कचरे का बेहतर प्रबंधन न कर खुद तैय्यार कर रहे है प्रकृति व अपने लिए विनाशक
आर. रंजन, आईएनएन, चेन्नई;

प्रकृति व जीवन के लिए खतरनाक है मानव निमृत कचड़ा
विशेषज्ञों का कहना है कि घर से निकले वाले कचड़े में विभिन्न प्रकार के पदार्थ जैसे प्लास्टिक, लौह, कागज, जैविक व कई अन्य मिश्रित होतें हैं। इन कचरों को गलने और नष्ट होने में काफी समय लगता है। यही नहीं कई पदार्थ जैसे प्लास्टिक व अन्य तो सालों बीतने के बाद नष्ट नहीं होते। इन कचरों की वजह से आस-पास का वातावरण तो दुषित होता ही है साथ ही भुतल जल पर भी इसका हानिकारक प्रभाव पड़ता है। विशेषज्ञों का कहना है कि औद्योगिक इाकइयों से जो कचरा बनता है वहां इसके निस्तारण की कई प्रक्रिया के बाद इसे पून: विभिन्न कामों के इस्तमाल किया जाता है या फिर इन्हें जमीन के अंदर दबा दिया जाता है ताकि उस जमीन की उर्वक क्षमता बढ़े। वहीं रिहायशी इलाकों से आए कचरे में कई प्रकार के पदार्थ, जैविक कचरे, प्लास्टिक, बैट्री आदि होतें हैं। इनमें जैविक कचड़ा तो जतीना उपयोगी होता है वहीं प्लास्टिक और बैट्री प्रकृति के लिए हानिकारक होते है। हाल ही में दिल्ली के गाजीपुर लैंडफिल में कचड़े के अ बार में हानिकारक गैस की वजह से विस्फोट हुआ जिसमें दो लोगों की जान चली गई। यह घटना न केवल सरकार बल्कि आमजन के लिए खतरे की घंटी है। जमीन पर कचड़े का अम्बार लगाने से उसमें विभिन्न प्रकार के पदार्थों के मिश्रण होने से यह न केवल भूूतल के जल को प्रभावित करता है बल्कि आस-पास रहने वाले जीवन पर हानिकारक प्रभाव छोड़ता है। विशेषज्ञों के मुताबिक इन कचड़े के अम्बार के पास रहने वाले जीव-जंतु के व्यवहार बांकी जीव के व्यवहार से काफी अलग होता है। इन कचड़ों से अपना भोजन प्राप्त करने वाले प्राणी काफी हिंसक होते हैं और इनके शरीर में हानिकारक पदार्थ होता है और यदि किसी मनुष्य पर यह कोई आघात करें तो मनुष्य के लिए भी वह काफी हानिकारक होता है। इन इलाके के आस-पास रहने वाले या फिर कचड़ों के आस-पास भटकने वाले लोगों का जीवन काल की काफी लम्बा नहीं होता है। ये लोग 50 साल से ज्यादा का जीवन नहीं जीते हैं और जीवनभर ये किसी न किसी बिमारी से ग्रसित रहते हैं।
अपनी जि मेंदारी खुद समझे

डा. मोहन ने अपने शोधार्थी छात्रों के शोध के विषयों का जिक्र करते हुए कहा कि मौजुदा दौर में हमें बायो रिएक्टर संकल्पना के आधार पर कचड़े का निस्तारण करना चाहिए। इस तरीके से भूतल का जल भी दुषित नहीं होता और हम कचड़े से कई प्रकार की उपयोगी व्यवहार की चीजे निकाल लेते हैं। कचड़ा निस्तारण के इस तरीके से हम बॉयो गैस इंधन का निर्माण करने के साथ-साथ हानिकारक गैस को पृथक कर उसे अपने दैनिक उपयोग में इस्तमाल में ला सकते हैं। इसमें प्लास्टिक जैसी चिजों को गलाकर उसका तेल व इंधन बनाया जा सकता है जो कि ईट भट्टी व अन्य उद्योग के लिए इंधन का काम करता है। प्रोफेसर ने बताया कि वह और उनके छात्र कचड़ा निस्तारण के लिए प्लाजमा तकनीक का उपयोग सबसे बड़ी खोज होगा। यह तकनीक अभी प्रयोग में हैं। इस तकनीक के तहत कचड़े को अधिकतम ताप देकर उसमें से विभिन्न प्रकार के गैस को पृथ्थक कर लिया जाएगा और बांकी अवशेष एक ठोस पदार्थ में बदल जाएगा जिसका उपयोग सड़क निर्माण व ईमारत निर्माण में किया जा सकता है जो काफी मजबूत होगा।
* शहरी व ग्रामीण इलाकों में बनने वाले आवासीय कॉलोनी व अपार्टमेंट के डेवलपर की जिम्मेदारी हो की वह कचड़े निस्तारण का इंतजाम अपने परीसर में करे।
* ये कचड़ा लोगों को रोजगार के अवसर दे सकता है। शहरी इलाकों में जहां लोगों को अपनी गंदगी उठाने का फुर्सत नहीं वहां स्वयंसेवी संगठन इसमें लोगों को जोड़ कचड़े के निस्तारण के बाद इससे निकलने वाली उपयोगी चिजों को जरूरतमंद लोगों को बेच सकते हैं।