चेन्नई के अन्ना जूलोजिकल पार्क में केयरटेकर के रूप में तैनात राजेश रत्न कुमार की आंखों के इशारे पहचानते हैं शेर व चीता। शेरों और चीतों के बीच रहते, खेलते उन्हें 30 साल हो गये। राजेश कहते हैं, ‘जितना मैं इन चीतों को जानता हूं, उतना ही ये मुझे पहचानते हैं। मैंने इनकी देखभाल तबसे की है, जब ये बच्चे थे।’
तान्या सिन्हा, आईएनएन/चेन्नई, @Infodeaofficial
आपके सामने कभी शेर या चीता आ जाए तो क्या होगा? डर के मारे आप कांपने लगेंगे न? स्वाभाविक है, ऐसा होना। चिड़ियाघर में तो आपने इन्हें देखा ही होगा! वहां भी यदि ये जोर से दहाड़ दें तो अधिकतर दर्शक जालीदार बाड़ा होने के बाद भी सहम कर पीछे हट जाते हैं। यह सोचकर कि खतरनाक जानवर हैं, जरा सा चूक हुई नहीं कि जान पर बन आयेगी। पर आइये आपको एक ऐसे इंसान से मिलाते हैं, जो इनके बीच रहता है, बिना डरे, बिना सहमे।
चेन्नई के अरिंगर अण्णा प्राणी उद्यान (जूलॉजिकल पार्क) में राजेशरत्न कुमार इन खतरनाक जंगली जानवरों के बीच रहकर उनकी देखभाल करते हैं। वैसे तो ये पार्क में केयरटेकर के पद पर तैनात हैं, लेकिन यह उनका पैशन है। इन्फोडिया ने राजेश से इस पैशन और कार्य के बारे में जानना चाहा और पूछा कि क्या उन्हें अपनी जान की परवाह नहीं है, या उन्हें सच में इन खतरनाक जानवरों से भय नहीं लगता है? राजेश पहले ठहाका मार कर हंसे और फिर बोले, ‘सच कहूं तो जब मैं इस काम में लगा था तो शुरू—शुरू में मुझे भी इनसे डर लगता था। पर जैसे जैसे समय बीतता गया ये परिवार के सदस्य की तरह अपने लगने लगे।’ अब तो इन जानवरों की जिंदगी और मौत दोनों उन्हें प्रभावित करता है।’ राजेश बताते हैं, ‘मैंने दो चीतों अपने सामने मरते हुए देखा है। उस दौरान ऐसा लगा कि जैसे परिवार का कोई सदस्य छोड़कर जा रहा है।’ राजेश ने इस काम का कोई औपचारिक प्रशिक्षण नहीं लिया है। समय के साथ ही उन्होंने इस पेशे में आने वाली समस्याओं को दूर करने का तरीका सीख लिया। शेरों और चीतों के बीच रहते, खेलते उन्हें 30 साल हो गये। राजेश कहते हैं, ‘जितना मैं इन चीतों को जानता हूं, उतना ही ये मुझे पहचानते हैं। मैंने इनकी देखभाल तबसे की है, जब ये बच्चे थे।’
उन्हें इनकी एक—एक बात का खयाल रहता है। कब खाना देना है, कब पानी देना है आदि। अब वे इनको लेकर इतने अभ्यस्त हो गये हैं कि चीते की गतिविधियां देखकर जान जाते हैं कि उसे भूख लगी है अथवा वह अस्वस्थ है। कभी—कभी चीता या शेर अपने साथ रह रहे सहचर के साथ सहज नहीं महसूस करता है, विशेषकर साहचर्य वाले महीनों में। ऐसे में आंखें खुली रखनी पड़ती है, यह देखने के लिए कि इस मौसम में नर प्रभुत्व स्थापित करने का प्रयास करते हैं और ऐसे में मादा असहज हो सकती हैं। उनके आपसी संघर्ष की आशंका को देखते हुए उन्हें अलग—अलग बाड़े में करना पड़ता है।
राजेश ने भले ही परिवार चलाने के लिए यह नौकरी शुरू की थी, लेकिन अब उनके लिए वेतन या नौकरी उतना महतव नहीं रखती है, क्योंकि वे इसे आनंद के लिए करने लगे हैं। उनका इन शेरों व चीतों से एक तरह का भावनात्मक नाता बन गया है।
जब जयललिता जयराम मुख्यमंत्री थीं तो उन्हें निर्धारित वेतन के अतिरिक्त भुगतान होता था। यह सिलसिला अभी भी चल रहा है। राजेश को सुनकर ऐसा लगता है कि जैसे उन्हें इन जानवरों के साथ रहने और इनकी देखभाल करने में कोई समस्या ही नहीं आती है। पर ऐसा नहीं है। राजेश बताते हैं कि जब इन्हें औषधियां देनी होती है, तब सबसे बड़ी चुनौती सामने आती है। हमें यह काम इस तरह करना होता है कि उन्हें दवाओं की महक या स्वाद का पता न चले।
जब भयानक वर्धा तूफान आया था तो शेर और चीते बहुत डर गये थे और तीन दिनों तक अपनी खोह में से बाहर नहीं निकले थे। तूफान निकल जाने के बाद जब डॉक्टर इनकी जांच करने आये तो पाया कि एक चीता इतना डरा हुआ था कि उसे हृदयाघात होने की आशंका थी।
इन खतरनाक जानवरों के साथ इतना घुलमिल जाने के बाद भी इसकी क्या गारंटी है कि वे कभी नुकसान नहीं पहुंचायेंगे? राजेश कहते हैं, ‘हां, हो सकता है कि वे कभी मुझ पर हमला कर दें, मार डालें। लेकिन वे तो जानवर हैं और हमारे आसपास के मनुष्य भी तो ऐसा करते हैं या कर सकते हैं। फिर भी हम समाज में इन्हीं मनुष्यों के साथ रहते हैं न? राजेश की यह बात सोचने वाली तो है, कि खतरा तो जानवर से भी है तो मनुष्यों से भी तो है। जब ऐसा होने के बाद भी मनुष्यों के बीच रह सकते हैं तो जानवरों के साथ रहने में क्या समस्या है।’
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