सबरीमाला’ बदलेगा दक्षिण का राजनीतिक परिदृश्य

समाज की प्राचीन परंपराओं व प्रथाओं और धार्मिक स्थलों एवं आस्था को संरक्षण देने की बजाय उच्चतम न्यायालय इसमें हस्तक्षेप करने का काम कर रहा है।
सुष्मिता दास, आईएनएन /नई दिल्ली, @Infodea official
बरीमला मंदिर में प्रत्येक आयु की महिलाओं के प्रवेश पर सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय से उत्पन्न स्थिति दक्षिण में राजनीति का परिदृश्य बदल सकती है। सदियों से चली आ रही परंपरा को बचाए रखने के नाम पर उच्चतम न्यायालय के निर्णय का विरोध कर रहे श्रद्धालुओं ने इसे धर्म पर प्रहार मानते हुए लक्षित षडयंत्र माना है।
भारतीय जनता पार्टी व इसके मातृ संगठन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का श्रद्धालुओं के पक्ष में उतरकर सड़क व सबरीमलै पहाड़ी पर संघर्ष करने से यह प्रकरण धार्मिक के साथ ही राजनैतिक भी बन गया है। क्योंकि केरल की वामपंथी सरकार प्रत्यक्षत: परंपरावादियों के विरोध में आकर न्यायालय के निर्णय का क्रियान्यवन करवाने का प्रयास कर रही है। कांग्रेस द्वारा इस प्रकरण में तटस्थ भूमिका में रहने के कारण यह संघर्ष भाजपा बनाम अन्य हो चुका है। 
इंफोडिया की टीम ने तमिलनाडु और केरल स्थित मंदिर पहुंचे श्रद्धालुओं से बात की तो उनकी प्रतिक्रिया रोष भरी और न्यायालय के निर्णय को अनुचित बताने वाली रही। अधिकांश का कहना था कि हमारे धर्म व संस्कृति में किसी को भी छेड़छाड़ करने का अधिकार नहीं है। महिला श्रद्धालुओं से बात की गई तो उनमें से अधिकांश नहीं, बल्कि लगभग सभी का यही कहना था कि वे न्यायालय के निर्णय को स्वीकार नहीं करती हैं और मंदिर में रजस्वला आयुवर्ग की महिलाओं का प्रवेश वर्जित रहना चाहिए। 
चेन्नई निवासी अयपन भक्त जननी का स्पष्ट कहना था कि वह किसी भी कीमत पर भगवान की पूजा की रीति व विधिविधान में हस्तक्षेप सहन नहीं करेंगी। जननी की दो बेटियां है और वह अपनी दोनों बेटियों को बेटे से कम नहीं मानती लेकिन जहां भगवान अयपा मंदिर में जाने की बात आती है तो उनका कहना है कि इस आदेश के पश्चात भी उन्हें मंदिर नहीं जाने देंगी। 
केरल के पालकाड निवासी रोहिणी नायर का कहना है कि उनके परिवार में पीढिय़ों इस प्रथा को निभाया जा रहा है। वह नहीं चाहती कि उनकी परंपराओं व प्रथाओं से किसी प्रकार का छेड़छाड़ हो। सदियों से चली आ रही प्रथा का सरकार और न्यायालय को सम्मान करना चाहिए। उनका कहना है कि इस संदर्भ में महिलाओं को खुद अपने विवेक का इस्तमाल करना चाहिए कि वह यहां क्यों आना चाहती हैं? यदि उन्हें भगवान अय्यपा में सच्ची श्रद्धा है तो दर्शन के विधान व परंपरा को भी मानना चाहिए। 
प्रियंका शर्मा सबरीमलै प्रकरण से दुखी हैं। यद्यपि कि वह दिल्ली में रहती हैं, लेकिन देश—समाज की घटनाओं से जुड़ी रहती हैं। प्रियंका ने कहा कि उच्चतम न्यायालय के निर्णय से उन्हें निराशा हुयी। समाज की प्राचीन परंपराओं व प्रथाओं और धार्मिक स्थलों एवं आस्था को संरक्षण देने की बजाय उच्चतम न्यायालय इसमें हस्तक्षेप करने का काम कर रहा है। ऐसे में विरोधाभास पैदा होता है जो कई प्रकार की चुनौतियों को जन्म देता है। 
वो कहती हैं कि हजारों वर्षों से परंपरा है कि महिलाएं माहवारी के समय पवित्र कार्यों व मंदिर आदि जाने से दूर रहती हैं। सबरीमलै में भी रजस्वला आयुवर्ग की महिलाओं के प्रवेश निषेध वैज्ञानिक व तार्किक है। वो कहती है। सबरीमाला मंदिर जाकर भगवान अयप्पा के दर्शन करने जाने का उनका मन है लेकिन वह 50 की आयु के पश्चात ही जाएंगी। 
दिल्ली निवासी चन्दन शर्मा ने भी धार्मिक रीति रिवाजों में न्यायालय का हस्तक्षेप अनुचित मानते हैं और कहते हैं कि सनातन आस्था व परंपरा में न्यायालय का हस्तक्षेप विद्वेष उत्पन्न करता है। इससे बचा जाना चाहिए। 
तमिलनाडु के कोयम्बत्तूर के व्यवसायी प्रकाश इस पूरे प्रकरण का दोषी मीडिया को ठहराते हुए कहते हैं कि मीडिया को जनता की भावना नहीं दिखती, लेकिन वह उन लोगों के लिए अधिक चिंतित है जिनका धर्म, भगवान और श्रद्धा से कोई सरोकार नहीं है। प्रकाश दस साल की उम्र से ही सबरीमला दर्शन के लिए आ रहे हैं। उन्होंने कहा कि उच्चतम न्यायालय के अनेक निर्णय हैं, जो धूल फांक रहे हैं और सरकार उन पर कदम नहीं उठाती। लेकिन सबरीमलै में सरकार को ऐसी क्या जल्दी पड़ी थी कि वह भक्तों के उत्पीड़न की कीमत पर इसे लागू करवाना चाहती है। क्या केरल के मुख्यमंत्री पी. विजयन ने मुल्लैपेरियार डाम पर सर्वोच्च न्यायालय का फैसला माना? 
