कमजोर पड़ रही महागठबंधन की आस, बढ़ रही विपक्ष की आपसी गांठ

  • माया भी कांग्रेस पर भड़कीं
  • कांग्रेस सपा, बसपा से छिटका
  • भतीजे ने कांग्रेस को ललकारा तो चाचा ने समूचे विपक्ष को

आईएनएन/लखनऊ @Infodeaofficial भारतीय जनता पार्टी के विरुद्ध अभी कुछ ही दिन पहले उत्तर प्रदेश के गोरखपुर, फूलपुर और कैराना में संयुक्त प्रत्याशी उतारकर लोकसभा उपचुनाव जीतने वाले समाजवादी पार्टी, बसपा, कांग्रेस व अन्य विपक्षी दलों में आगामी लोकसभा चुनाव 2019 में महागठबंधन होने से पहले ही आपस में जुबानी जंग तेज हो गयी है। मध्यप्रदेश में कांग्रेस द्वारा समाजवादी पार्टी को महत्व न दिए जाने से कुपित इसके मुखिया अखिलेश यादव ने खुलकर कांग्रेस को अहंकारी बताया। दूसरी ओर अखिलेश के चाचा व सपा के असंतुष्टों को लेकर प्रगतिशील समाजवादी पार्टी (लोहिया) बनाने वाले उनके चाचा शिवपाल यादव ने महागठबंधन पर इशारों-इशारों में तंज कसा। बहुजन समाज पार्टी की मुखिया मायावती ने पहले ही कांग्रेस के खिलाफ मोर्चा खोल रखा है। 

शिवपाल ने मंगलवार को कहा‘‘वे महागठबंधन बनाने में देरी क्यों कर रहे हैं, वे किससे डर रहे हैं? क्या वे सीबीआई से डरे हुये हैं।’’ शिवपाल ने कहा, ऐसा लगता है कि सीबीआई के डर से गैर भाजपा दल 2019 के लोकसभा चुनाव के लिये ‘महागठबंधन’ बनाने से डर रहे हैं। शिवपाल ने कहा कि विपक्षी दलों के महागठबंधन में मेरी पार्टी को 50 फीसदी सीटें चाहिये। भाजपा को हटाने के लिए हम उनके साथ हैं। उन्होंने भाजपा से किसी भी तरह के गठबंधन की संभावनाओं से पूरी तरह से इंकार किया।

शिवपाल यादव ने एक पत्रकार वार्ता में कहा, ‘‘जो हमने अपनी पार्टी बनायी है, ‘नेताजी’ (मुलायम सिंह यादव) से इजाजत लेकर बनाई है और हमारे साथ नेताजी का आशीर्वाद है और हमेशा रहेगा। नेताजी और हम शुरू से बचपन से साथ रहे हैं और आपसे ज्यादा हम उन्हें समझते हैं।’

इससे पहले मध्यप्रदेश में अपनी पार्टी का चुनाव प्रचार करने गए सपा मुखिया अखिलेश यादव ने भोपाल में कहा, ‘कांग्रेस से हमारी बात हुई थी। वह हमें तो सीटें देने को तैयार थी लेकिन हम चाहते थे कि बीएसपी को भी साथ लिया जाए। हमने कहा कि बड़ी लड़ाई है, सबको साथ लेकर चला जाए लेकिन वह हमको कुछ समझती ही नहीं है इसलिए हमारी बात नहीं मानी।’ अखिलेश ने कहा, ‘अब हम कांग्रेस की नाकामियां बताएंगे।’ अखिलेश यादव ने छत्तीसगढ़ में शनिवार को एक चुनावी सभा में भी कांग्रेस पर हमला बोलते हुए कहा था, ‘साइकिल (एसपी चुनाव चिन्ह) को रोकोगे तो आपका हाथ (कांग्रेस का चुनाव चिन्ह) हैंडल से हटा दिया जाएगा।’

उधर, छत्तीसगढ़ में कांग्रेस ने जब बसपा से गठबंधन की आस पर पानी फेरा था तो मायावती ने कांग्रेस पर तीखा वार करते हुए कहा था कि उनकी पार्टी मध्य प्रदेश और राजस्थान विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के साथ किसी तरह का गठबंधन नहीं करेगी. हालांकि, मध्यप्रदेश के कुछ क्षेत्रों में बसपा के प्रभाव को देखते हुए स्थानीय प्रदेश कांग्रेस कमेटी उससे गठबंधन को अधिक उत्सुक थी। मायावती ने कहा था कि इन दो चुनावी राज्यों में क्षेत्रीय दलों से एका कर सकती है, किंतु कांग्रेस से किसी कीमत पर नहीं. मायावती ने कहा था कि कांग्रेस भाजपा से डरती है और अपने ही साझीदारों को हराना चाहती है।

बता दें कि महागठबंधन बनाने के इच्छुक दलों का प्रभाव अपने—अपने राज्यों में है। लेकिन इस महागठबंधन का नेतृत्व अपने हाथ में लेने की मंशा पालने वाली कांग्रेस का देश के अधिकांश राज्यों में जनाधार नहीं बचा है। जिन राज्यों में कांग्रेस का जनाधार है भी, वहां अन्य क्षेत्रीय दलों का प्रभाव न के बराबर है। उत्तर प्रदेश और बिहार को छोड़ दिया जाए तो अन्य राज्यों में भाजपा अथवा क्षेत्रीय दल ही प्रभावशाली भूमिका में हैं और द्विदलीय लड़ाई है। उत्तर प्रदेश व बिहार ही ऐसे राज्य हैं, जहां बहुदलीय मुकाबला होता है। ऐसे में भाजपा से मुकाबले के लिए उत्तर प्रदेश के सपा व बसपा के बिना महागठबंधन की उपयोगिता नहीं होगी।

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