टीबी की लड़ाई में वैश्विक हीरो बना भारत, दोगुने रफ्तार से कम हुए मरीज : डब्ल्यूएचओ
विश्व स्वास्थ्य संगठन ने वैश्विक टीबी रिपोर्ट में भारत के अब तक के प्रयासों की समीक्षा के बाद जताया संतोष, औरों को भी सीख लेने की सलाह दी
INN/New Delhi, @Infodeaofficial
विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने टीबी संक्रमण के खिलाफ लड़ाई में भारत को वैश्विक हीरो बताया। बीते सप्ताह जारी वैश्विक टीबी रिपोर्ट में डब्ल्यूएचओ ने कहा है कि साल 2015 के बाद भारत की छलांग ऐतिहासिक है। ऐसी प्रगति अब तक किसी और देश में देखी नहीं गई। डब्ल्यूएचओ ने भारत के अब तक के प्रयासों की समीक्षा के बाद संतोष जताते हुए यहां तक कहा है कि दुनिया के बाकी देशों को भी भारत से सीख लेने की जरूरत है। पांच साल पहले भारत की अध्यक्षता में पूरी दुनिया ने साल 2030 तक टीबी से मुक्ति पाने का लक्ष्य रखा लेकिन उस दौरान भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पांच साल पहले 2025 तक इस लक्ष्य को हासिल करने का वादा किया।
भारत के जमीनी स्तर पर प्रयास इस तरह रहे कि 2015 के बाद से छूटे हुए टीबी मामलों के अंतर को कम करने में जबरदस्त प्रगति देखी है। 2023 में भारत में 27 लाख मामले मिले जिनमें से 25.1 लाख रोगियों का उपचार सफल रहा। इससे भारत का उपचार कवरेज 2015 के 72% से बढ़कर 2023 में 89% तक पहुंचा। इसकी वजह से मिसिंग यानी लापता मामलों का अंतर कम हो गया है। इतना ही नहीं डब्ल्यूएचओ ने भारत में टीबी की घटनाओं में गिरावट को स्वीकार करते हुए कहा है कि 2015 में यहां एक लाख की आबादी पर टीबी के 237 मामले मिल रहे थे जो 2023 में घटकर 195 तक पहुंचे हैं।
इस हिसाब से यह 17.7% की गिरावट है जबकि विश्व स्तर पर यह 8.3% है। टीबी कवरेज में यह छलांग ऐतिहासिक है।डब्ल्यूएचओ ने यह भी कहा है कि भारत में टीबी के कारण होने वाली मौतों में निरंतर कमी दर्ज की गई है जो भारत में प्रति एक लाख की आबादी पर 28 से घटकर 22 तक पहुंची है। यह करीब 21.4% की गिरावट है।
डब्ल्यूएचओ की ओर से यह स्वीकारोक्ति पिछले आठ वर्षों में भारत द्वारा टीबी देखभाल में लाए गए आदर्श बदलाव का प्रतीक है। टीबी के उपचार में सफलता हासिल करने के लिए हाल ही में सरकार ने राष्ट्रीय टीबी उन्मूलन कार्यक्रम (एनटीईपी) के तहत मल्टी-ड्रग-रेसिस्टेंट ट्यूबरकुलोसिस (एमडीआर-टीबी) के लिए एक अत्यधिक प्रभावी और कम समय वाले बीपीएलएम आहार को मंजूरी भी दी है।
भारत ने बजट बढ़ाया
डब्ल्यूएचओ ने सदस्य देशों को अपनी रिपोर्ट में बताया कि भारत सरकार राष्ट्रीय टीबी उन्मूलन कार्यक्रम चला रही है जिसके बजट आवंटन में 5.3 गुना की बढ़ोतरी देखी गई। 2015 में 640 करोड़ रुपये का यह बजट साल 2022-23 में 3400 करोड़ रुपये तक पहुंचा।
टीबी कार्यक्रम का अधिकांश धन सरकारी संसाधनों से आता है। पिछले कुछ वर्षों में भारत अत्याधुनिक आणविक निदान उपकरणों को बढ़ाने, नए और अधिक प्रभावी उपचार आहार पेश करने और सभी टीबी रोगियों को मुफ्त जांच और उपचार प्रदान करने में सक्षम रहा है।
इतना ही नहीं, भारत में सरकारी के साथ साथ प्राइवेट अस्पताल भी इस मुहिम में बढ़ चढ़कर भाग ले रहे हैं। साल 2023 में मिले कुल टीबी मरीजों में 32.9% की पहचान प्राइवेट अस्पतालों में हुई। इसके अलावा भारत में 800 से ज्यादा एआई-सक्षम पोर्टेबल चेस्ट एक्स-रे मशीनें स्थापित हैं जो कि पूरी दुनिया में सबसे अधिक हैं। इनके अलावा 7,767 त्वरित आणविक परीक्षण सुविधाएं और 87 कल्चर और औषधि संवेदनशीलता परीक्षण प्रयोगशालाएं देश भर में फैली हैं।
भारत की एक पहल सबसे अनोखी
डब्ल्यूएचओ का कहना है कि टीबी मरीजों के लिए भारत की एक पहल सबसे अनोखी है जिसकी जितनी भी प्रशंसा की जाए, उतना कम है। भारत में टीबी मरीजों के लिए पोषण आहार को लेकर सहायता दी जा रही है। बीते अक्टूबर माह में ही सरकार ने इस राशि को 500 रुपये प्रति माह से बढ़ाकर 1000 रुपये तक किया है। इसके तहत अभी तक 1.13 करोड़ लाभार्थियों को 3,202 करोड़ रुपये वितरित किए गए। ऐसी पहल अन्य देशों में नहीं है
जहां एनर्जी डेंस न्यूट्रिशनल सप्लीमेंट (ईडीएनएस) से लगभग 12 लाख अल्पपोषित टीबी रोगियों को कवर किया जाएगा।इसके अलावा, केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने टीबी रोगियों के घरेलू संपर्कों के लिए नि-क्षय मित्र पहल जारी है जिसके तहत मरीजों को गोद लिया जा रहा है और भोजन की टोकरी का वितरण किया जा रहा है। इससे टीबी रोगियों और उनके परिवारों पर जेब खर्च (ओओपीई) में काफी कमी आएगी