विकास के लिए शिक्षा व्यवस्था में आधुनिकता के साथ पौराणिक प्रणाली का भी हो समावेश

भरत संगीत देव, आईएनएन, नई दिल्ली, @infodeaofficial

गर भारत गणराज्य को अपनी संस्कृति और सभ्यता बचाए रखनी है और आने वाली पीढ़ी को बेहतर शिक्षा का माहौल देना है तो यह जरूरी है कि शिक्षा व्यवस्था में हम आधुनिकता के साथ-साथ अपने पौराणिक प्रणाली को भी सहेज कर चलें। जिससे की हम अपनी आगे की पिढ़ी को बौद्धिक शिक्षा के साथ-साथ आध्यात्मिक शिक्षा के बारे में जागरुक करें। आज भारत ही नही, बल्कि समस्त विश्व की एक सार्वभौम समस्या है की जो शिक्षा हमारी आने वाली पीढियों को दी जा रही है, वह मात्र बौद्धिक बनकर रह गयी है। ऐसी शिक्षा में किसी भी प्रकार की आध्यत्मिक शिक्षा का समावेश नही दिखता है। हम अतीत का इतिहास तो पढ़ाते है, लेकिन भविष्य निर्माण की शिक्षा नही देते है। प्राचीन शिक्षा प्रणाली जो भारत में थी यानी आश्रम व्यवस्था। उस शिक्षा प्रणाली पर यदि थोड़ा सा ध्यान दिया गया होता, तो आज के समाज के युवको की स्थिति कुछ और ही होती। उनमे नैतिकता और मानवता की समझ और इमानदारी का गुण आज से कही बेहतर ढंग से दिखाई पड़ता जो आज वर्तमान में युवा वर्ग और बच्चो में पतन की और जाता दिखाई पड राह है। पुरानी पद्धति वाली शिक्षा का तत्व भी शामिल किया जाये तो आज हर एक मनुष्य के अंदर सेवा का भाव, मानव कल्याण का भाव होता। योग शिक्षा या फिर आद्यात्मिक शिक्षा के द्वारा समाज में अभूतपूर्व बदलाव लाया जा सकता है। ऐसा इसलिए, क्योंकि ऐसे लोगो में असामाजिकता फ़ैलाने का भाव नही के बराबर होता है। इसके साथ कुछ अन्य पहलु भी है, जिस पर हमे ध्यान देने की नितांत आवश्यकता है। अन्यथा मनुष्य अपनी राह से भटक सकता है जैसा की वर्तमान में देखने को मिल राह है।
आज पढ़े लिखे युवा शिक्षित व्यक्ति के पास भी यदि संवेदना नही है, एक दुसरे का भाव समझने की क्षमता नही है और परहित की भावना नही है, तो हम किताबी तौर पर कितने भी काबिल क्यों न हो यह सारा ज्ञान बेकार है। ये सभी विधाए आपकों एक काबिल इंसान तो बना देती हैं पर अच्छा व्यक्ति नहीं जो कि एक बेहतर समाज व राष्ट्र निर्माण के लिए काफी जरूरी है। पढ़ लिख कर कई बार यह जानना तो दूर की बात है, आध्यात्मिकता के मार्ग में भी सही शिक्षा का मिलना नितांत आवश्यक है। आजकल देश में अनेको प्रकार के ढोंगी बाबो का मेला सा लगा हुआ है जिनके चंगुल में आकर लाखों व्यक्ति फंस जाते है। जिस तरह से विज्ञानं का कोई छात्र गलत मिश्रनो का प्रयोग करता है तो वह विनाशकारी साबित हो सकता है और कोई काम का नही रह जाता है उसी प्रकार से बेबुनियादी ज्ञान और शिक्षा का कोई महत्व नही रह जाता है। मौजूदा केंद्र सरकार हमारे पौराणिक महत्वों को बेहतर तरीके से समझाती है। हमारे मौजूदा प्रधानमंत्री को आध्यात्म और नवीन तकनीक दोनों का अनुभव है और उसे वह बढ़ावा भी देते हैं। अगर वह इस दिशा में कोई कदम उठाते हैं तो उनकी सरकार में समाज सुधार और बेहतर राष्ट्र निर्माण के लिए इससे बेहतर कदम कोई नहीं हो सकता।

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