अजय कुमार, आईआईएन/बिहार,@Ajayjourno18
हमने अपने घर में काम बंटाने वाली महिलाओं, ड्राइवर, ट्यूशन टीचर आदि की सैलरी काट ली और बेबस होकर वह गांव की ओर लौट रहे हैं अब हम सहानुभूति दिखा रहे हैं, सत्ता और व्यवस्था को गलिया रहे हैं। वैसा यह हम भारतीयों की पुरानी आदत है।
कभी राजनीति से ऊपर उठकर इंसान बनकर सोचिए कि इन लोगों को दो महीने का पगार मिलता रहता तो क्या ये घर लौटते ? हम आय और व्यय को उसी तरह मेंटेन करते रहते तो वह क्यों सड़कों पर होते ? हां, सबकुछ बन्द होने से प्रभाव पड़ता लेकिन मानवता को मरते नहीं देखते ना !
वास्तविकता यह है कि हमें अपने अधिकारों के बारे में अधिक पता होता है लेकिन कर्तव्यों से कोई मतलब नहीं होता। ऐसे लोग लगभग हर जगह हैं।
दो साल पूर्व स्वच्छ भारत अभियान के तहत शौचालय निर्माण को लेकर कुछ पंचायतों के मुखिया से मुलाकात हुई थी, उन्होंने बताया था कि वो लोग भी शौचालय निर्माण के लिए मिलने वाली 12000 की राशि के लिए दावा कर चुके है।
जो सामर्थ्य हैं अथवा जिनके घरों में पहले से शौचालय बना हुआ था (चुना-पेंट करवाकर नया होने का दावा कर दिया)। पंचायत प्रतिनिधियों ने बताया कि ऐसे लोगों का यही कहना होता था कि सरकार 12 हजार दे रही है, आपको दिलवाने में क्या दिक्कत?
इसी तरह खाद्य सुरक्षा के तहत वो लोग भी 5 किग्रा/व्यक्ति अनाज उठाते हैं जिन्हें 200 मन से अधिक का अनाज उपजता है। हमने वोट दिया है तो लाभ क्यों नहीं मिलेगा जबकि उस लाभ की आवश्यकता हमें नहीं हैं वास्तविकता यह है कि हम कभी जनता बन ही नहीं पाते, हम हमेशा मतदाता बन लूटते हैं या लुटे जाते हैं।
बिहार की ही बात करें तो शराबबंदी के बाद राज्य की आर्थिक स्थिति जरूर बुरी हुई है लेकिन सामाजिक बदलाव देखने को मिल रहा ह। सड़कों पर नौटंकियां घटी है, घरेलू हिंसा में कमी आई है लेकिन हमलोग शराब के अवैध कारोबार में लिप्त है।
बेचते भी हैं और हम हिं पीते भी हैं फिर सरकार को गलियाते भी हैं। किसी भी योजना अथवा कार्यक्रम की भागीदारी सबके योगदान से ही सफल होता है लेकिन हम भोग करना जानते हैं लेकिन योगदान नहीं!
बोर्ड अथवा अन्य किसी प्रतियोगिता परीक्षा में बच्चों को चोरी व धांधली करने और कराने से नही रोकेंगे लेकिन सरकार को कोसेंगे। कोसिए, कुछ नहीं बदलेगा, ऐसे ही चलता रहेगा, सरकार बदलते रहिये, पीढियां बर्बाद होते रहेगी।
राजा के साथ-साथ प्रजा को भी राम-सा बनना होगा तभी रामराज्य आएगा केवल राजा से नहीं। हम जबतक ईमानदारी से समाज निर्माण नहीं करेंगे तब तक कुछ नहीं होने वाला, समाज ईमानदार होगा तभी उस समाज से कर्तव्यनिष्ठ नेता निकलेंगे।
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