हैदाबाद से आए श्रद्धालुओं के जत्थे ने कहा कि सबरीमाला के राजा भगवान अय्यपा है। उनके आगे किसी सर्वोच्च न्यायालय या सरकार की कोई अहमियत नहीं है। इस जत्थे में कुछ महिलाएं भी थी उनसे जब महिलाओं के मंदिर में प्रवेश के बारे में पूछा गया तो उन्होंने कहा कि अयप्पा में मंदिर में आना है तो महिलाओं को उन प्रथाओं का पालन करना होगा।
हैदराबाद से आई एक महिला ने कहा कि उनके गर्भाशय को 40 साल की उम्र में निकाल दिया गया है। लेकिन इसके बावजूद भी वह यहां 52 साल की उम्र गयीं। जिन्हें भगवान के दर्शन करने आना है तो रीति—रिवाज को मानना चाहिए वर्ना नहीं आना चाहिए।
पंजाब मूल की रहने वाली जसबीर कौर का कहना है कि भगवान अय्यपन पर उनकी आपार श्रद्धा है। यद्यपि के वो सबरीमलै कभी नहीं गयीं, लेकिन वह भी नहीं चाहती कि प्राचीन सनातन परंपराओं में किसी प्रशासन व न्यायालय का हस्तक्षेप हो। 
जसबीर कौर का सबरीमलै प्रकरण पर इतना जागरूक होना और मुखर होना कुछ कहता है। इसका अर्थ यह हुआ कि यह प्रकरण केवल केरल के लोगों को ही प्रभावित नहीं कर रहा, बल्कि देश के विभिन्न् भागों में इसका व्यापक प्रभाव है। विशेषकर दक्षिण के राज्य कर्नाटक, तमिलनाडु, केरल, तेलंगाना और आंध्रप्रदेश में इस प्रकरण का विशेष प्रभाव पड़ा है। 
चूंकि सबरीमलै मंदिर प्रतिवर्ष दर्शन करने वालों की संख्या 5 करोड़ से अधिक होती है और श्रद्धालु इन सभी राज्यों से आते हैं। इसलिए इस प्रकरण का प्रभाव इन सभी राज्यों पर पड़ सकता है। कर्नाटक व केरल में मंदिरों के सरकारी नियंत्रण में होने और मंदिरों की आय को अन्य धर्म के लोगों पर व्यय करने को लेकर पहले ही लोग प्रश्न खड़ा करते रहे हैं। इधर, सबरीमलै प्रकरण में न्यायालय के निर्णय से लोग यह प्रश्न कर रहे हैं कि हिंदू परंपराओं व धर्मस्थानों को ही निशाना क्यों बनाया जा रहा है और भाजपा के अतिरिक्त अन्य दल अल्पसंख्यक तुष्टिकरण के कारण इस प्रवृत्ति् के विरुद्ध स्वर मुखर करने के बजाय इसे बढ़ावा दे रहे हैं। 
धर्म व परंपरा पर आघात मानते हुए बड़ी संख्या में दक्षिण के लोगों का धुव्रीकरण हो रहा है। राजनैतिक विश्लेषकों का मानना है कि जब भी बहुसंख्यक समुदाय का धार्मिक ध्रुवीकरण होगा तो सीधा लाभ भाजपा को होगा। कर्नाटक में भाजपा पहले से ही बड़ा जनाधार रखती है, जबकि केरल पिछले 10 वर्ष से उसके मत प्रतिशत में निरतंर वृद्धि हो रही है। ऐसे में यह अनुमान लगाना अव्यवहारिक नहीं है कि सबरीमलै प्रकरण दक्षिण की राजनीति में भाजपा की मजबूती का कारण बन सकता है। 
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