राजेश वर्मा, आईआईएन/जोधपुर , @Infodeaofficial
देश मे लॉक डाउन बहुत बड़ा और सुगम सहारा बना है कर्मचारियों को नोकरी से निकालने, बाहर करने, घर का रास्ता दिखाने के लिए। सुनने पढ़ने में जरा अजीब जरूर है लेकिन वास्तव में शत प्रतिशत पूर्ण सच्चाई भी है और इससे नकारा भी नही जा सकता।
देश मे सभी नही लेकिन अधिकांश पूंजीपतियों, उद्यमियों, व्यवसायिक प्रतिष्ठानों ने इस लॉक डाउन को उनके अपने लिए ‘ब्रह्मस्त्र’ के रूप में मिले ‘वरदान’ की तरह मान अपना लिया है।
बहुत आसान हो गया इनके लिए मात्र इतना सा कहना कि यार क्या करे लॉक डाउन ने तो बिजनेस की ‘वाट’ लगा दी। सारा बिजनेस ही चौपट हो गया। आर्थिक कमर तोड़कर रख दी।
कैसे दे कर्मचारियों को वेतन जब बिजनेस ही नही चल रहा, माल बिक नही रहा, पेमेंट आ नही रहा। बेचारे कर्मचारियों की क्या मजाल की कम्पनी मालिक, सेठजी, जनरल मैनेजर, मैनेजिंग डायरेक्टर, सीएमडी, मैनेजर से बात करने की हिम्मत कर ले।
ये मालिक और ऊंची पोस्ट पर बैठने वाले दलाल रूपी दानव प्रबंधन भी न क्या कमाल के होते है खुद कभी अपने मुह से नही बोलते ओर न ही खुद कभी बुरा बनते। इसके लिए भी वे अपने अधीनस्थ चापलूस चमचे दल्ले रूपी प्यादे को ढाल मोहरे के रूप में काम मे लेते है।
दल्ला भी खुद को ऊपर वाले का वेलविशर समझ उसके लिए दलाली में हाथ काले करता है और बेचारे कर्मचारी को बुला मौखिक आदेश से घर का रास्ता दिखाता है या कहीं जरूरी हुआ तो लिखित कागज थमा रवाना हो जाने का बोल देता है।
कुछ इस तरह का इन दिनों कम्पनियों में प्रचलन चल पड़ा है। जबकि लॉक डाउन की घोषणा सन्देश में ही देश के प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी दोहरा दोहरा के बोल चुके है कि कोई भी अपने संस्थान से कर्मचारियों को नही निकाले औऱ न ही उनका वेतन काटे।
दूसरे सन्देश में भी 6 नम्बर बिंदु में यही बात दोहराई है और सपष्ट कहा। लेकिन अधिकांश कम्पनियां, फर्मो ने देश के ‘प्रधानमंत्री’ की ‘बात’ की अक्षरह पालना नहीं की ओर न ही उनकी अपील को तवज्जों दी। मतलब कि कहा होगा। देते रहते है भाषण। इनकी क्या परवाह करना और वास्तव में हो भी यही रहा है।
किसी को कोई भय नही है कि हमारे देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कुछ कहा है और वह भी जब देश संकटकाल से गुजर रहा है तो उनकी बात को वजन/महत्व/तवज्जो तो देना ही चाहिए लेकिन कोई नही मान रहा। यू तो मोदी के कहने मात्र पर देश एक कड़ी में पिरो दिया गया ताली बजाई ओर दीपक भी जलाए लेकिन जब उन्होंने नोकरी से नही निकालने ओर वेतन नही काटने की कही तो उनकी इस बात को अधिकांश ने नकार दिया।
तो इन दिनों ‘लॉक डाउन मंदी’ को ‘हथियार’ बनाते हुए कम्पनी मालिक, एमडी, सीएमडी, जीएम सभी इसी ‘एकसूत्र पॉलिसी’ पर काम मे लगे है कि ‘मौका’ ‘हाथ’ से नही निकल जाए। जितनो को रवाना कर सकते है कर देवे। इसके लिए शब्द भी बहुत अच्छा चुना ‘कोस्ट कटिंग’।
