झारखंड के पशु चिकित्सक मारे-मारे फिर रहे हैं

डॉ . आर.बी. चौधरी, आईआईएन/नई दिल्ली, @Infodeaofficial 

भारत सरकार के मवेशी जनगणना, 2019 के अनुसार आदिवासी बाहुल्य झारखंड में प्रमुख तौर पर खेती और पशुपालन जनजीवन के प्रगति का माध्यम है।

राज्य के आर्थिक विकास का अगर पूर्णविलोकन किया जाए तो पता चलता है कि झारखंड राज्य वर्ष 2012 से 2019 के अंतराल में गोवंशीय पशुओं से लेकर बकरी तथा सूअर पालन में देश के टॉप टेन राज्यों की सूची में पहले पायदान पर रहा है।

इंटरनेशनल लाइवस्टोक रिसर्च इंस्टीट्यूटआई एआरआई, केन्या, नैरोबी द्वारा वर्ष 2011 में प्रकाशित एक अध्ययन -“पोटेंशियल फॉर लाइवलीहुड इंप्रूवमेंट फॉर लाइवस्टोक डेवलपमेंट इन झारखंड” राष्ट्रीय परिदृश्य के अनुसार मध्य प्रदेश ,छत्तीसगढ़, ओड़िशा के बाद झारखंड आदिवासी प्रधान राज्य है जहां कुल 21% के लगभग आबादी आदिवासियों की है।

देश के टॉप-टेन राज्यों में सबसे अधिक पशु आबादी वृद्धि के मामले में रिकॉर्ड बनाने वाले झारखंड राज्य के पशु चिकित्सक मारे -मारे फिर रहे हैं। आज सरकार इनकी बात सुनने के लिए तैयार नहीं है।

पिछले कुछ महीनों का परिदृश्य काफी चौकाने वाला है क्योंकि झारखंड पशुचिकित्सा सेवा संघ के अनुसार राज्य के पशु चिकित्सकों की सेवा नियमावली के अनुसार पशु चिकित्सकों से बेहतर काम लेना और उन्हें उत्साहित कर राज्य विकास की मुख्यधारा में जोड़ने में सरकार की कोई रुचि नहीं है।

तमाम ऐसे अधिकारी हैं जो जिस पद पर नियुक्त हुए वह उसी पद से रिटायर भी हो रहे हैं| अन्य राज्यों की भांति सेवा नियमावली के तहत या तो टाइम बाउंड अथवा रेगुलर एसेसमेंट प्रक्रिया के तहत उनकी पदोन्नति होनी चाहिए जो नहीं हो रही है।

पिछले दिनों ऐसा भी देखने को मिला है कि कई जिला के पशु चिकित्सा पदाधिकारियों को उनके प्रोफेशनल ड्यूटी से अलग जिम्मेदारी दी जा रही है और पशु चिकित्सा पदाधिकारियों की ड्यूटी थाने तथा चेक पोस्ट पर लगाई जा रही है।

पिछले साल पशु चिकित्सा पदाधिकारी के पद पर कृषि अधिकारी की नियुक्ति का मामला मीडिया में चर्चा का विषय रहा। जब यह मामला तूल पकड़ने लगा तो आनन-फानन में आदेश को वापस ले लिया गया।

पूर्व मे भी विभाग के समक्ष झारखंड पशु चिकित्सा सेवा संघ के अध्यक्ष, डॉ. बिमल कुमार हेमबरम, डॉ. धरमरझित विधार्थी, महामंत्री एवं सह प्रचार मंत्री झारखण्ड पशुचिकितसा सेवा संघ ,डॉ. शिवानंद काशी , नोडल पदाधिकारी झारखंड राज्य जीव जन्तु कलयाण बोड एवं सह मीडिया प्रभारी-पूरानी पेंशन बहाली आंदोलन (झारखण्ड) के साथ-साथ समस्त कार्यकारिणी सदस्यों ने निम्न मांगें रखी है –

1) लंबित प्रोन्नति को अविलंब दिया जाए अथवा प्रोन्नति की प्रत्याशा में रिक्त पदों को अविलम्ब भरा जाए।
2) निदेशालय के पदों पर वरिष्ठ पशु चिकित्सा पदाधिकारियों को प्रोन्नति की प्रत्याशा में पदस्थापित किया जाए।
3) केंद्र सरकार द्वारा जारी एडवाइजरी के आलोक में झारखंड पशुपालन सेवा की यथाशीघ्र रिस्ट्रक्चरिंग की जाए।
4) 2017 बैच का वेतन वृद्धि की बाधा को शीघ्र समाप्त किया जाए।
5) लंबित प्रोन्नति/सुनिश्चित वित्तीय उन्नयन(एसीपी)/संशोधित ,सुनिश्चित एवं वित्तीय उन्नयन क (एमएसीपी) को तुरंत दिया जाए तथा भविष्य में इसे स-समय भुगतान किया जाए।
6) विभागीय सभी नीतिगत बैठकों / निर्णयों में संघ के प्रतिनिधि को अनिवार्य किया जाए |
7) पशुचिकित्सकों को केन्द्र सरकार की भाति नान-प्रैक्टिस अलाउंस एवं डीएसीपी (डायनेमिक एसयोरड कैरियर प्रोग्रेसन) दिया जाए |

