उच्च न्यायालय ने राज्य सरकार को दिया पीड़िता को पांच लाख रुपए मुआवजा देने का आदेश, प्रसव के बाद बच्चे को एडाप्शन सेंटर भेजने का निर्देश।
आईएनएन/मदुरै, @Infodeaofficial
दुष्कर्म के कारण गभर्वती एक नाबालिग लड़की को गर्भपात की अनुमति नहीं मिली। मद्रास उच्च न्यायालय की मदुरै पीठ ने याचिका की सुनवाई करते हुए गर्भपात की अनुमति देने से इनकार करते हुए राज्य सरकार को 11 वर्षीय पीड़िता को पांच लाख रुपए का मुआवजा देने के साथ ही प्रसव के बाद बच्चे को एडाप्शन सेंटर भेजने का आदेश दिया।
न्यायालय ने कहा कि गर्भ 26 सप्ताह का होने के कारण चिकित्सीय कारणों से गर्भपात की अनुमति नहीं दी जा सकती है। इक्षदुग्गल की इस पीड़िता की ओर से अधिवक्ता शशि ने अक्टूबर माह में याचिका लगाई थी। एकल पीठ के समक्ष 27 नवंबर को यह मामला सुनवाई में आया। एक पीठ ने इसे युगल पीठ को भेज दिया।
10 दिन बाद जब मामला रजिस्ट्री से युगल पीठ भेजा गया तो 6 दिसम्बर को युगल पीठ ने याचिका स्वीकार करते हुए सलाह के लिए चिकित्सीय टीम बनाई और अंतिम सुनवाई के लिए मामला 10 दिसम्बर तक के लिए टाल दिया। हालांकि तब तक गर्भपात कराने के लिए 26 सप्ताह की अवधि पार हो चुकी थी।
चिकित्सीय टीम ने गर्भ के 26 सप्ताह के हो जाने के कारण इसे गर्भपात योग्य नहीं पाया। 10 दिसम्बर को चिकित्सकों के दल ने अपनी रिपोर्ट न्यायालय को सौंपी। न्यायालय ने 11 दिसम्बर को सुनवाई के बाद मामला 13 दिसम्बर तक के लिए टाल दिया। 14 दिसम्बर को पीठ ने अंतिम सुनवाई की और 18 दिसम्बर को निर्णय सुनाया।
नाबालिग के माता—पिता का कहना है कि कानूनी प्रक्रिया और प्रशासन की लापरवाही के कारण उनकी बेटी का जीवन संकट में पड़ा है। उनको बच्ची के साथ दुष्कर्म का पता तब चला जब उसे अचानक पीरियड आने बंद हो गए। मां—बाप उसे एक निजी अस्पताल लेकर गए, जहां उसके गर्भवती होने का पता चला।
बच्ची के साथ क्षेत्र की एक निर्माणाधीन भवन के 70 वर्षीय चौकीदार ने दुष्कर्म किया था। पीड़िता अपने मां—बाप के साथ इसी भवन में झोपड़ी बनाकर रहती थी। वे इसी भवन में दिहाड़ी मजदूर हैं। पीड़िता जब 7 साल की थी तो उसके पिता ने उसकी मां को छोड़कर दूसरी महिला से विवाह कर लिया था।
उसकी मां ने फिर दूसरे व्यक्ति से विवाह कर लिया और बच्ची अपने सौतेले बाप और मां के साथ रहती थी। बच्ची के गर्भवती होने पर उसका बच्चा गिराने के लिए उसके मां-बाप दिंदिगुल सरकारी अस्पताल गए। जहां डाक्टरों ने बच्चा गिराने से मना कर दिया और उन्हें कानूनी सहायता सेवा के पास भेजा। इसके बाद गर्भपात की अनुमति के लिए उच्च न्यायालय में याचिका लगाई गई।
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