इन पूंजीपतियों को मानवीयता, मानवीय मूल्य, नैतिकता जैसे शब्दों से कोई मतलब नही। जो कर्मचारी अपनी जिंदगी संस्थान को आगे बढ़ाने में योगदान देने में लगा देता है इस भरोसे में कि जब पारिवारिक जिम्मेदारियों का समय आएगा तो जिस संस्थान के साथ वह लगा रहा वह संस्थान उसका साथ देगी लेकिन संस्थान ऐसे समय मे उसके भरोसे के साथ कुठाराघात कर रही है। यही नही अहसान न करने की बोलते हुए कहते है काम किया है तो तनख्वाह दी है फोकट में काम नही किया।
अब उन्हें कौन बताये की फिर यदि हर जुड़ने वाले व्यक्ति जो खुद को कर्मचारी की तरह न मान गैरजिम्मेदाराना तरीके से उस संस्थान में समय बिताकर जाएगा तो क्या वह संस्थान आगे बढ पायेगा या तरक्की कर पायेगा ओर अब होना भी यही है।
इमारतों में नीव के पत्थर नही होंगे। कॉलम बेस कम्पनी होगी। भुकम्प आएगा और कॉलम टूट बिखरेंगे ओर महल ड्यूटी बिजनेस कम्पनी प्रतिष्ठान धराशायी हो जाएंगे क्योकि नीव में पत्थर तो थे ही नही।
हा तो बात नोकरी से निकालने और वेतन काटने की। मोदी जी के कहने ओर आशंकाओं को ध्यान में रखते हुए सरकार और जिला प्रशासन ने बकायदा एक कंट्रोल रूम स्थापित किया और उसमें कमेटी गठित कर वहां का संपर्क नम्बर भी जारी किया कि जिस किसी के साथ कोई कम्पनी ऐसा करे तो तत्काल इस फला नम्बर पर शिकायत करें।
अरे साहेब यह ज्ञान तो दे दिया पर भरोसा कहा दिलाया कि शिकायतकर्ता की नोकरी को कोई आंच नही आएगी लॉक डाउन के बाद। नॉकरी नही छिनी जा सकेगी।
ऐसा करने वाली कम्पनी के विरुद्ध कानूनी कार्यवाही की जाएगी। बस इसी की पुख्ता व्यवस्था नही होने से कम्पनी मालिक और उनके प्रबंधन को पूरी आजादी मिल गई। कईयों को निकाल दिया। लगभग अधिकांश कम्पनियों ने कर्मचारियों का वेतन काट लिया।
ऐसा भी नही की किसी को पता नही। खुद राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को प्रेस कांफ्रेंस में पत्रकारों ने कम्पनियों की कारगुजारियां बताई है। उन्हें सबकुछ पता होने पर भी उनकी सरकार और उनके प्रशासन ने पीड़ितों को राहत देने दिलाने में कोई पहल नही की। तो यह तो पूंजीवाद ओर पूंजीपतियों के राज यू ही चलता रहेगा।
पूंजीपतियों को नेता पाल रहे है और नेता सत्ता बन जाते है तो वे पूंजीपतियों को पाल रहे है। पिसता तो दोनो पाट में गरीब लाचार आदमी ही, जो पूंजीपति का ‘नॉकर’ ओर नेताओ का ‘वोटर’ है।
लॉक डाउन चलेगा। कर्मचारी नॉकरी से निकाला जाएगा। श्रमिक संगठन जागेंगे कुछ श्रमिक नेता खुद की सेवा पूंजीपतियों से करा लेंगे । मोटी गाड़ियों में घूमते हुए निकल जाएंगे। श्रमिक घर का रास्ता देखेंगे। कम्पनियों के लिए लॉक डाउन का जादू चल जाएगा।
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