दक्षिण भारत हिन्दी प्रचार सभा ने प्रचारकों का सम्मान किया

तेलुगु पुस्तकों का हिन्दी अनुवाद का लोकार्पण

आईआईएन/चेन्नई, @Infodeaofficial 

हात्मा गाँधी द्वारा स्थापित और वर्तमान में राष्ट्रीय महत्व की संस्था दक्षिण भारत हिन्दी प्रचार सभा इस वर्ष अपनी स्थापना के सौ वर्ष पूरे कर चुकी है। भारत की राष्ट्रीय एकता को मजबूत बनाने तथा स्वतंत्रता संघर्ष को प्रभावी बनाने हेतु राष्ट्रभाषा हिन्दी का प्रचार-प्रसार देश के दक्षिणी भाग में करने की दूरदृष्टि के मद्देनजऱ सभा की स्थापना जून 1917 में महात्मा गाँधी द्वारा हुई थी।

तब से सभा अपनी हिन्दी सेवा के सफल सौ वर्ष पूरी कर चुकी है। दक्षिण भारत हिन्दी प्रचार सभा की केन्द्रीय सभा, मद्रास के संयोजन में राष्ट्रपति द्वारा विज्ञान भवन दिल्ली में शतमानोत्सव समारोह का उद्घाटन किया गया था।

अब केन्द्रीय सभा की शाखाओं आंध्रप्रदेश, तेलंगाणा, तमिलनाडु, कर्नाटक तथा केरल द्वारा भी अपनी अपनी शाखाओं में शतमानोत्सव समारोह का आयोजन किया जा रहा है। इस कडी में 19 मई को सर्वप्रथम आंध्रप्रदेश – तेलंगाना सभा द्वारा शतमानोत्सव का आयोजन विजयवाडा स्थित सभा के परिसर में किया गया। ज्ञातव्य है कि विजयवाडा स्थित हिन्दी प्रचार सभा के भवन की पहली ईंट “राष्ट्र पिता महात्मा गाँधी द्वारा स्वयं के हाथों से स्पर्श कर शुभकामना के साथ” नींव स्वरूप डाली गयी थी।

विजयवाडा स्थित सभा के परिसर में सभा की परीक्षाएँ, सभा का बी.एड कॉलेज स्नातकोत्तर हिन्दी विभाग (नियमित एवं दूरस्थ) हिन्दी प्रचारक प्रशिक्षण महाविद्यालय तथा महात्मा गाँधी विद्यालय कार्यरत है, जिसे राज्य सरकार के मान्यता प्राप्त है।

राज्यस्तरीय शतमानोत्सव समारोह में दक्षिण भारत हिन्दी प्रचार सभा, आँध प्रदेश तथा तेलंगाना हैदराबाद के अध्यक्ष पी. ओबय्या, द.भा. हिन्दी प्रचार सभा, मद्रास के प्रशासक /विशेष अधिकारी के. दीनबंधु, प्रधान सचिव एस. जयराज, आंध्र तथा तेलंगाना शाखा के प्रथम उपाध्यक्ष मुहम्मद अब्दुल रहमान, द्वितीय उपाध्यक्ष एल. मधुसूदन, कोषाध्यक्ष जमीला बेगम, प्रबंध निधिपालक शेख मोहम्मद कासिम, द.भा.हिन्दी प्रचार सभा, मद्रास के शतमानोत्सव सचिव टी एस वी पांडुरंगाराव तथा आंध्र तथा तेलंगाना के सचिव सी. एस. होसगौडर ने भाग लिया।

राज्यस्तरीय शतमानोत्सव समारोह का मुख्य आकर्षण शतमानोत्सव के महत्वपूर्ण एवं शुभ अवसर पर सभा के लिए कार्यरत हिन्दी प्रचारकों का विशेष सम्मान था। मंच पर उपस्थित अतिथियों द्वारा प्रचारकों को अंगवस्त्र और स्मृति चिन्ह देकर सम्मानित किया गया। ज्ञातव्य हो कि ये प्रचारक सभा द्वारा हिन्दी पठन-पाठन और प्रचार प्रसार की रीढ़ रहे हैं, जो समर्पित भाव से हिन्दी पढ़ाने में वर्षों से कार्य करते रहे हैं।

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