचपन
उत्तर प्रदेश, उत्तरपूर्व व उत्तर भारत के अनेक राज्यों सहित भारत के कई राज्यों मेें प्लास्टिक की थैलियों का प्रयोग हतोत्साहित करने के लिए निषेधात्मक आदेश जारी किए गये हैं। तमिलनाडु सरकार ने प्लास्टिक के दुष्प्रभाव पर जागरूकता स्कूलों से फैलाने का अभियान शुरू किया है। तमिलनाडु ने बढ़ाया प्लास्टिक मुक्त ‘बचपन’ की ओर कदम।
एस विष्णु शर्मा, आईएनएन/चेन्नई, @Infodeaofficial
कभी मानव की सुविधा के लिए बनी प्लॉस्टिक की वस्तुएं अब खतरनाक समस्या के रूप धर चुकी हैं। अनेक शोध बताते हैं कि पर्यावरण संबंधी अनेक समस्याओं एवं मनुष्यों में स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं में बेतहाशा वृद्धि के लिए अन्य कारकों के साथ ही प्लास्टिक का अंधाधुंध प्रयोग भी जिम्मेदार है। यह पर्यावरण व मानव स्वास्थ्य के लिए ‘बम’ का रूप लेता जा रहा है। इस पर शीघ्र ही प्रतिबंध न लगाया गया तो मानव के लिए गंभीर पर्यावरणीय समस्याएं अनियंत्रित हो जायेंगी।
उत्तर प्रदेश व उत्तर भारत के अनेक राज्यों सहित भारत के कई राज्यों मेें प्लास्टिक की थैलियों का उपयोग हतोत्साहित करने के लिए निषेधात्मक आदेश जारी किए हैं। तमिलनाडु सरकार ने भी प्लास्टिक के दुष्प्रभाव पर जागरूकता स्कूलों से फैलाने का अभियान शुरू किया है। हाल ही राज्य शिक्षा निदेशालय ने स्कूलों में प्लास्टिक का प्रयोग वर्जित करते हुए प्लास्टिक फ्री जोन बनाने का आदेश जारी किया है। यह आदेश बीते शनिवार से अमल में लाया गया है, जिस दिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने स्वच्छता सेवा सप्ताह का शुभारंभ किया। राज्य शिक्षा विभाग के प्रमुख सचिव प्रदीप यादव ने कहा कि राज्य सरकार अपने इस प्रयास के तहत सबसे पहले प्रतिबंधित प्लास्टिक उत्पादों को स्कूल परिसर में वर्जित कराएगी। इसके बाद स्कूल परिसर में मौजूद प्लास्टिक पदार्थ को एक़त्र कर उसके निस्तारण की व्यवस्था की जाएगी। राज्य सरकार की योजना है कि गैर सरकारी संगठनों (एनजीओ) के साथ मिलकर स्कूलों में शिक्षकों व विद्यार्थियों को प्लास्टिक के दुष्प्रभावों के बारे में जागरुक किया जाएगा।
प्लॉस्टिक कचरे की समस्या कितनी भयावह है, इसका अनुमान इससे लगाया जा सकता है कि विश्व में हर सेकेंड 8 आठ टन प्लास्टिक का सामान बनता है। हर साल कम-से-कम 60 साठ लाख टन प्लास्टिक कचरा समुद्रों में पहुंच जाता है। प्लास्टिक कचरे का केवल 15 प्रतिशत भाग ही पृथ्वी की सतह पर बचा रह पता है, बाकी सारा कचरा समुद्र में जाकर जमा हो जाता है। हाल ही केंद्रीय पर्यावरण मन्त्री प्रकाश जावड़ेकर ने संसद में जानकारी दी थी कि देश के 60 साठ बड़े शहर रोजाना 3,500 टन से अधिक प्लास्टिक कचरा निकाल रहे हैं। 2013-14 के दौरान देश में 1.1 करोड़ टन प्लास्टिक की खपत हुई,। दिल्ली, मुम्बई, कोलकाता, चेन्नई और हैदराबाद जैसे बड़े शहर सबसे ज्यादा प्लास्टिक कचरा निकाल रहे हैं।
