विष्णुदेव मंडल, INN/Chennai, @Infodeaofficial
जून 15 को लद्दाख के गलवान घाटी में चीन और भारतीय सेनाओं के बीच हिंसक झडप में जहां हिंदुस्तान के 20 जवान शहीद हुए वही 43 चीनी सैनिकों को भी मारे जाने की खबर है।
चीन द्वारा इस कायराना हरकत के कारण हिंदुस्तान के आमजन में गुस्से का सैलाब फूट पड़ा है। भारत सरकार, विदेश मंत्रालय, गृह मंत्रालय, और सेना के आला अधिकारियों ने भी लद्दाख और एलएसी पर भारी संख्या में चीनी सैनिकों की तैनाती के बाद भारत ने भी गलवान घाटी, दौलत बेग, ओल्डी और चुशूल इलाके में हजारों की संख्या में सैनिकों की तैनाती शुरू कर दी है।
प्रधानमंत्री ने देश को संबोधन में कहा की जवानों की शहादत व्यर्थ नहीं जाएगी। देश की संप्रभुता को बचाने के लिए सैनिक किसी भी प्रकार का फैसले लेने के लिए स्वतंत्र है।
देशभर में चीनी सेनाओं के खिलाफ आमजन में भारी गुस्सा है। लोग यही चाहते है की गलवान घाटी में 20 जवानों की शहादत का बदला, उनके हजारों सैनिकों के मारने के बाद ही पूरा हो सकता है। चेन्नई महानगर में कई लोगों ने लद्दाख बॉर्डर पर चीन और भारत के बीच उत्पन्न स्थिति के बारे में मिली जुली प्रतिक्रिया व्यक्त की है।
सीना ने गलवान घाटी में जो कायराना हरकत की है बेहद ही निंदनीय है। एक तरफ बातचीत और पीछे से चीनी सैनिकों द्वारा भारतीय जवानो पर हमला चीन की कपट को दर्शाता है।
इसीलिए भारत सरकार को चाहिए की चीन द्वारा इस कायराना हरकत का जवाब बोली से नहीं गोली से दिया जाए। राकेश सिंह, माधवरम
कोरोना संकटकाल में चीनी सैनिकों द्वारा लद्दाख के एलएसी पर विस्तारवादी नीति किसी भी प्रकार से सही नहीं है।
एक तरफ दोस्ती का हाथ बढ़ाना दूसरी तरफ पीठ पर छुरा घोपना चीन की पुरानी आदत है। वक्त आ गया है की चीन को सबक सिखाया जाए और 20 के बदले 20 हजार सैनिकों का सर कलम किया जाए । महेश कुमार, शक्ति वेल नगर
चीन हमारे पड़ोसी देश नेपाल और पाकिस्तान को भी हमारे खिलाफ भड़का रहा है। समय-समय पर एलएसी पर भी विस्तार वादी नीति अपना रहा हैं जिसे हल्के में नहीं लिया जा सकता।
अब भारत सरकार और भारतीय सेना को आक्रमक रूख अपनाना पड़ेगा और सबक सिखाना होगा ताकि वह फिर से ऐसा हिमाकत ना कर सके। शशांक मिश्र मोनू,
चीन सुपर पावर बनने के लिए पूरे विश्व में अराजकता फैलाना चाहता है। हिंदुस्तान के साथ वह हमेशा दोहरा चरित्र दिखता रहा है।
हमने यह 1962 में भी देखा है और आज भी देख रहे है लेकिन चीन एक भूल कर रहा है की आज के भारत और 1962 के भारत में काफी अंतर है। सत्यप्रकाश तिवारी, सुरपेट
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