120 Indian Laborers Stranded in Jordan

जॉर्डन में फंसी जान: विदेशी जमीन पर 120 भारतीय मजदूर फंसे, पानी तक के लिए हुए हलकान, पीएम मोदी और भारत सरकार से लगाई वापस बुलाने की गुहार

– चार महीने से नहीं मिल पाया है वेतन, ज्यादातर मजदूरों का वर्क परमिट यानी कि इकामा की वैलिडिटी भी खत्म हो चुकी है जिसकी वजह से स्थानीय प्रशासन से नहीं मिल रही है मदद

चेन्नई। भारत से रोजी रोटी की तलाश में जॉर्डन गए 130 मजदूर वहां फंस गए हैं। फंसे मजदूरों में बिहार, तमिलनाडु, उत्तर प्रदेश और ओडिशा समेत अन्य राज्य के मजदूर शामिल हैं। इंफोडिया से इन मजदूरों में बात की और मदद की गुहार लगाई। इनमें से बहुत सारे मजदूर दो साल पहले विदेश गए थे। इन मजदूरों में से कुछ के पास तो पासपोर्ट है। वहीं, कुछ ऐसे भी हैं जिनका पासपोर्ट कंपनी के पास जमा है। मजदूरों का दावा है कि उन्हें पिछले चार महीनों से वेतन नहीं मिला है।

मजदूरों में शामिल बिहार के सीतामढ़ी के रहने वाले मोहम्मद जुनैद ने इंफोडिया ने संपर्क किया। उन्होंने बातचीत में इसका पूरा खुलासा किया है। मजदूरों का कहना है कि पहले कंपनी की ओर से यह आश्वासन दिया गया था कि उन्हें वेतन दे दिया जाएगा। इसी तरह उन्हें महीने दर महीने टाला जाता रहा है। बाद में जब मजदूरों ने अपने वेतन के लिए जिद पकड़ी तो कंपनी ने हाथ खड़े कर दिए। मजदूरों के अनुसार वे जॉर्डन के साहेब अल तमाश इलाके में रह रहे हैं।

मजदूरों के अनुसार उनकी हायरिंग दिल्ली की एक टी गारमेंट्स नाम कंपनी ने की थी। दिल्ली की इस कंपनी के माध्यम से उन्हें नियुक्त किया गया था। इसके बाद वे बीते एक साल से ज्यादा समय से वहां की दो कंपनियों असिल गारमेंट्स और हाई अप्पैरेल में काम कर रहे थे। शुरू में तो इन्हें वेतन मिल रहा था। हालांकि चार महीने पहले कंपनी ने वेतन देने में आना कानी शुरू कर दी। पहले तो उन्हें इस बात का भरोसा दिया गया कि जल्द ही उन्हें वेतन दे दिया जाएगा लेकिन हफ्ता दर हफ्ता चार महीने बीतने के बाद भी उन्हें वेतन का भुगतान नहीं किया गया।
जॉर्डन में फंसे 120 से ज्यादा भारतीय मजूदरों के साथ ही भारी संख्या में पाकिस्तान, बांग्लादेश, नेपाल और श्रीलंका के भी मजदूर शामिल हैं। भारत और भारत के पड़ोसी देशों के लगभग 500 मजदूरों के यहां फंसे रहने की जानकारी मिली है। इनमें से कुछ ऐसे देश के मजदूर भी हैं जिनके साथ भारत के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध हैं। मजदूरों का कहना है कि वे बहुत परेशान हैं। उन्हें खाना तो किसी प्रकार मिल जा रहा है लेकिन पानी नहीं मिल पा रहा है। ऐसे में उन्हें टायलेट जाने और नहाने जैसी अहम जरूरी दैनिक कार्यों के लिए भी पानी नसीब नहीं हो पा रहा है।
क्या है इकामा और जॉर्डन में वर्क परमिट से संबंध
गौरतलब है कि इकामा सऊदी अरब और खाड़ी देशों में में काम करने वाले प्रवासी मजदूरों को जारी किया जाता है। इस इकामा के आधार पर वे जॉर्डन में आॅन अराइवल विजा हासिल कर सकते हैं। फंसे मजदूरों का कहना है कि वे इसी इकामा के आधार पर यहां काम कर रहे थे। अब उनके इकामा की अवधि समाप्त हो चुकी हैै। यही कारण है कि मजदूर स्थानीय स्तर पर उन्हें वेतन नहीं देने वाले कंपनी के खिलाफ किसी भी प्रकार की कानूनी एक्शन नहीं ले पा रहे हैं। इसके साथ ही कुछ मजूदरों का वर्क परमिट और वर्क विजा के आधार पर भी वहां काम कर रहे थे। वर्क परमिट एक महत्वपूर्ण दस्तावेज है जो यह सुनिश्चित करता है कि भारतीयों सहित विदेशी कर्मचारी देश के श्रम कानूनों और विनियमों का अनुपालन करते हुए जॉर्डन में काम करने के लिए कानूनी रूप से अधिकृत हैं।
मजदूरों का दावा है कि वे भारतीय दूतावास से कई बार संपर्क कर चुके हैं। हालांकि बार बार अनुरोध किए जाने के बाद भी उनकी ओर से कोई जवाब नहीं दिया जा रहा। मजदूरों का दावा है कि पहले तो उनके फोन एंबैसी के अधिकारी उठा लिए करते थे। हालांकि पिछले कुछ दिनों से एंबैसी ने फोन उठाना भी बंद कर दिया है। ऐसे में मजूदरों का डर है कि कहीं उनके साथ किसी प्रकार की अनहोनी न हो। मजदूर बार-बार खुद को भारत वापस बुलाए जाने की अपील कर रहे हैं।

क्या कहा है जॉर्डन स्थित भारतीय दूतावास ने
जॉर्डन स्थित भारतीय दूतावास ने संपर्क किए जाने के बाद जॉर्डन एम्बैसी के फर्स्ट सेक्रेटरी ने एक संदेश में बताया कि हम इस मुद्दे से अवगत हैं। जिस कंपनी में वे काम कर रहे हैं वह कुछ वित्तीय समस्याओं का सामना कर रही है। इस मुद्दे को जॉर्डन के अधिकारियों द्वारा निपटाया जा रहा है। दूतावास कंपनी द्वारा बकाया राशि के शीघ्र निपटान के लिए मामले पर नजर रख रहा है।

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