विशेष फर्टिलिटी ट्रीटमेंट का करिश्मा
आईएनएन/नई दिल्ली, @Infodeaofficial
सुनने में भले ही किसी को यह बाद अजीब लगे लेकिन यह सोलह आने सच है कि विज्ञान और विश्वास के चमत्कार ने दादी-पोता खिलाने की उम्र में तमिलनाडु की एक उम्रदराज महिला की गोद हरी कर दी। राज्य में यह पहला अवसर है जब विशेष एवं प्रभावी फर्टिलिटी चिकित्सा पद्धति एवं अपने दृढ़ विश्वास की बदौलत एक निःसंतान महिला को 63 की उम्र में मां बनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ है।
इस बारे में जानकारी देते हुए चेन्नई के बालाजी फर्टिलिटी सेंटर की प्रबंध निदेशक डॉ. डी. सेंतामरै सेल्वी ने कहा कि 42 साल तक संतान सुख से वंचित रहने के बाद अपने उम्र के तीसरे पड़ाव पर इस महिला ने 3.25 किलोग्राम की एक स्वस्थ बच्ची को जन्म दिया। जिसका वजन 3.25 किलोग्राम है। उन्होंने कहा कि हालांकि महिला के दस साल पहले रजोनिवृत्ति की स्थिति में होने के कारण यह कार्य आसान नहीं था लेकिन संतान प्राप्त करने की उसकी तीव्र इच्छा एवं हमारे प्रयास ने इसे सरल एवं सफल बना दिया।
डॉक्टर सेल्वी ने बताया कि गोबिचेट्टीपालयम निवासी सेंतमिल सेल्वी (63) एवं कृष्णन (71) नामक इस सौभाग्यशाली दंपती दो साल पहले उनसे संपर्क कर संतान सुख प्राप्त करने की इच्छा प्रकट की थी। इस दौरान उन्होंने बताया था कि उनका विवाह 42 साल पहले ही हो गया था लेकिन शादी के इतने सालों बाद भी उन्हें कोई संतान नहीं हुई। उन्होंने बताया कि ऐसा नहीं कि उन्होंने इसका कोई इलाज नहीं कराया लेकिन लाख कोशिशों के बावजूद उन्हें संतान सुख नहीं मिल सका।
डॉक्टर सेल्वी ने बताया कि हालांकि उन्हें इस उम्र में गर्भधारण की जटिलताओं के बारे में अच्छी तरह पता था इसके बावजूद महिला की प्रारंभिक जांच कराने के बाद उन्होंने पाया कि वह मां बनने के लिए पूरी तरह उपयुक्त है। इसके बाद इस प्रक्रिया के लिए उस महिला को मानसिक रूप से तैयार करने के लिए पहले उसकी व्यापक मनोवैज्ञानिक एवं चिकित्सकीय काउंसलिंग की गई इसके बाद विशेष मेडिकल केयर के साथ उसका दो साल तक इलाज किया गया।
इलाज के दौरान उसे मधुमेह होने की जानकारी मिलने के बाद आईवीएफ की प्रक्रिया शुरू करने से पहले उसका मधुमेह स्तर सामान्य किया गया। इसके बाद गर्भाशय की जांच में भी पता चला कि उसका गर्भाशय पूरी तरह से स्वस्थ एवं आईवीएफ के लिए उपयुक्त है। हालांकि उन्होंने यह भी बताया कि इस उम्र में यह प्रक्रिया जोखिम भरी होने के कारण महिला को पूरी तरह से चिकित्सकीय देखरेख में रखा गया था।
आखिरकार समय पूरा होते ही उसने एक स्वस्थ बच्ची को जन्म दिया। उन्होंने यह भी कहा कि जीवन के इस पड़ाव पर संतान सुख नसीब होना अगर करिश्मा नहीं तो किसी करिश्मे से कम भी नहीं है।
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