प्रवासी मजदूरों के लिए देवदूत चेन्नई महानगर निगम व श्रम विभाग

विष्णुदेव मंडल, INN/Chennai, @Infodeaofficial 

मिलनाडु सरकार के श्रम एवं कल्याण विभाग के प्रधान सचिव मोहम्मद नसीमुद्दीन की निगरानी में पिछले 3 महीनों से प्रवासी मजदूरों समेत अन्य पेशे से जुड़े लोगों को बदस्तूर राहत सामग्री बांटने का काम लगातार जारी है। इस राहत से उन लोगों को बल मिलता है जो पिछले कई महीनों से बेरोजगारी के दंश झेल रहे हैं।

विगत 3 महीनों से महानगर में लॉकडाउन लगा हुआ है। आमजन को घर में बंद होकर रहना पड़ रहा है ।कामकाज छुट जाने के कारण उन्हें परिवार चलाने के लिए खाने-पीने के सामग्रियां नहीं मिल रहे हैं। ऐसे में जिनके पास राशनकार्ड नहीं है उनके लिए तो सिर्फ ग्रेटर चेन्नई कॉरपोरेशन के प्रतिनिधि ही एक सहारा बना हुआ है।

चेन्नई किलपाक गार्डन और आसपास के इलाकों में दर्जनों ऐसे परिवार हैं जो बिहार से चेन्नई आए और अपने जीविका चलाने के लिए इस इलाके में चाट, पकोड़े, समोसे, पानी -पुरी और चाय की दुकान लगाकर अपने परिवार का गुजर बसर करते थे ! लेकिन कोरोना महामारी ने इनकी जीविका को छीन लिया और दर्जनों लोग बेरोजगार हो गए।

सरजापुर दरभंगा निवासी धनेश्वर कामत कहते हैं वह पिछले 10 वर्षों से चेन्नई में है चाट पकोड़े बेचकर अपने परिवार का भरण-पोषण कर रहे थे, लेकिन कोरोना ने उनका व्यवसाय चौपट कर दिया।अब वह दाने-दाने को मोहताज है।

ऐसी परिस्थिति में ग्रेटर चेन्नई कॉरपोरेशन के सहयोग से उन्हें भोजन सामग्री मिलती है। उनका कहना था की घर में राशन बिल्कुल खत्म हो चुका था। परिवार चलाना बेहद मुश्किल हो गया था, ऐसे में सरकार द्वारा मिला सहयोग उनके लिए संजीवनी का काम कर रहा है।

सरीसबपाही, मधुबनी निवासी रघुनाथ मुखिया बताते हैं कि वह चाय की दुकान चला रहे थे लेकिन कोरोना महामारी ने उन्हें बेरोजगार बना दिया। लाकडाउन मे परिवार का पेट कैसे भरे यह सबसे बड़ी चिंता का विषय है।

बिहार एसोसिएशन के प्रतिनिधियों ने श्रम एवं कल्याण विभाग के प्रधान सचिव मोहम्मद नसीमउद्दीन को हम लोगों के बारे में बताया और सरकार ने हम लोगों को लगभग 15 दिनों के लिए राशन और वह तमाम जरूरी वस्तुएं प्रदान की।

झंझारपुर निवासी रुक्मिणी देवी बताती हैं कि उनके पति का चाट पकोड़ा का दुकान बहुत बेहतर चल रहा था हर दिन हजारों कमाई होती थी लेकिन कोरोना महामारी उनके परिवार के लिए ग्रहण बनकर आ गया।

पिछले 3 महीनों से उनका दुकान बंद है जमा पूंजी जो थी वह तीन महीनों में खत्म हो गया। लॉक डाउन अगर खुल जाए तो उनके पति फिर से अपने कारोबार शुरू कर लेंगे।

झंझारपुर निवासी रानी मिश्रा कहती है की लॉकडाउन से पहले जब रोजगार चल रहा था तब सब कुछ ठीक था लेकिन कोरोना महामारी के कारण चाय की दुकान बंद हो गए। बच्चों के फी और घर का किराए भी पिछले तीन महीने से नहीं दिया हैं।

उम्मीद हैं कि सरकार जिस प्रकार से अभी हम जैसे लोगों की मदद कर रही है आगे भी करती रहेगी। चिंता की बात यह है की आने वाले दिनों में स्थिति अगर सही होती है तो व्यवसाय शुरू करने के लिए पूंजी कहा से लाऊंगा।

यहां उल्लेखनीय है कि बिहार एसोसिएशन के प्रतिनिधि एसके धीर और मुकेश ठाकुर सहित दर्जनों प्रतिनिधि बिहारी मूल के प्रवासी मजदूर समेत अन्य लोगों की मदद का काम लॉक डाउन के शुरुआत से कर रहे है। कोरोना महामारी में अलग-अलग इलाके में पहुंचकर राहत सामग्रियों का बात रहे है।

मधुबनी निवासी मनोज मंडल कहते हैं बेरोजगारी के बाद जिस प्रकार बिहार एसोसिएशन ने उन्हें भोजन का किट प्रदान किया वह सराहनीय है।

झंझारपुर निवासी रविंद्र झा और मदन पासवान कहते हैं की विकट परिस्थिति में चेन्नई कॉरपोरेशन उनके लिए देवदूत बनकर आया है। सरकार के इस मदद से हम गरीब जन अपने परिवार चला रहे हैं।

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