चेन्नई के बाललोक मैट्रिकुलेशन हायर सेकेंड्री स्कूल के प्रधानाचार्य के. षणमुगनाथन कहते हैं कि स्कूलों में प्लास्टिक का प्रयोग वर्जित करने से ही स्वच्छता नहीं आएगी। हर व्यक्ति को जागरुक होना होगा। स्कूल से शुरुआत अच्छी पहल है, ताकि भावी पीढ़ी को उनका भविष्य सुरक्षित रखने के लिए जागरुक कर सकें। केंद्र सरकार ने इधर चार वर्षों में स्वच्छता के लिए विशेष अभियान चला रखा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आह्वान पर प्रतिवर्ष 2 अक्टूबर गांधी जयंती तक स्वच्छता सेवा सप्ताह मनाया जा रहा है। इस बार प्रधानमंत्री मोदी ने नई दिल्ली के पहाड़गंज क्षेत्र के अंबेडकर सरकारी विद्यालय में झाड़ू लगाकर इस सप्ताह का शुभारंभ किया। पूरे देश में यह सप्ताह मनाया जा रहा है। ऐसे में तमिलनाडु सरकार द्वारा स्वच्छता सेवा सप्ताह के शुरू होने के साथ ही स्कूलों को प्लॉस्टिक मुक्त क्षेत्र बनाने का निर्णय सराहनीय है।
प्लॉस्टिक बच्चों के लिए यह कितना खतरनाक है, यह जानने के लिए ब्रिटेन के उस शोध को पढ़ना चाहिए। इस शोध में बताया गया है कि प्लास्टिक से बने लन्च बॉक्स, पानी की बोतल और भोजन को गरम और ताजा रखने के लिए प्रयोग में लाई जाने वाली पतली प्लास्टिक फॉइल (क्लिंज फिल्म) में 175 से ज्यादा दूषित घटक होते हैं। वैज्ञानिकों का मानना है कि यदि भोजन गरम हो या उसे गरम किया जाना हो तो ऐसे खाने को प्लास्टिक में बन्द करने से या प्लास्टिक के टिफिन में रखने से दूषित रसायन खाने में चले जाते हैं। इस प्रकार प्लास्टिक के ये सामान बच्चों को गंभीर रूप से बीमार कर सकते हैं। असल में प्लास्टिक में अस्थिर प्रकृति का जैविक कार्बनिक एस्सटर (अम्ल और अल्कोहल से बना घोल) होता है, जो कैंसर पैदा करने में सक्षम है। सामान्य रूप से प्लास्टिक को रंग प्रदान करने के लिए उसमें कैडमियम और जस्ता जैसी विषैली धातुओं के अंश मिलाए जाते हैं। जब ऐसे रंगीन प्लास्टिक से बनी थैलियों, डिब्बों या दूसरी पैकिंग में खाने-पीने के सामान रखे जाते हैं तो ये जहरीले तत्त्व धीरे-धीरे उनमें प्रवेश कर जाते हैं। कैडमियम की अल्प मात्रा के शरीर में जाने से उल्टियां हो सकती हैं तथा हृदय का आकार बढ़ सकता है। इसी प्रकार जस्ता नियमित रूप से शरीर में पहुंचता रहे तो इंसानी मस्तिष्क के ऊतकों का क्षरण होने लगता है। इसका परिणाम स्मृतिभ्रंश अर्थात याददाश्त कमजोर होने जैसी बीमारियां होती हैं।
ब्रिटेन के वैज्ञानिकों ने तो प्लास्टिक के प्रयोग के खतरे को लेकर चेतावनी जारी कर दी है। प्लास्टिक के ज्यादा सम्पर्क में रहने से लोगों के खून में थैलेट्स की मात्रा बढ़ जाती हैं। इससे गर्भवती महिलाओं के शिशु का विकास रुक जाता है और प्रजनन अंगों को नुकसान पहुंचता है। प्लास्टिक उत्पादों में प्रयोग होने वाला बिस्फेनाल रसायन शरीर में मधुमेह और लिवर एंजाइम को असंतुलित कर देता है। पॉलिथीन कचरा जलाने से कार्बन डाइऑक्साइड, कार्बन मोनोऑक्साइड और डाइऑक्सींस जैसी विषैली गैसें उत्सर्जित होती हैं। इनसे सांस, त्वचा आदि से सम्बन्धित बीमारियाँ होने की आशंका बढ़ जाती है।
सितम्बर 2017 में केन्द्र सरकार ने अधिसूचना जारी करके दवाओं को प्लास्टिक से बनी शीशियों और बोतलों में पैक करने पर रोक लगाने की बात कही थी। क्योंकि दवाओं की प्लास्टिक शीशियां और बोतलें मानव स्वास्थ्य और पर्यावरण दोनों के लिए हानिकारक हैं। हालांकि दवा उद्योग ने अपने कारोबारी हितों के लिए इस प्रस्ताव पर अड़ंगा लगा दिया है।
