जनता में बढ़ रहा असंतोष फिर उठेगी बदलाव की बयार
INN/Patna, @Infodeaofficial
बिहार में विधानसभा चुनाव भले ही दो साल बाद हो, लेकिन लोकसभा चुनाव 2019 के नजदीक आने के साथ ही सियासत के गलियारे सरगर्म होते जा रहे हैं। सत्ता धारी जनता दल—यू और भाजपा तो समर में अपनी आक्रामक भूमिका की तलाश में जुट ही गये हैं। हालांकि राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) के राज्य के अन्य घटक दलों में कशमकश बढ़ गयी है। जद—यू और भाजपा में भी सीट बंटवारे को लेकर आंखमिचौली चल रही है। इधर एनडीए के एक और घटक राष्ट्रीय लोक समता पार्टी (रालोसपा) भी सीट बंटवारे में अपनी स्थिति मजबूत करने के लिए जुबानी तीर चलाने लगी है।
इन्फोडिया से विशेष बातचीत में रालोसपा के कार्यकारी अध्यक्ष नागमणि कुशवाहा ने तो अपने ही सहयोगी जद—यू व भाजपा पर निशाना साधते हुए सरकार को कटघरे में खड़ा कर दिया। बातचीत में उन्होेंने कहा कि प्रदेश की जनता ने जिन हाथो में शासन की कमान सौपी थी, वे जन अपेक्षाओं पर बिलकुल अक्षम साबित हो रहे हैं। जनता में असंतोष और आक्रोश बढ़ता जा रहा है।
वह दिन दूर नहीं जब जनता इन्हें सिंहासन से उठा रसातल पर पटक देगी। कुशवाहा ने कहा की विकास के दावों में आयी सरकार ने जनता के लिए ज़मीनी तौर पर कुछ भी नहीं किया। केवल वादों और दावों से काम होता तो आज हमारा प्रदेश ही नहीं बल्कि हमारा देश विकसित राज्यों की श्रेणी में आता।
मौजूदा राजनैतिक गतिरोध के सवाल पर उन्होंने कहा कि बिहार में अगला मुख्यमंत्री कोई बनेगा तो उनके पार्टी के अध्यक्ष उपेंद्र कुशवाहा है। इसके लिए उन्हें अन्य पार्टियों से सहयोग लेना पड़े तो उससे भी उन्हें गुरेज नहीं होगा। उन्होंने कहा की जनता में बढ़ते असंतोष और विकास की दौर में प्रदेश की सबसे पीछे रह जाने स्थिति को देखते हुए उनकी पार्टी ने सर्वसम्मति से इसके बारे में फैसला लिया है। हमारे अध्यक्ष बिहार के विकास को लेकर काफी गंभीर है। आने वाले दिनों में कई अहम् और कड़े फैसले देखने व सुनने को मिलेंगे।
एनडीए के घटक दल की सरकार के खिलाफ बोलने पर गठबंधन से अलग होने के सवाल पर कार्यकारी अध्यक्ष ने कहा कि अगर भाजपा सही मायने में विकास चाहती है तो उनके साथ आएगी। अगर नहीं तो उनका साथ देने के लिए कई पार्टिया हैं जो प्रदेश के विकास को लेकर गंभीर है। उन्होंने यह संकेत दिया की आगामी लोकसभा चुनाव में ही स्थिति साफ़ हो जाएगी।
कुशवाहा ने कहा कि बिहार में शिक्षा का स्तर तभी सुधर सकता है, जब राज्य के बड़े अधिकारी, मंत्री, विधयक व सांसदों के बच्चे सरकारी स्कूलों में पढ़ें। बिहार की गिनती बीमारू राज्यों की श्रेणी में की जाती है। इसका प्रमुख कारण यहां की शिक्षा व्यवस्था की बिगड़ती हालत और रोजगार के अवसरों की अनुपलब्धता। बिहार वह प्रदेश है जहा नालंदा जैसे विश्वविद्यालय थे जिसमे विदेशो से लोग पढ़ने आते थे। लेकिन आज इस राज्य की ऐसी गाठ हो गयी है के यहाँ के विधार्थियो को पढ़ने के लिए प्रदेश छोड़कर बहार के राज्यों का रुख करना पड़ता है।
अपनी पार्टी के अध्यक्ष उपेंद्र कुशवाहा की योजनाओ और नीतियों का जिक्र करते हुए कार्यकारी अध्यक्ष कहा की हम बिहार को फिर से विद्या का केंद्र के रूप में स्थापित करना चाहते हैं। यह तभी संभव है जब सत्ता और प्रसाशन में बैठे लोग इसके बारे में गंभीरता से सोचें। हम अगर सत्ता में आये तो सरकारी अधिकारियों और मंत्रियो के बच्चे के लिए सरकारी स्कूलों में पढ़ाई को अनिवार्य कर देंगे। उन्होंने कहा की बिहार में मेधावी छात्रों की कमी नहीं है। कमी है तो बेहतर व्यवस्था और संसाधनों की। सरकार द्वारा शिक्षकों को मिड डे मील योजना में भोजन बनाने और वितरण व्यवस्था पर रोष प्रकट करते हुए उन्होंने कहा कि शिक्षको का काम केवल पढ़ाना होना चाहिए। उन्हें नाहक ऐसे कार्यो में लगा कर विद्यार्थियों के भविष्य के साथ खिलवाड़ किया जा रहा है। हम अगर सत्ता में आये तो प्रदेश हर जिले में मेडिकल और इंजीनियरिंग कॉलेज खोलने का प्रयाश करेंगे और उसे हर हद तक पूरा भी करेंगे।
50 वर्षों में प्रदेश में कोई सरकारी व निजी कंपनी नहीं खुली
प्रदेश के बेरोजगार युवाओं के बारे में सवाल पूछे जाने पर उन्होंने कहा कि प्रदेश में 1962 के बाद एक की सरकारी व निजी कंपनी नहीं खुली है। इसका खामियाज़ा यहां के युवाओं को भुगतना पद रहा है। जो थे उन्हें भी किसी न किसी करने से बंद करा दिया गया। अब परिस्थिति यह है कि प्रदेश के युवाओं को रोजगार के लिए अन्य राज्यों का रुख करना पद रहा है। अपने प्रदेश को विकसित करने के बजाय यहां के प्रतिभावान युवा अन्य राज्यों के विकास में योगदान दे रहे हैं। प्रदेश की सरकार ने भी यहां घरेलू उद्योग, एमएसएमई, निजी कंपनियों के निवेश के लिए कोई सुदृढ़ योजना नहीं बनायीं और न ही इसमें रूचि दिखाई। नतीजा यह है हम रोजगार और विकास के क्षेत्र में आज भी वही खड़े हैं जहां आज से 25-30 साल पहले थे।