सीवीसी की रिपोर्ट के कुछ अंश ‘प्रतिकूल’, सीबीआई निदेशक वर्मा से जवाब तलब

 उच्चतम न्यायालय ने कहा कि सीबीआई निदेशक आलोक वर्मा के खिलाफ आरोपों पर केन्द्रीय सतर्कता आयोग की रिपोर्ट में उनके खिलाफ कुछ ‘बहुत ही प्रतिकूल’’ हैं जिनकी आयोग द्वारा आगे जांच करने की आवश्यकता है।

एजेंसी/नई दिल्ली, @Infodeaofficial

च्चतम न्यायालय ने शुक्रवार को कहा कि सीबीआई निदेशक आलोक वर्मा के खिलाफ आरोपों पर केन्द्रीय सतर्कता आयोग की रिपोर्ट काफी विस्तृत है और इसके निष्कर्षो में कुछ ‘अनुकूल’ और कुछ ‘बहुत ही प्रतिकूल’’ हैं जिनकी आयोग द्वारा आगे जांच करने की आवश्यकता है।

प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई, न्यायूर्ति संजय किशन कौल और न्यायमूर्ति के एम जोसफ की पीठ ने केन्द्रीय सतर्कता आयोग की गोपनीय रिपोर्ट सीलबंद लिफाफे में आलोक वर्मा को देने का आदेश दिया है। साथ ही उनसे सोमवार तक सीलबंद लिफाफे में ही इस पर जवाब मांगा है। इस मामले में अब मंगलवार को आगे सुनवाई की जायेगी।

आलोक वर्मा के वकील वरिष्ठ अधिवक्ता फली नरीमन ने कहा कि सीवीसी की रिपोर्ट पर वह 19 नवंबर को अपना जवाब दाखिल कर देंगे।
पीठ ने कहा, ‘‘जैसे ही हमारे पास आपका (वर्मा) जवाब होगा, हम इस पर निर्णय लेंगे।’’ शीर्ष अदालत आलोक वर्मा के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोपों की वजह से उन्हें उनके अधिकारों से वंचित करके अवकाश पर भेजने के सरकार के निर्णय को चुनौती देने वाली सीबीआई प्रमुख की याचिका पर सुनवाई कर रही थी।

आलोक वर्मा पर जांच ब्यूरो के विशेष निदेशक राकेश अस्थाना ने आरोप लगाये थे जिनके खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोपों में प्राथमिकी दर्ज की गयी है। सरकार ने वर्मा के साथ अस्थाना को भी सभी अधिकारों से वंचित करते हुये अवकाश पर भेज दिया था।

पीठ ने केन्द्रीय सतर्कता आयोग की रिपोर्ट अटार्नी जनरल के के वेणुगेापाल और सालिसीटर जनरल तुषार मेहता को भी सौंपने का निर्देश दिया। हालांकि, पीठ ने सीवीसी की रिपोर्ट राकेश अस्थाना को भी सौंपने का अनुरोध ठुकरा दिया।
अस्थाना की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी ने रिपोर्ट की प्रति उपलब्ध कराने के लिये जोरदार दलीलें दीं और कहा कि वर्मा के खिलाफ कैबिनेट सचिव को की गयी उनकी शिकायत ही केन्द्रीय सतर्कता आयोग को भेजी गयी थी।

पीठ ने नरिमन से कहा, ‘‘सीवीसी ने विस्तृत रिपोर्ट पेश की है। रिपोर्ट को वर्गीकृत किया गया है और कुछ आरोपों के बारे में यह काफी अनुकूल है, कुछ आरोपों के बारे में उतनी अनुकूल नहीं है और कुछ आरोपों के बारे में बहुत ही प्रतिकूल है। सतर्कता आयोग की रिपोर्ट कहती है कि कुछ आरोपों की जांच की आवश्यकता है और इसके लिये उन्हें वक्त चाहिए।।’’
पीठ ने आलोक वर्मा, अटार्नी जनरल और सॉलिसीटर जनरल को निर्देश दिया कि केन्द्रीय जांच ब्यूरो में जनता के विश्वास और इस संस्था की शुचिता को ध्यान में रखते हुये वे केन्द्रीय सतर्कता आयोग की रिपोर्ट पर गोपनीयता बनाये रखें।

