सबरीमलै मंदिर में अयप्पा स्वामी के दर्शन के लिए प्रतिवर्ष 5 करोड़ भक्त जाते हैं। इन भक्तों में केरल के अतिरिक्त अधिकांश तमिलनाडु, पुदुचेरी, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश व तेलंगाना राज्य के होते हैं।
सुष्मिता दास, आईएनएन/चेन्नई, @Infodeaofficial
कर्नाटक को छोड़कर अब तक दक्षिण के राज्यों में अब तक पाश्र्व में रहे भाजपा के लिए जहां सबरीमलै विवाद राजनैतिक भूमि तैयार करने का खाद जैसा दिख रहा है, वहीं कांग्रेस व वामदलों के लिए यह फांस बनता जा रहा है।
उच्चतम न्यायालय द्वारा प्रत्येक आयुवर्ग की महिलाओं के प्रवेश के निर्णय के पश्चात उत्पन्न हुई स्थिति में पिछले सप्ताह सबरीमलै की पहाड़ी पर स्थित अयप्पा स्वामी के मंदिर के कपाट पांच दिन के खुले थे। किंतु भक्तों के प्रचंड विरोध के कारण प्रशासन ‘वर्जित’ आयुवर्ग की एक भी महिला को प्रवेश दिलाने में सफल नहीं हो सका। इस विरोध में भाजपा व आरएसएस के कैडर केरल की स्थानीय जनता के साथ सड़क से सबरीमलै पहाड़ी तक संघर्ष में बढ़चढ़कर आगे रहे। कपाट बंद होने के बाद राज्य सरकार ने बड़े पैमाने पर उन लोगों को गिरफ्तार किया है, जिन्होंने विरोध प्रदर्शन में भाग लिया था।
बता दें कि उच्चतम न्यायालय ने एक जनहित याचिका पर निर्णय देते हुए कहा था कि सबरीमलै मंदिर में सभी आयुवर्ग की महिलाओं का प्रवेश दिया जाए।
इस मंदिर में अभी तक 10 वर्ष से 50 वर्ष की महिलाओं का प्रवेश वर्जित था। चूंकि भगवान अयप्पा बाल ब्रह्मचारी हैं, अत: रजस्वला आयु वाली महिलाओं का प्रवेश वर्जित है।
इस आदेश के बाद मंदिर का कपाट केरल में सबरीमलै आंदोलन के बाद पहली बार भाजपा राज्य की राजनीति में आंदोलन के माध्यम से राज्य में एक मजबूत विकल्प के रूप में अपने को दिखाने में सफल रही है।
हालांकि पिछले चुनावों में भाजपा को राज्य में 10.33 प्रतिशत वोट मिले थे और विधानसभा में एक सीट भी मिली थी, जबकि एक सीट पर भाजपा का उम्मीवार केवल 69 वोटों से पीछे रहा था।
सबरीमलै मंदिर में अयप्पा स्वामी के दर्शन के लिए प्रतिवर्ष 5 करोड़ भक्त जाते हैं। इन भक्तों में अधिकांश केरल के अतिरिक्त तमिलनाडु, पुदुचेरी, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश व तेलंगाना राज्य के होते हैं। भक्तों की इतनी बड़ी संख्या को देखते हुए वाम दलों व कांग्रेस द्वारा सबरीमलै विवाद पर जनभावना के विपरीत रूख से पूरे दक्षिण भारत में राजनीतिक समीकरणों पर प्रभाव पड़ सकता है। भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने केरल में दो दिन पहले आकर अयप्पा भक्तों के समर्थन में राज्य सरकार को खुली चुनौती देने और उच्चतम न्यायालय को आस्था के विषयों पर निर्णय देने में सावधानी बरतने की नसीहत देने के साथ ही स्पष्ट हो गया कि भाजपा इस मामले में लीड ले चुकी है। इसके अतिरिक्त भाजपा अयप्पा भक्तों के समर्थन में 8 से 19 नवंबर तक केरल के उत्तरी जिले कासरगोड़ से शुरू कर सबरीमलै के निकट पथनंतिट्टा तक रथयात्रा निकालने जा रही है।
इस विवाद के बाद केरल में भाजपा की सदस्यता लेने वालों की संख्या अचानक बढ़ी है। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के पूर्व अध्यक्ष व प्रसिद्ध वैज्ञानिक जी. माधवन नायर ने भी अमित शाह की उपस्थिति में भाजपा की सदस्यता ग्रहण की है। यह भाजपा के पक्ष में तेजी से राजनीतिक माहौल बनने का संकेत है।
कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता ने नाम न छापने की शर्त पर कहा कि उनकी पार्टी के नेतृत्व ने इस विषय पर बड़ी गलती कर दी है। बहुंसंख्यक जनता की भावना के विरुद्ध निष्क्रिय होने से कांग्रेस को राजनैतिक रूप से हानि होगी। दूसरे कांग्रेस ने विरोध प्रदर्शन के दौरान भक्तों में पक्ष में बोलने के बजाय भाजपा और आरएसएस को प्रदर्शन का जिम्मेदार बताने से जनता में यह स्पष्ट संदेश चला गया कि भाजपा ही उनके साथ खड़ी है। तमिलनाडु में तुरंत इसका लाभ भले न मिले, लेकिन लंबे समय में यह भाजपा के लिए लाभकारी होगा और कर्नाटक व केरल में भाजपा को आगामी चुनाव में इसका सीधा लाभ मिलेगा।
भाजपा की केरल इकाई के महासचिव के. सुंरेंद्रन ने कहा कि हमने सबरीमलै विषय पर राजनैतिक लाभ लेने का कभी नहीं सोचा। सबरीमलै मंदिर की हजारों वर्षों की पवित्रता व परंपरा पर कुठाराघात के प्रयास से दक्षिण भारत की जनता आक्रोशित है। जनहितैषी दल होने के कारण भाजपा जनभावना के साथ खड़ी है और इस संघर्ष में जनता की लड़ाई लड़ेगी।
हाल के घटनाक्रमों पर दृष्टि रखने वाले राजनैतिक विश्लेषकों का मानना है कि 2014 के लोकसभा चुनाव में भाजपा को इसका लाभ दक्षिण के सभी राज्यों में मिलेगा। आसन्न तेलंगाना विधानसभा चुनाव में इस अनुमान का परीक्षण भी हो जाएगा। गौरतलब है कि 2014 के लोकसभा चुनाव में भाजपा को तमिलनाडु में 5.5 प्रतिशत, केरल में 10.33 प्रतिशत, कर्नाटक में 43 प्रतिशत, आंध्र प्रदेश में 8.50 प्रतिशत और तेलंगाना में 5.70 प्रतिशत वोट मिले थे।
केरल के पलक्कड़, मलमपुझा, मंजेश्वर, कासरगोड़, कजकोट्टम, वट्टिवोरकवू, चट्टनूर विधानसभा में भाजपा के उम्मीदवार न केवल द्वितीय स्थान पर रहे थे, बल्कि केवल 5 से 10 हजार वोटों से ही पीछे थे। इसी तरह लोकसभा चुनाव में तिरुअनंतपुरम सीट से भाजपा के ओ. राजगोपालाचारी ने कांग्रेस के विजयी प्रत्याशी शशि थरूर से 15,470 वोटों से ही पीछे थे। तमिलनाडु के कन्याकुमारी में भाजपा जीती थी, जबकि कोयम्बटूर में कुछ हजार वोटों से ही दूसरे स्थान पर रही थी। आंध्रप्रदेश में भाजपा के 9 विधायक जीते थे। तेलंगाना में भी भाजपा के 5 विधायक और एक सांसद हैं, जबकि आंध प्रदेश में भाजपा के दो सांसद व चार विधायक हैं।
राजनैतिक विश्लेषकों का मानना है कि दक्षिण में भाजपा को पहचान संकट नहीं है। हां, जनमानस अभी तक दक्षिण में भाजपा को विकल्प के रूप में नहीं पा रहा था। किंतु यदि केंद्रीय नेतृत्व त्रिपुरा और उत्तरपूर्व के राज्यों की तरह ही दक्षिण में भी विशेष फोकस व रणनीति के साथ कार्य करे तो वह यहां के क्षेत्रीय दलों को चुनौती देने में सक्षम हो सकती है। सबरीमलै मामले में भाजपा द्वारा खुलकर भक्तों के पक्ष में खड़े होने और आक्रामक संघर्ष करने से भाजपा के लिए संभावनाओं का द्वार खुला है। चेन्नई में एक अयप्पा भक्त सिरनी का कहना है कि सबरीमलै को अभी तक पवित्र बनाए रखने में यदि सफल रहे हैं तो यह आरएसएस और भाजपा द्वारा संघर्ष में साथ देने के कारण संभव हुआ है। इस विषय पर यह स्पष्ट संदेश गया है कि हमारी परंपराओं, संस्कृति की रक्षा में भाजपा ही साथ देगी, शेष कांग्रेस व अन्य दल केवल वोटबैंक की राजनीति करेंगे।
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