भारतीय देसी गाय की दीवानी दुनिया, भारत में उपेक्षित
चलती फिरती डॉक्टर है देसी गाय, उत्पादन संबंधी विशेषता और उत्पादों के औषधीय गुणों के कारण विश्व के अग्रणी दुग्ध उत्पादक देशों में बढ़ी मांग
श्रेया जैन, आईएनएन/चेन्नई, @Infodeaofficial
भारत की देसी नस्ल की गायों की मांग पूरी दुनिया में बढ़ रही है। इसका कारण देसी गाय की विशेषताएं हैं। विदेशी नस्ल की गायों के उत्पाद में स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं उत्पन्न करने वाले तत्व पाये जाते हैं, वहीं भारतीय देसी नस्ल् की गाय का दूध औषधीय गुणों वाली सिद्ध हुयी है। देसी गाय चलती फिरती डॉक्टर है।
जलवायु परिवर्तन की समस्या से पूरा विश्व जूझ रहा है और यह मानव के साथ ही पशुओं की प्रजनन व उत्पादन क्षमता पर प्रतिकूल प्रभाव डाल रही है। विश्व की अनेक विदेशी नस्लों की गायें इससे प्रभावित हो रही हैं, हालांकि भारतीय देसी गाय जलवायु परिवर्तन से आने वाली समस्याओं ने न केवल बहुत सीमा तक अप्रभावित है, बल्कि जलवायु परिवर्तन के कारण मानव पर पड़ने वाली अनेक हानिकारक स्थितियों को दूर करने में भी सहायक है। अत्यंत गर्म वातावरण सहने की क्षमता, कीटों से बचाव की क्षमता और पर्याप्त चारा नहीं मिलने के बावजूद दूध देने की विशेषता के कारण आस्ट्रेलिया से लेकर ब्राजील तक भारतीय देसी नस्ल की गायों की मांग है।
हालांकि विदेशों में भारतीय देसी नस्ल की गायों की मांग उत्पादन क्षमता को देखते हुए है, लेकिन इन गायों की विशेषता उत्पादन से अधिक दूध सहित उसके उत्पाद के गुणों से है। अनेक शोधों से पता चलता है कि देसी गाय चलती-फिरती डॉक्टर है। भारतीय नस्ल की गायों के दूध, घी, गोमूत्र एवं गोबर में जो गुण हैं वह विदेशी प्रजाति में नहीं। गाय के दूध, दही, घी एवं अन्य उत्पादों के प्रयोग से बीमारी खत्म की जा सकती है।
राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के अखिल भारतीय गोसेवा प्रमुख शंकरलाल ने कहा, ‘भारतीय नस्ल की गायों के दूध में मानव शरीर के विकास के लिए आवश्यक कैल्सियम, सोडियम, पोटेशियम, लोहे, खनिज तत्व मौजूद हैं। इसमें विटामिन भी प्रचुर मात्रा में होती है। गो दूध की बनाई छाछ एवं दही के नित्य सेवन से वात, पित्त एवं कफ की समस्याओं को दूर किया जा सकता है। गो मूत्र दो-दो चम्मच की मात्रा में सुबह शाम सेवन करने से बढ़ा हुआ कोलेस्ट्रोल कम हो जाता है। गोमूत्र में स्थित विभिन्न खनिज पदार्थ हृदय के लिए रसायन का कार्य करते हैं। इसके सेवन से रक्त का प्रभाव नियमित तथा पर्याप्त मात्रा में होता रहता है। उन्होंने कहा कि देसी गाय का शुद्ध घी बुद्धि, कांति और स्मरण शक्ति दायक बढ़ाने वाली है। देसी गाय का गोबर सभी प्रकार के चर्म रोगों की श्रेष्ठ औषधि है। यह मधुमक्खी, बिच्छु आदि अनेक कीड़ों के काटने से फैले विष को भी दूर करता है। जले हुए पर भी गोमय रस लगाना लाभकारी है।’
चक्र डेरी के निदेशक डॉ. बीएलएन शास्त्री बताते हैं, ‘ देसी गाय के घी में उच्च स्तर की एचडीएलसी, गुणकारी वसा होता है, जो हृदय को स्वस्थ रखने में सहायक होता है। देसी गाय के उत्पादों में औषधीय गुण होते हैं। देसी गाय वरदान है। इसके उत्पाद एक तो सस्ते होते हैं और प्रभावकारी भी। देसी गाय के उत्पादों में औषधीय गुण होने के कारण कैंसर सहित कई भयानक रोगों का उपचार किया जा रहा है।’ बता दें कि भारत में भले ही देसी गायों की अनेक नस्लें उपेक्षा के कारण नष्ट हो गयी हैं अथवा नष्ट होने की स्थिति में हैं। 2012 में 19वीं पशु गणना के अनुसार भारत में पशुओं की संख्या 4 प्रतिशत घटकर 19.09 करोड़ ही रह गयी है। देसी पशुओं की संख्या में 8.9 प्रतिशत की गिरावट आयी है।
हालांकि मोदी सरकार बनने के बाद देसी नस्ल के पशुओं के संवद्र्धन की दिशा में कदम उठाये गये हैं। केंद्र सरकार ने राष्ट्रीय गोकुल मिशन की स्थापना की है। इसके अंतर्गत भारतीय देसी नस्ल के पशुओं का संवद्र्धन पेशेवर फार्म प्रबंधन, उत्तम पोषण और उनकी उत्पादकता में वृद्धि की संभावना को चिहिृनकरण के माध्यम से किया जाएगा। देसी गीर गाय की आपूर्ति करने वाले गुजरात के रसदन रजवाड़े के सत्यजीत कच्चर बताते हैं कि भारत की देसी नस्ल की गायों की मांग दक्षिण एशिया के देशों, अफ्रीका, दक्षिण अमेरिका, ब्राजील व अर्जेंटीना आदि में बढ़ रही है। ये सारे देश दुग्ध उत्पादन के लिए विश्व के शीर्ष देशों में आते हैं।
नेपाल सरकार ने भारत सरकार से 1000 गीर गाय भेजने का अनुरोध किया है। ब्राजील में गीर और आंगोल जैसी देसी नस्ल की गायों का मूल्य 5 से 6 करोड़ रुपए तक मिल सकता है। भारतीय पशु निर्यातक विदेशों में देसी गाय के उत्पादन के लिए भ्रूण निर्यात कर रहे हैं। एक भ्रूण का मूल्य 2 करोड़ रुपए तक मिल जाता है। ब्राजील ने गुजरात के भावनगर में इसके लिए एक प्रयोगशाला भी बनायी है।
1927 में पहली बार भारत से 100 गीर गाय ब्राजील भेजी गयी थी। ब्राजील में भारतीय देसी नस्ल की गीर को जीर कहा जाता है। भारत की गीर व आंगोल गाय से अमेरिका में गाय की नस्लें तैयार की गयीं। केंद्र सरकार भारत से केवल नस्ल तैयार करने और पालने के लिए गाय, बछड़ा, बछिया ओर जनन द्रव्य (जर्मप्लाज्म) निर्यात करने की अनुमति देती है। भारत में गायों में 37 देसी नस्ल सामान्यतया पाये जाते हैं। इनमें पंजाब के फिरोजपुर व अमृतसर जिले के साहीवाल, लाल सिंही, गीर, राठी, हरिआना, कांकरेज, आंगोल, थारपरकर व देवनी मुख्य हैं।