गैर सरकारी संगठन कॉमन काज की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता दुष्यंत दवे ने पीठ से कहा कि उन्होंने पहले दावा किया था कि कार्यवाहक निदेशक एम नागेश्वर राव ने शीर्ष अदालत के आदेश के बावजूद नीतिगत निर्णय लिये हैं और फैसलों की सूची भी दाखिल नहीं की है। इस संगठन ने जांच ब्यूरो के अधिकारियों के खिलाफ विशेष जांच दल से जांच कराने के लिये अलग से याचिका दायर की है।

पीठ ने कहा, ‘‘हम यह मानकर चलते हैं कि उन्होंने (राव) ने कोई बड़ा नीतिगत फैसला नहीं लिया है क्योंकि आपने उनके द्वारा लिये गये निर्णयों की सूची पेश नहीं की है।’’ पीठ ने कहा कि राव पहले ही 23 से 26 अक्टूबर के दौरान उनके द्वारा लिये गये फैसलों की सूची दाखिल कर चुके हैं।

दवे ने कहा कि वह राव द्वारा लिये गये फैसलों की सूची दाखिल करेंगे। इस पर पीठ ने राव द्वारा दी गयी सूची का स्थान दिलाना आपका (दवे) काम होगा।

पीठ ने कांग्रेस नेता मल्लिकार्जुन खड़गे और जांच ब्यूरो के पुलिस उपाधीक्षक ए के बस्सी के आवेदनों पर भी विचार किया। बस्सी का तबादला पोर्ट ब्लेयर कर दिया गया है। पीठ ने कहा कि इस मामले में अगली तारीख पर विचार किया जायेगा।

इस मामले में सुनवाई के दौरान सीवीसी की ओर से तुषार मेहता ने कहा कि उन्हें भी आयोग की रिपोर्ट दी जानी चाहिए। इस पर पीठ ने मेहता से पूछा, ‘‘आपको (सीवीसी) यह नहीं मिली। आप तो रिपोर्ट के लेखक हैं और आपने ही इसे नहीं देखा है?’’
मेहता ने कहा कि उन्होंने इसे नहीं देखा है क्योंकि न्यायालय ने आयोग की रिपोर्ट सीलबंद लिफाफे में पेश करने का आदेश दिया था। शीर्ष अदालत के आदेश पर उच्चतम न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश ए के पटनायक की निगरानी में केन्द्रीय सतर्कता आयोग ने वर्मा के खिलाफ आरोपों की जांच की और इसे दस दिन के भीतर पूरा किया।

शीर्ष अदालत ने इस मामले में केन्द्र और सतर्कता आयोग को नोटिस जारी कर वर्मा की याचिका पर जवाब भी मांगा था।
यही नहीं, न्यायालय ने अपने आदेश में कहा था कि जांच ब्यूरो के कार्यवाहक निदेशक नागेश्वर राव कोई भी बड़ा या नीतिगत फैसला नहीं करेंगे और वह सिर्फ रोजमर्रा के काम ही देखेंगे।

इस बीच, राकेश अस्थाना ने भी इस मामले में अलग से याचिका दायर कर आलोक वर्मा को जांच ब्यूरो के निदेशक पद से हटाने का अनुरोध किया है। इस विवाद में कांग्रेस नेता मल्लिकार्जुन खड़गे ने भी चार नवंबर को एक आवेदन दायर कर दलील दी थी कि आलोक वर्मा को उनके अधिकारों से वंचित करना गैर कानूनी और मनमाना है।

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