देश में विलुप्तप्राय हो रहे 439 हलारी नस्ल के गधों में से 43 राजस्थान के बीकानेर स्थित राष्ट्रीय अश्व अनुसंधान केंद्र में

आईएनएन/बीकानेर, @Infodeaofficial

गुजरात के सौराष्ट्र, देवभूमि द्वारका और हलार क्षेत्र में पाए जाने वाले खास हलारी नस्ल के गधे अब देश में सिर्फ 439 रह गए हैं।ये गधे सफेद रंग के, मजबूत होते हैं। इसकी खासियत के कारण इनकी कीमत करीब एक लाख रुपए तक पहुंच गई है।बीकानेर स्थित राष्ट्रीय अश्व अनुसंधान केंद्र में भी हलारी नस्ल के 43 गधे संरक्षित रखे गए हैं। विशेषज्ञों के अनुसार, हलारी नस्ल के गधों का इतिहास काफी पुराना है। इन्हें मुख्य रूप से खेती, परिवहन और व्यापार के लिए उपयोग में लाया जाता था।स्थानीय समुदायों में यह पशु उनकी आजीविका का अहम हिस्सा रहे हैं, लेकिन धीरे-धीरे आधुनिक परिवहन सुविधाओं के आने से इनका उपयोग कम होता गया और इनकी संख्या में लगातार गिरावट देखने को मिलने लगी।

राष्ट्रीय अश्व अनुसंधान केंद्र के विशेषज्ञ डॉ. शरतचंद्र मेहता बताते हैं कि एक तरफ भारत में गधों की संख्या में कमी आ रही है, जबकि विदेशों में इनकी मांग बढ़ रही है। उन्होंने बताया कि दुनिया में गधों का कई तरह से उपयोग किया जाता है। विदेशों में गधों का उपयोग केवल कृषि और परिवहन तक ही सीमित नहीं है, बल्कि इनका दूध, चमड़ी और अन्य उत्पादों में भी व्यापक उपयोग किया जाता है. उन्होंने बताया कि चीन, सूडान, पाकिस्तान और कई अन्य देशों में गधों की संख्या बढ़ रही है।

डॉ. शरतचंद्र मेहता ने बताया कि चीन में गधों की खाल से निकलने वाले एक खास पदार्थ \’इज़िआओ\’ का उपयोग दवाइयों में किया जाता है। यह पदार्थ इम्युनिटी बढ़ाने और तनाव कम करने में मदद करता है।इसके अलावा, इससे खास तरह की चॉकलेट भी बनाई जाती है, जिसे लोग काफी पसंद कर रहे हैं। इसके अलावा, अफ्रीका और यूरोप के कई देशों में गधी के दूध की खासी मांग है। कॉस्मेटिक इंडस्ट्री में भी इसे महत्वपूर्ण माना जा रहा है, क्योंकि यह त्वचा की देखभाल के लिए फायदेमंद होता है।इससे क्रीम, साबुन और कई अन्य उत्पाद बनाए जाते हैं, जो महंगे दामों पर बेचे जाते हैं।

उल्लेखनीय है कि हलारी नस्ल की गधी दूध बहुत महंगा बिकता है। इसके दूध में पोषक तत्वों के साथ ही त्वचा के लिए भी बेहतर माना जाता है। यही वजह है कि कुछ ऑनलाइन प्लेटफॉर्म्स पर इसकी कीमत 5,000 से 7,000 रुपये प्रति लीटर तक है। हालांकि, इस खासियत के साथ हलारी नस्ल के साथ कुछ चुनौतियां भी हैं। यह है इस नस्ल की गधी की संख्या में कमी।देश में 500 से भी कम हलारी गधे बचे होने के कारण, प्राथमिक आवश्यकता निश्चित रूप इनके संरक्षण की है।

हालांकि, बड़ा उद्देश्य केवल उनकी संख्या बढ़ाना नहीं है। किसानों को यह भी सिखाना है जिससे कि वे इनसे अधिक कमाई कर सकें। इसी आधार पर नेशनल लाइव स्टॉक मिशन योजना में संशोधन किया है इसमें गाय-भैंस और भेड़-बकरी के अलावा ऊंट, घोड़े और गधों को भी इस योजना में शामिल किया गया है। अब अगर कोई पशुपालक गधा पालन करता है तो सरकार एनएलएम योजना के तहत उसे 50 लाख रुपये तक की सब्सिडी देती है।

यदि हलारी नस्ल के गधों को हर स्तर पर प्रभावी रूप से संरक्षित किया जाए और इनके पालन को बढ़ावा दिया जाए, तो इससे न केवल इनकी संख्या बढ़ेगी, बल्कि किसानों को भी आर्थिक लाभ मिलेगा. इसके लिए सरकार और पशुपालन से जुड़े संगठनों को मिलकर काम करने की जरूरत है। उम्मीद है कि आने वाले समय में हलारी नस्ल के गधों की संख्या बढ़ेगी और यह अनमोल विरासत सुरक्षित रहेगी।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *