‘वसुधैव कुटुम्बकम’ भारतीय परिवार व्यवस्था के लिए मार्गदर्शक ज्योति रहा है- उपराष्ट्रपति

आईआईएन/नई दिल्ली, @Infodeaofficial 

पराष्ट्रपति, श्री एम. वेंकैया नायडू ने आज कहा कि ‘वसुधैव कुटुम्बकम’ चिरकाल से भारतीय परिवार व्यवस्था के लिए मार्गदर्शक ज्योति रहा है और हमारा सदाचार और सामाजिक-सांस्कृतिक संरचना का ताना-बाना इस ज्ञानविषयक उक्ति के इर्द-गिर्द बुने जाते हैं।

नई दिल्ली में आज, ग्लोबल मदर्स अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन – 2019 का उद्घाटन करते हुए, ‘वसुधैव कुटुम्बकम – पारिवारिक पद्धति और माँ की भूमिका’; पर उपराष्ट्रपति ने सम्मेलन के विषय पर प्रसन्नता व्यक्त करते हुए कहा कि यह सम्मेलन मातृत्व के लिए एक उत्सव के समान है। उन्होंने कहा, ‘पूरी दुनिया माताओं की ऋणी है और यही कारण है कि सभी धर्मों में और दुनिया के सभी हिस्सों में माताएं प्रासंगिकता और सम्मान का एक विशेष स्थान रखती हैं।‘

वेद और पुराणों जैसे विभिन्न प्राचीन ग्रंथों को उद्धृत करते हुए, श्री नायडू ने कहा कि महिलाओं का सम्मान हमारी सभ्यता के केंद्र में रहा है। उन्होंने आगे कहा कि किसी भी परिवार में, चाहे वह एकल हो या संयुक्त, एकजुट हो या विस्तृत; मां हमेशा उसके केंद्र में रहती है। वह एक ऐसी बंधन है जो परिवार को एक साथ रखती है। मां अपने समर्पण के माध्यम से, मकान की चार दीवारों को एक घर के रूप में परिवर्तित कर देती है, जहां पर प्यार, स्नेह, दूसरों के लिए सम्मान, निस्वार्थ भाव से परिवार, समाज और देश के प्रति योगदान की भावना मौजूद रहता है।

इस बात पर प्रकाश डालते हुए कि सभी नदियों का नाम महिलाओं के नाम पर रखा गया है, उपराष्ट्रपति ने कहा, ‘हमारी संस्कृति में, महिलाओं को न केवल पुरुषों के बराबर माना जाता है, बल्कि कई मामलों में उनसे श्रेष्ठ भी माना जाता है’।

हालांकि, उन्होंने कहा कि कहीं न कहीं हमारा मजबूत मूल्य कमजोर हुआ है। उन्होंने महिलाओं के खिलाफ हिंसा में वृद्धि और बुजुर्ग माताओं के परित्याग और दुर्व्यवहार पर भी चिंता व्यक्त किया।

उन्होंने महिला सशक्तीकरण के लिए सरकार द्वारा उठाए गए कई कदमों को सूचीबद्ध किया, जैसे कि ‘बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ’, स्थानीय स्वशासन में महिलाओं को दिया जा रहा 50 प्रतिशत आरक्षण इत्यादि और कहा कि महिलाओं को सुरक्षा देने के लिए और उन्हें एक समान मंच प्रदान करने के लिए अभी और भी बहुत कुछ करने की आवश्यकता है।

महिलाओं को समान अधिकार देने के महत्व पर बल देने के लिए, उपराष्ट्रपति ने महात्मा गांधी का हवाला दिया, जिन्होंने एक बार लिखा था कि, “हम जिस प्रकार से अपनी महिलाओं के साथ व्यवहार करते हैं वह हमारी संस्कृति की समृद्धि का एक संकेतक होता है”। उपराष्ट्रपति ने कहा कि महिलाओं के कमजोर होने से परिवार, समाज और देश भी कमजोर होगा।

परिवार के महत्व पर प्रकाश डालते हुए, श्री नायडू ने कहा कि हमारे पूर्वजों ने सबसे अच्छा परिवारिक मॉडल विकसित किया है जो कि बलिदान, सम्मान और एकजुटता के मूल्यों पर आधारित है। उन्होंने कहा, “भारत अपनी मजबूत पारिवारिक मूल्य प्रणाली के कारण पूरे विश्व के लिए एक आदर्श साबित हो सकता है जिसने समय की कसौटी पर सफलतापूर्वक काम किया है।”