लॉक डाउन के वर्तमान परिस्थिति में झारखंड पशु चिकित्सा सेवा संघ फिर से अपनी एक नई व्यथा ले कर के सरकार के पास पहुंचा है और उम्मीद लगा रखा है कि प्रदेश के पशु चिकित्सकों की बातों पर सुनवाई होगी।

इस संबंध में संघ की ओर से बताया गया है कि पशुपालन निदेशालय के अन्तर्गत विभिन्न कार्यालयों के निकासी एवं व्ययन पदाधिकारियों की उनकी सेवानिवृति के उपरांत महीनों से पद रिक्त पड़े हैं|

उन स्थानों को भरा जाना चाहिए। साथ ही साथ लॉक डाउन की स्थिति में कार्यरत पशुचिकित्सकों/कर्मचारियों का मासिक वेतन आदि का भुगतान विगत कई माह से बन्द हो गया है| उन सबों को नियमित तनख्वाह मिलनी चाहिए।

इस परिस्थिति में विभागीय कार्य संपादन एवं योजनाओं के क्रियान्वयन मे भारी गतिरोध आ गया है। राज्य में लगभग 18 निकासी एवं व्ययन पदाधिकारी के रिक्त पद है जिसका सीधा असर कार्यप्रणाली पर पड़ रहा है।

झारखंड पशु चिकित्सा सेवा संघ ने अपने अपील में यह बात बड़े ही स्पष्ट ढंग से रखा है और अनुरोध किया है कि तत्काल इसका निराकरण किया जाना चाहिए। इस बीच संघ के वरिष्ठ पदाधिकारी राज्य के पशुपालन मंत्री से मिलने गए थे लेकिन उनसे मुलाकात नहीं हो पाई।

संस्था की ओर से जारी विज्ञप्ति में यह भी बताया गया है कि झारखण्ड सरकार योजना-सह-वित्त विभाग के पत्राक : 1111/वित्त दिनांक 8/4/2016 के कंडिका (1) मे वर्णित प्रावधान के अनुसार विभागीय प्रधान या विभागाध्यक्ष अधीनस्थ किसी पदाधिकारी को झारखण्ड सेवा संहिता-2016 के नियम 87 के तहत निकासी एवं व्ययन पदाधिकारी की शक्ति प्रतियोजित कर सकते है।

बिहार (झारखण्ड) सेवा संहिता के नियम 21 के अनुसार पशुपालन निदेशक पशुपालन विभाग के लिए विभागाध्यक्ष होते हैं| इसलिए बतौर विभागाध्यक्ष अपनी शक्तियों का नियमानुसार संबंधित विभाग के अधिकारी को रोजमर्रा के कार्यों को गति प्रदान करने के लिए अधिकृत कर सकते हैं।

संघ ने अपने अनुरोध में यह अवगत कराया है कि जिला पशुपालन पदाधिकारी, हजारीबाग तीन महीने के उपरांत दिनांक- 31.07.2020 को सेवानिवृत होने वाले हैं| यह प्रकरण सरकार को संज्ञान में लेना चाहिए और तत्काल उचित कार्रवाई की जानी चाहिए।

झारखंड पशु चिकित्सा सेवा संघ के अनुसार इनका तीन मूल मंत्र है : पहला- सरकार के आदेश को पालन करना, दूसरा -पशु चिकित्सकों के देय मांग को स-समय दिलाना एवं तीसरा-पशु चिकित्सा एवं पशुपालन सेवाओं के माध्यम से पशुपालकों का उन्नयन कर प्रदेश की आर्थिक विकास में योगदान देना।

यह बता दें कि कोरोना महामारी के नियत्रंण के सिलसिले में लॉक डाउन की स्थिति में केन्द्र व राज्य सरकार के दिशा निर्देशों के अनुपालन में विभागीय-कर्मी एक तरफ संक्रमण के खतरों के बीच सौपे गये जिम्मेदारियों का निर्वहन कर रहे हैं और वहीं दूसरी तरफ उन्हें वेतनादि के अभाव में आर्थिक कठिनाईयों से जूझना पड़ रहा है।

जिससे वे अपने परिवार की भरण- पोषण,बच्चों की पढ़ाई,रोजमर्रा की खर्च तथा स्वास्थ्य की देख-रेख के मूलभूत जरूरतों की पूर्ति के लिए संघर्ष भी कर रहे हैं। इसलिए संघ का अनुरोध है कि पशुपालन निदेशालय सेवा-मानकों को सुनिश्चित करते हुए रिक्तियों को शीघ्रातिशीघ्र पदस्थापन कराए तथा पशु चिकित्सा पदाधिकारियों के कल्याण पर ध्यान दें ताकि प्रदेश के खेती-बारी और पशुपालन से जुड़े किसानों की आर्थिक स्थिति सुधारने में पशुपालन व्यवस्था का भरपूर लाभ प्राप्त हो।

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