हालांकि नागरिक व अभिभावक और निजी व सरकारी स्कूलों के प्रबंधन भी प्लास्टिक के दुष्प्रभाव के खतरे को समझने लगे हैं और सरकार के इस अभियान में साथ दिख रहे हैं। चेन्नई के बीएससी जैन विद्यालय मैट्रिकुलेशन स्कूल की प्रधानाचार्या एम मालिनी रविशंकर सरकार की इस पहल का स्वागत करती हैं। वो कहती हैं कि आसपास के स्कूली बच्चों के साथ मिलकर बड़े रैली की जाएगी। विद्यार्थियों, अभिभावकों और आमजन को प्लास्टिक और उसके इस्तमाल से होने वाले हानिकारक प्रभाव के बारे में जागरुक किया जाएगा। जागरुकता के लिए करेंगे नये प्रयोग स्कूल परिसर को प्लास्टिक मुक्त करने के लिए हम बच्चों से शुरूआत कर उनके घरवालों को भी जागरुक करने की योजना में हैं। हर सप्ताह विद्यार्थी, अभिभावक और शिक्षकों की बैठक होगी। बच्चों की ओर से कंपनियों ो प्लास्टिक का प्रयोग नहीं करने के आह्वान वाला पत्र भेजा जायेगा। जयगोपाल गड़ोरिया विवेकानंद विद्यालय ट्रस्ट के प्रबंध न्यासी अशोक केडिया बताते हैं कि स्कूलों में प्लास्टिक के प्रयोग को हतोत्साहित करने के लिए हमने कई उपाय कर रखे हैं। स्कूल में आरओ प्लांट की स्थापना भी प्लास्टिक बोतल के प्रयोग को कम करने के उद्देश्य से हुयी है। बच्चों के साथ उनके अभिभावकों को भी जागरूक किया जा रहा है।
असल में भारत में प्लास्टिक मानव जीवन के हर पक्ष को प्रभावित कर रहा है। प्लास्टिक के अन्य सामान तो नुकसानदायक हैं, पर प्लॉस्टिक के कैरी बैग का बढ़ता चलन और चिंताजनक है।यह प्रदूषण की रोकथाम में बाधा उत्पन्न कर रहा है। प्लास्टिक कैरी बैग सबसे बड़ी समस्या बनकर उभरी है। सामान्यत: पर ये प्लास्टिक कैरी बैग तब तक कोई समस्या नहीं बनते, जब तक कि इन्हें कचरे में फेंका नहीं जाता है। लेकिन कचरे में पहुंचते ही इनसे तरह-तरह की समस्याएँ पैदा होती हैं। इनसे साफ-सफाई में बाधा पड़ती है। नालियों और सीवर में फँसने के कारण ये बहते प्रदूषित पानी का रास्ता रोकते हैं। हमारे देश में गायों को कचरे के ढेर से ऐसे कैरी बैग खाते और गम्भीर रूप से बीमार होकर मरते तक देखा जाता है। इन प्लास्टिक कैरी बैग में जैविक रूप से नष्ट (बायोडिग्रेडेबल) होने की क्षमता नहीं होती। ये कैरी बैग वर्षों तक गलते नहीं हैं और इस प्रकार पर्यावरण के शत्रु बन जाते हैं। पतले कैरी बैगों की रिसाइक्लिंग सम्भव नहीं है। वल्र्ड वॉच इंस्टीट्यूट के अनुसार प्रति वर्ष 500 अरब से ज्यादा प्लास्टिक बैगों का इस्तेमाल होता है। भारत में कैरी बैगों की खपत प्रति व्यक्ति तीन किलोग्राम तक की है, जबकि यूरोप में यह औसत साठ किलोग्राम और अमेरिका में अस्सी किलोग्राम तक है। आज देश में कूड़े-कचरे में दस फीसद हिस्सा प्लास्टिक का ही होता है।
यह खतरनाक स्थिति देखते हुए केंद्र सरकार ने चालीस माइक्रोन से कम के प्लास्टिक बैग का उत्पादन करने वाली औद्योगिक इकाइयों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करने की बात कही थी। केंद्र सरकार ने 40 माइक्रोन से कम मोटाई के प्लास्टिक बैग बनाने वाली इकाइयों के विरुद्ध अर्थदंड की राशि में वृद्धि करने के साथ ही बायोडिग्रेडेबल प्लास्टिक सम्बन्धी एक पायलट परियोजना पर काम करने का प्रस्ताव तैयार किया है। वरिष्ठ पत्रकार पीएन द्विवेदी कहते हैं कि सरकारों ने प्लास्टिक के उपयोग को हतोत्साहित करने के लिए कदम तो उठाए हैं, लेकिन लोगों को अभी यह अंदाजा नहीं हो पाया कि प्लास्टिक का उपयोग उनके जीवन के लिए कितना खतरनाक है। इस बारे में व्यापक जागरूकता के प्रसार की आवश्यकता है। अन्यथा देश की जनसंख्या को देखते हुए प्लास्टिक कचरा इतनी बड़ी पर्यावरणीय व मानव स्वास्थ्य के लिए खतरनाक समस्या बन जायेगी कि यह महामारी का रूप धर लेगी। इससे पहले स्थिति इतनी विकट हो, हमें चेत कर प्लास्टिक के उपयोग को बंद करना होगा।