यह विचार रखते हुए कि भारतीय परिवार प्रणाली न केवल व्यक्तिवाद को हतोत्साहित करती है बल्कि सामूहिकता को प्रोत्साहित करती है, श्री नायडू ने कहा कि भारत अपने संयुक्त परिवार प्रणाली के मजबूत और सहायक ढांचों के माध्यम से आगे बढ़ा है और वर्तमान कद तक पहुंचने में सफल हुआ है। उन्होंने कहा कि सामाजिक कुरीतियों को दूर करने के लिए एक मजबूत परिवारिक प्रणाली संभवत: सबसे अच्छा उपाय साबित हो सकती है।

संयुक्त परिवार प्रणाली की विशेषता पर प्रकाश डालते हुए उपराष्ट्रपति ने कहा कि यह जिम्मेदारी की भावना उत्पन्न करता है, सामंजस्य की प्रवृत्ति और बच्चों में अनुशासन के लिए प्यार की भावना, कम उम्र से ही विकसित करता है। उन्होंने कहा कि बड़ों का सम्मान करना और उनसे प्यार करना, महत्वपूर्ण निर्णय लेते समय उनकी अनुभवी बुद्धि का सलाह लेना, जैसे कुछ अभ्यास हैं, जिनका पालन भारतीय संयुक्त परिवारों में किया जाता है।

हालांकि, उपराष्ट्रपति ने यह भी माना कि शहरीकरण और आधुनिकीकरण के आगमन के साथ ही, भारत में भी, संयुक्त परिवारों का विखंडन हो रहा है। उन्होंने कहा, “लोग नौकरियों की तलाश में पलायन कर रहे हैं और इस प्रकार से सामाजिक-आर्थिक परिदृश्य में नए परिवारिक प्रणाली उभर कर सामने आ रहे हैं, और वे पारंपरिक संयुक्त परिवार मॉडल की जगह ले रहे हैं”।

यह स्वीकार करते हुए कि परिवर्तन अपरिहार्य है, श्री नायडू ने कहा कि, परिवार का जैसा भी प्रणाली हो, बुनियादी मूल्यों ने सदियों से भारतीय परिवारों को एक साथ बनाए रखा और पोषित किया है, इसलिए उनसे कभी भी समझौता नहीं किया जाना चाहिए। उन्होंने सलाह दिया, भले ही परिवार शारीरिक रूप से बहुत दूर रह रहे हों, फिर भी उन्हें हमेशा एक-दूसरे के करीब रहना चाहिए, दृढ़ता के साथ प्रेम, भाईचारा और बलिदान के शाश्वत मूल्यों में बंधे रहना चाहिए।

उपराष्ट्रपति ने युवा पीढ़ी से दादा-दादी के साथ समय बिताने का भी आह्वान किया। उन्होंने कहा, “मोबाइल फोन और टीवी के कारण दादा-दादी को पर्याप्त समय नहीं देने की नकारात्मक प्रवृत्ति पर अंकुश लगाने की जरूरत है।”

उन्होंने अत्यधिक प्रासंगिक सामाजिक विषय पर इस सम्मेलन को आयोजित करने के लिए इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र (आईजीएनसीए) की सराहना की। आईजीएनसीए द्वारा आयोजित किए जा रहे इस दो दिवसीय सम्मेलन को फाउंडेशन फॉर होलिस्टिक डेवलपमेंट इन एकेडमिक फील्ड (एफएचडीएएफ) और भारतीय शिक्षण मंडल (बीएसएम) की साझेदारी में किया जा रहा है।

इस अवसर पर, डॉ. सच्चिदानंद जोशी, सदस्य सचिव, आईजीएनसीए, श्री मुकुल कानितकर, राष्ट्रीय संगठन सचिव, बीएसएम, श्रीमती माधुरी सहस्रबुद्धे, अध्यक्षा, एफएडीएफ, सुश्री गीता गुंडे और मध्य एशियाई और यूरोपीय देशों की कई माताएं उपस्थित गणमान्य लोगों में शामिल थीं।

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