अम्मा कैंटीन से जुडऩे के बाद से बदला कई महिलाओं का जीवन
Ritesh Ranjan, INN/Chennai, @royret
पति की मौत के बाद विजयलक्ष्मी (43) और बच्चों के लिए कोई सहारा नहीं था। पति की मौत के बाद परिवार के भरण पोषण की जिम्मेदारी उसके ऊपर थी जिसके लिए वह स्थानीय महिलाओं द्वारा शुरू की गई एक स्थानीय समूह से जुड़ी लेकिन उससे गुजारा मुश्किल हो रहा था। तभी अम्मा कैंटीन योजना की शुरुआत की गई जिसका लाभ विजयलक्ष्मी जैसी कई महिलाओं और आमजन को मिला और उनकी जिन्दगी सवर गई। विजयलक्ष्मी के पति की मौत वर्ष 2012 में हो गयी थी। उसके पति एक पब्लिशिंग कंपनी में काम करते थे। अम्मा कैंटीन में काम करने के लिए विजयलक्ष्मी को नौ हजार रुपये प्रति माह वेतन मिलता है। इसी नौकरी के बल पर विजयलक्ष्मी ने अपनी बेटी की पढ़ाई पूरी करवाई जो अभी स्नातक की पढ़ाई पूरी कर रोजगार की तलाश कर रही और उसका बेटा अभी स्नातक के पहले वर्ष में है।
विजयलक्ष्मी जैसी ऐसी कई महिलाए है जिसका जीवन अम्मा कैंटीन से जुडऩे के बाद से बदल गया। ऐसी ही कहानी इल्लामा की है जिसके पति की मौत 7 साल पहले हो गयी थी। इल्लमा का पति नाले और सेप्टिक टैंक की सफाई का काम करता था। काम के दौरान उसके पति की मौत हो गई जिसके बाद से घर पर मानो पहाड़ टूट पड़ा। इल्लमा को तीन बेटियां हैं। पति की मौत के बाद इनका भरण पोषण इल्लामा के लिए मुश्किल हो गया था लेकिन अम्मा कैंटीन से जुडऩे के बाद उसके जीवन में ठहराव आया। आज उसकी एक बेटी पढ़ाई पूरी कर काम कर रही है और दो बेटियां पढ़ाई कर रही हैं।
अम्मा कैंटीन ने एक तरफ जहा गरीब तबके के लोगों के लिए सस्ते में भोजन मुहैया करने का काम किया तो वही दूसरी तरफ समाज में उपेक्षित, गरीब, बेसहारा और पीडि़त महिलाओं को भी सहारा देने का काम किया है। गरीब लोगों को आसानी से दो वक्त की रोटी मिल जाए इसके लिए 2013 में राज्य सरकार द्वारा संचालित चेन ऑफ रेस्टोरेंट अम्मा कैंटीन की शुरुआत की गई। पूर्व मुख्यमंत्री जयललिता को राज्य के लोग अम्मा कह कर सम्बोधित करते थे जिसका मतलब मां होता है। इसलिए लोगों को रियायती दर पर भोजन मुहैया करने के लिए अम्मा कैंटीन सुविधा की शुरुआत की गई। यह सुविधा तमिलनाडु की राजधानी चेन्नई में पहले शुरू की गई उसके बाद कई अन्य शहरों में शुरू की गयी। पहले तो इस कैंटीन में दक्षिण भारतीय भोजन जैसे इडली, साम्भर राइस, कर्ड राइस, पोंगल, लेमन राइस, करी लीफ राइस आदि दिए जाते थे जिसमें बाद में रोटी को भी शामिल किया गया। इन सारे खाद्य पदार्थों की कीमत एक से पांच रुपये तक है।
केवल चेन्नई में अम्मा कैंटीन की संख्या 400 थी जिसमें से अभी केवल 398 काम कर रहे है। ग्रेटर चेन्नई कॉर्पोरेशन द्वारा दिए आंकड़ों के मुताबिक अप्रैल 2021 से मार्च 2022 तक चेन्नई स्थित सभी अम्मा कैंटीन पर निगम द्वारा 114.21 करोड़ रुपये खर्च किए गए जिसमे अम्मा कैंटीन से कमाई 10.20 करोड़ रुपये की हुई यानि निगम को कुल 104.01 करोड़ रुपये का घाटा हुआ। निगम के वरिष्ठ अधिकारी का कहना है कि अम्मा कैंटीन सुविधा को लोगों की सेवा करने के उद्देश्य से शुरू किया गया था न कि लाभ कमाने के उद्देश्य से। अभी इन कैंटीन में लगभग चार हजार महिलाएं काम कर रही है। अम्मा कैंटीन में मुख्या तौर पर विधवा, गरीब, असहाय महिलाओं को रोजगार के अवसर दिए जाते है। विशेषकर के सेल्फ हेल्प ग्रुप से जुड़ी महिलाओं को अम्मा कैंटीन में नियुक्ति के लिए प्रमुखता दी जाती है। जिसकी उम्र सीमा 18-60 है। हालांकि अम्मा कैंटीन में नियुक्ति को लेकर विवाद होते रहे है। आरोप यह लगाया जाता है कि इन नियुक्तियों में उन महिलाओं को प्रमुखता दी जाती है जो सत्ताधारी पार्टी के करीबी हो या उनके लिए काम करते हैं।
हालांकि यह सुविधा खास तौर पर गरीब और असहाय लोगों के लिए शुरू की गई थी लेकिन भोजन की गुणवत्ता को देखते हुए आम और अच्छे घर के लोग भी इसका फायदा लेने लगे। निगम द्वारा प्राप्त आंकड़ों के मुताबिक चेन्नई स्थित विभिन्न अम्मा कैंटीन में 1,22,404 कंस्ट्रक्शन मजदूर, 27,561 इलेक्ट्रिशियंस, 22,291 प्लम्बर, 26,327 ऑटो ड्राइवर्स, 16,006 सरकारी कर्मचारी, 48,830 निजी कंपनियों में काम करने वाले कर्मचारी, 22,404 घरेलू महिला कर्मी, 33,227 बेरोजगार, 39,992 विद्यार्थी, 19,298 कचरा बीनने वाले, 34,744 वृद्धा, 36,942 सिक्योरिटी गार्ड है जो भोजन का लाभ लेते है।
वैसे प्रशासन का रवैया निराशाजनक रहा। सत्ता परिवर्तन के बाद काफी लोगों ने आरोप लगाया कि इसकी कई इकाइयों को बंद कर दिया गया जो की बदले की भावना से किया गया है क्योंकि यह जनकल्याणकारी सुविधा एआईएडीएमके सरकार द्वारा शुरू की गयी है। हालांकि इस बारे में निगम के अधिकारियों का कहना है कि इस कैंटीन को कई इलाकों में बंद किया गया लेकिन लोगों की कम संख्या को देखते हुए या फिर एक ही इलाके में स्थित दो कैंटीन जो पास पास है उन्हें बंद किया गया है। अम्मा कैंटीन शुरू करने के बाद से लोगों में इसे लेकर काफी उत्साह था। आईटी कंपनी में काम करने वाले लोग भी इसका लाभ लेते है। हालांकि कई लोगों का यह भी कहना है कि सरकार इन सुविधाओं के बजाय लोगों को इतना सुदृढ़ कर दें ताकि यही चीज वह रियायती दरों पर खाने के बजाय खुद परिवार के साथ बैठकर इसका लुत्फ उठाएं।