गुंजन माहोर, INN/Gwalior, @Gunjan44982393
कोरोना वायरस के कारण कई लोगों की जिंदगियों में उतार-चढ़ाव आये। कुछ इसे झेल गए तो कुछ ने इनके सामने हथियार दाल दिए। लेकिन इस महामारी ने कई लोगों के लिए जिंदगी जीने का नजरिया ही बदल गया।
जी है आप ये जानकार आपको भी हैरानी होगी की कैसे इस कोरोना काल में लोगों को खुशिया भील मिल सकती है लेकिन ऐसा है। यह महामारी कइयों के लिए गम लाया तो कुछ के लिए खुशिया भी लेकर आया है।
एक कुम्हारन महिला रामाश्री प्रजापति जो अपना गुजर-बसर मिट्टी के बर्तन बेचकर करती है। वह बताती है कि कुछ साल पहले उनके बेटे ने उनका खर्चा पानी बंद कर दिया था।
जिसके बाद अपना गुजर-बसर करने के लिए उसे बुढ़ापे में भी मिट्टी के बर्तन बनाकर घर घर बेचना पड़ता था। लॉकडाउन लगने के बाद भी अपना खर्चा पानी निकालने के लिए मिट्टी के बर्तन घर घर बेचती थी।
इस बात का पता मेरे बेटे को चला तो उसने मुझे घर से ना निकलने की सलाह दी और साथ ही मेरा खर्चा पानी फिर से देने की बात कही। यह लॉकडाउन मेरे लिए काफी सुखदायी साबित हुआ है।
पति के मृत्यु के बाद गोवा से दो छोटी बच्चियों के साथ ग्वालियर आई महिला सरोज का कहना है कि मेरे पति के देहांत के बाद मुझे काफी मुश्किलों का सामना करना पद रहा है।
गोवा से मै अपनी छोटी बहन के यहां आश्रय लेने के लिए आई लेकिन उसके ससुराल वालों ने मुझे घर में घुसने नहीं दिया। जिसके कारण मैं अपने दो छोटी बच्चियों के साथ रेलवे स्टेशन पर ही 4 दिन रही।
वही कुछ समाज सेवियो ने मेरे टिकट का बंदोबस्त कराने का दिलासा दिया। मैंने फैसला लिया है कि मैं अपने माता-पिता के पास बनारस जाना चाहती हूं और वही फिर से अपनी नई जिंदगी शुरू करना चाहती हूं।
वही ग्वालियर की ही एक महिला बबीता माहोर का कहना है कि उनके पति शोरूम में काम करते है।
लेकिन लॉकडाउन की कारण शोरूम 3 महीने से बंद था और घर में आर्थिक तंगी का माहौल हो गया था।
फिर अपने परिवार और बच्चों का गुजर-बसर करने के लिए उसने सिलाई का काम शुरू किया। हमारे पड़ोस में एक घर में शादी थी।
Leave a Reply