चीन की घेरेबन्दी के संदर्भ में-भारत का प्रयास

भरत संगीत देव आईएनएन नई दिल्ली@infodeaofficial;

दुनिया की दूसरी बड़ी अर्थव्यवस्था चीन में तानाशाही मार्क्सवादी धिनायकवाद के आने से राष्ट्रपति सी चिनफिंग अनिश्चित कालीन पद पर बने रह सकेंगे। हाल ही के दिनों में सी चिनफिंग ने अपने एक वक्तव्य में कहा कि चीन अपनी जमीन का एक इंच भी दूसरे देश को नही देगा । चूँकि चीन लगातार भारत को सामरिक ओर रणनीतिक रूप से चारो तरफ से घेर रहा है, आर्थिक रूप से भी चीन भारत को चारों तरफ से घेर रहा है ओर हिन्द महासागर में अपने आपको सामरिक दृष्टि से स्थापित करने के लिए अनेक बन्दरगाहों का विकास किया है जैसे पाकिस्तान में चीन द्वारा विकसित ग्वादर बन्दरगाह, श्रीलंका में हम्मबन टोटा बन्दरगाह को विकसित किया है, मालदीव में मरामाओ बन्दरगाह को नौसेनिक बन्दरगाह के रूप में विकसित किया जा रहा है जो पनडुब्बियों का बहुत बड़ा केंद्र है,बांग्लादेश में चटगांव बन्दरगाह  ओर म्यांमार में कोको द्वीप पर चीन द्वारा एक बड़ा नेवल बेस स्थापित किया गया है और  इसी द्वीप पर चीन ने एक इलेक्ट्रॉनिक निगरानी सयंत्र स्थापित कर दिया है।

इसके अलावा भी जहाँ ‘वन बेल्ट वन रोड या सिल्क रुट ‘  जैसी महत्वकांक्षी योजनाओ के बल पर  चीन अपनी साम्राज्यवादी नीति को आगे बढ़ा रहा है। इन सब प्रयासों के जरिये चीन भारत को सामरिक दृष्टि से ओर आर्थिक रूप से भारत की घेरेबन्दी कर रहा है। जैसे चीन द्वारा पाकिस्तान के साथ सबसे पहले FTA मुक्त व्यापार समझौता किया गया, इसी प्रकार 8 दिसम्बर 2017 को मालदीव के साथ भी FTA साइन किया गया जो बहुत अधिक चर्चा में है क्योंकि मालदीव के राष्ट्रपति ने अपने बयान में कहा कि मालदीव सबसे पहले FTA समझौता भारत के साथ करेगा फिर किसी दूसरे देश के साथ लेकिन भारत से पहले चीन के साथ मुक्त व्यापार समझौता हुआ यह भी चीन की एक सोची समझी रणनीति है जो भारत की सामरिक घेरेबन्दी के साथ साथ आर्थिक घरेबन्दी को भी बताता है।

अमेरिकी विदेश मंत्रालय ने बताया भी की 2005 से ही चीन अपनी महत्वपूर्ण मोतियों की माला रणनीति के तहत हिंद महासागर में अपने सैन्य ठिकानों को मजबूत कर रहा है और विभिन्न क्षेत्रों में बन्दरगाहों का विकास भी कर रहा है।  चीन की इस रणनीति को रोकने का प्रयास भारत ने किया है और दक्षिण एशिया में भारत के बढ़ते प्रभाव से चीन को चुनौती भी मिल रही है। आज भारतीय नेतृत्व न केवल राजनीतिक इच्छाशक्ति से परिपूर्ण है, बल्कि नेहरू युग के नारे ‘हिंदी चीनी भाई भाई’ के भ्रम जाल से भी बाहर निकल चुका है। चीन को रोकने के लिए भारत ने अपने महत्वपूर्ण प्रोजेक्ट “मौसम”   के तहत 39 देशों को साथ लेकर अपने प्राचीन संस्कृति का प्रचार कर उनको जोड़ने में लगा हुआ है जैसे सेशेल्स में एकीकृत सूचना प्रणाली, पूर्व चेतावनी सिस्टम  को  फ्रिगेट द्वीप पर स्थापित किया जा रहा है इसके अलावा कई प्रकार के रडार लगाए जा रहे हैं, भारत ने मॉरीशस के साथ समुद्री निगरानी के लिए हमने समझौता किया है,  अंडमान निकोबार द्वीपसमूह के नारकोंडम में रडार स्थापित कर हमने चीन की मोतियों की माला रणनीति के काउंटर में बड़े कदम उठाए हैं। भारत ने वियतनाम के साथ एक रक्षा सहयोग स्थापित किया है और 2015 में ही एक सामरिक समझौता किया गया है क्योंकि एशिया में वियतनाम की सेना को बहुत मजबूत माना जाता है। भारत द्वारा मई 2016 से ईरान में चाबहार बन्दरगाह को विकसित किया जा रहा है जो चीन द्वारा विकसित ग्वादर बन्दरगाह पाकिस्तान से मात्र 72 किमी की दूरी पर स्थित है । भारत ने बांग्लादेश के साथ एक समझौता किया है कि भारत अपने कार्गो के लिए अब चटगांव बन्दरगाह का उपयोग करेगा ये सब चीन को नियंत्रित करने के लिए भारत ने कई बड़े प्रयास किये है।

इसके अलावा भारत चीन के पडौसी देश जिनके साथ चीन  की शत्रुता रही है उनसे मित्रता करने की कोशिश भारत कर रहा है। भारत ने एक बहुत महत्वपूर्ण प्रोजेक्ट “नाविक” को तैयार किया है जिसके माध्यम से हिन्द महासागर ओर दक्षिणी चीन सागर में देखरेख करने में सहायता मिलेगी। कजाकिस्तान में एक बड़ा सुपर कम्प्यूटर लगाया गया है। इन सब प्रयासों से ऐसा नहीं है कि चीन को नियंत्रित नही किया जा रहा है बल्कि किया जा रहा है। बिम्सटेक में मजबूती हिमतक्षेस, G-4 सामरिक समूह,  बांग्लादेश, म्यांमार के साथ मोटर वाहन समझौता, इस वर्ष दिल्ली में हुई अंतरराष्ट्रीय सौर गठबंधन सम्मेलन, ‘साझा मूल्य, साझा भाग्य ‘मन्त्र पर हुई भारत आसियान वार्ता ओर भारत द्वारा किये कई रक्षा समझौतों से चीन की छटपटाहट को साफ तौर पर देखा गया। हाल ही के दिनों में 10 मार्च 2018 को फ्रांस और भारत के बीच एक महत्वपूर्ण समझौता हुआ जिसके अंतर्गत दोनो देश हिन्द प्रशांत क्षेत्र में सहयोग बढ़ाने के लिए तैयार हो गए। दो दशक पुराने रणनीतिक सहयोग को और मजबूत करते हुए दोनों देशों के बीच एक दूसरे के सैनिक अड्डों को इस्तेमाल करने का महत्वपूर्ण समझौता किया गया । इन फैंसलों को भी चीन के हिन्द महासागर में सैन्य विस्तार को रोकने के संदर्भ में देखा जा रहा है। चीन एशिया, अफ्रीका, प्रशांत क्षेत्र में अपनी सैन्य मौजूदगी बढ़ा रहा है इससे फ्रांस समेत कई यूरोपीय और अमेरिकी देशों की चिंता बढ़ी है। भारत इन सभी देशों के साथ सम्बन्ध बनाने का प्रयास कर रहा है और अपने आर्थिक स्थिति को मजबूत करने के साथ साथ चीन की मोतियों की माला रणनीति वाली साम्राज्यवादी , विस्तारवादी नीति को नियंत्रित करने का भरसक प्रयास कर रहा है।

भारत द्वारा किये गए प्रयास सराहनीय है लेकिन चीन को कभी भरोसे के काबिल नही समझना चाहिए क्योंकि हाथी ओर ड्रेगन के सम्बंध सामान्य या तो हो नही सकते हैं और अगर सामान्य करना ही है तो चीन को अपनी साम्राज्यवादी महत्वकांक्षाओं को त्यागना होगा और अपने सभी पडौसी देशो के साथ गठजोड़ करके ,दुश्मनी मिटाकर,भुलाकर उनकी सम्प्रभुता ओर अखण्डता का सम्मान करना होगा ।

 

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