दिल्ली में सांस्कृतिक व साहित्य जगत के पुरोधाओं का समागम

‘संस्कृति सुगंध’-उत्सव संध्या का आयोजन

आईएनएन, दिल्ली, @Infodeaofficial;

संस्कृति सुगंध’-उत्सव उत्कर्ष का भारतीय नववर्ष का है। इस उत्सव संध्या को विशिष्ट समारोह का स्वरूप देने के लिए दिल्ली, राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र और देश भर के विविध विधाओं के मूर्धन्य कलाकार, कला चिंतक, साहित्यकार, और विशिष्ट जन तीन मूर्ति भवन प्रांगण में 11 अप्रैल को एकत्रित हुए।

इस समारोह का आयोजन नैमिषारण्य फाउंडेशन और नेहरू स्मारक संग्रहालय एवं पुस्तकालय ने संयुक्त रूप से किया। इस आयोजन में इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र, संगीत नाटक अकादमी, राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय और राष्ट्रीय आधुनिक कला संग्रहालय सहयोगी संस्थाएं थीं। नैमिषारण्य फाउंडेशन भारत की विराट चेतना को पुर्नजागृत करने का उपक्रम कर रही है।

यह संस्था पिछले दो वर्षों से देश भर में सांस्कृतिक जागरण के लिए काम कर रही है। समेलनों, सांस्कृतिक आयोजनों, विद्वत्त समागमों के माध्यम से भारतीय ज्ञान, दर्शन और कला परंपरा में जो प्राप्त है, उसे सुरक्षित रखने का, जो सुरक्षित है, उसे सवंद्र्धित करने का और जो अप्राप्त है, उसे प्राप्त करने का प्रयास कर रही है। समय के साथ यह उपक्रम अतीत, वर्तमान और भविष्य के मध्य एक सेतु बन पाएगा।

वास्तव में, नैमिषारण्य फाउंडेशन का यह आयोजन वैराटय के लिए किया जाने वाला सांस्कृतिक एवं वैचारिक यज्ञ ही है। इसी क्रम में ‘संस्कृति सुगंध’ के जरिए राजधानी दिल्ली में सांस्कृतिक व साहित्य जगत के पुरोधाओं का यह समागम संभव हो पाया ।

समारोह में उपस्थित अतिथियों का स्वागत उद्बोधन देते हुए, नेहरू स्मारक संग्रहालय एवं पुस्तकालय के निदेशक शक्ति सिन्हा ने कहा कि ऐसे आयोजनों से हमारे संस्कृतिकर्मियों में एक उत्साह और जोश का संचार होगा। संस्कृति नैमिषेय का परिचय इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र के सदस्य सचिव डॉ सच्चिदानंद जोशी ने दिया।

इस अवसर पर चित्रकार वासुदेव कामत ने कहा कि हम संस्कृतिकर्मियों ने अपने संपूर्ण जीवन में जो भी अर्जित किया है उसे समाज के प्रति हमें कृतज्ञता स्वरूप समर्पित करना चाहिए। तभी उसकी सुगंध ‘संस्कृति की सुगंध’ बन पाएगी। इस अवसर पर भारतीय संास्कृतिक संबंध परिषद के अध्यक्ष विनय सहस्रबुद्धे ने कहा कि हमारी सांस्कृतिक विविधता को पूरी समग्र्रता के साथ प्रकट करना कला साधकों का काम है।

हमारी कलाएं अतीत से निकल कर, वर्तमान से होते हुए, भविष्य की ओर जाती हैं। यह चिर पुरातन होते हुए भी नित नूतन है। इस अवसर पर वरिष्ठ भरतनाट्यम नृत्यांगना डॉ पद्मा सुब्रणयम ने कहा कि दक्षिण के कवि सुब्र णयम भारती ने अपनी रचनाओं से भारत के स्वतंत्रता से पहले ही भारत को एकता के सूत्र में बंाध दिया था। संस्कार भारती के संस्थापक सदस्य बाबा योगेन्द्र ने कहा कि हमारे कला साधकों ने देश को हमेशा जगाने का काम किया है।

इस अवसर पर मु य अतिथि विदेश मंत्री सुषमा स्वराज अस्वस्थ होने के कारण उपस्थित नहीं हो पाईं। उनके संदेश को समारोह की संयोजिका मालविका जोशी ने पढ़ा। सुषमा स्वराज ने अपने संबोधन में कहा कि
सारी बाधाओं को पार करते हुए कला साधकों का यह समागम अनूठा है। यह हमारे समय के समाज को प्रेरणा और उत्साह प्रदान करेगा। समारोह में गांधर्व महाविद्यालय के बाल कलाकारों ने स्वस्ति वाचन, चतुरंग और ‘गीत हिंद देश के निवासी’ का गायन किया।

इसका निर्देशन युवा शास्त्रीय गायिका सावनी मुद्गल ने किया। जबकि भरतनाट्यम नृत्यांगना व गुरु सरोजा वैद्यनाथन की शिष्याओं ने भरतनाट्यम नृत्य प्रस्तुत किया। इस अवसर पर डॉ चंद्रप्रकाश द्विवेदी के निर्देशन में बनी फिल्म संस्कृति
नैमिषेय का प्रदर्शन भी किया गया।

इस अवसर पर संस्कृति मंत्री डॉ महेश शर्मा, कला विद् और वरिष्ठ नृत्यांगना सोनल मानसिंह, बाबा साहब पुरंदरे, दश्राजी होसबोले, डॉ राम शरण गौड़ आदि उपस्थित थे। इनके अलावा कई गणमान्य कलाकार गीता चंद्रन, प्रतिभा प्रहलाद, गीता महालिक, रजंना गौहर, नलिनी, कमलिनी, रानी खानम, गायिका मालिनी अवस्थी, सांसद व गायक मनोज तिवारी, नाटककार डॉ दयाप्रकाश सिन्हा, गायिका सुमित्रा गुहा व गायत्री कन्नन की उपस्थिति ने समारोह की रौनक को और बढ़ा दिया था।

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