अनुवाद के माध्यम से भारतीय परम्पराओं व साहित्य के बारे में लोगों को करें जागरुक: त्रिपाठी
आईएनएन/चेन्नई, @Infodeaofficial
पश्चिम बंगाल के राज्यपाल केशरीनाथ त्रिपाठी ने कहा कि हमारी परम्पराएं एवं साहित्य को अनुवाद के माध्यम से अन्य को इसके बारे में जागरुक करने की जरूरत है। हमारी परम्पराएं एवं साहित्य काफी समृद्ध है। अनुवाद के माध्यम से इस तरह की विधाओं को अधिकाधिक लोगों तक पहुंचा सकते हैं।
अनुवाद व अनुवादकों को प्रोत्साहन मिलना चाहिए। वे बुधवार को यहां स्टैला मॉरिस कॉलेज चेन्नई एवं हिन्दी कश्मीरी संगम कश्मीर के तत्वावधान में आयोजित दो दिवसीय अंतरराष्ट्रीय साहित्यिक सम्मेलन का उद्घाटन करने के बाद समारोह में बतौर मुख्य अतिथि संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा अनुवाद की विधा महत्वपूर्ण व उपयोगी है।
इस दिशा में काम रचनात्मक भाव के साथ हो। ऐसी संस्थाओं को भी प्रोत्साहन मिले जो अनुवाद के कार्य को बढ़ावा दे रही हैं। इससे साहित्य की पहुंच अधिक लोगों तक हो सकेगी। त्रिपाठी ने कहा, मेरी रचना का कश्मीरी भाषा में हुआ अनुवाद मेरे लिए अप्रत्याशित है।
अनुवाद लोगों को जोडऩे का काम करता है। भारत एक बहुभाषी देश है, यह कई क्षेत्रों में बंटा है। ऐसे में एक दूसरे से संपर्क के लिए अनुवाद माध्यम बनता है।
लोक संस्कृति व साहित्य की जानकारी अनुवाद के जरिए ही हो पाती है। हम अनुवाद के माध्यम से दूसरे क्षेत्र की संस्कृति, साहित्य, लोकजीवन को करीब से जान पाते हैं। यह कला जीवंत रहनी चाहिए। इसे विस्तार मिलना चाहिए। यह काम तेजी से होना चाहिए। दक्षिण का साहित्य उत्तर में पढ़ा जाएं और उत्तर का दक्षिण के लोग जानें। हम एक हैं इसका भाव जगें। इसी से हमारी परम्परा एवं साहित्य को और मजबूती मिल सकेगी।
समारोह के अध्यक्ष त्रिपुरा के राज्यपाल कप्तानसिंह सोलंकी ने कहा, कश्मीरी संगम की सचिव डॉ. बीना बुदकी ने जिस तरह अपनी साहित्य यात्रा के जरिए सफलता अर्जित की है, वह सराहनीय है। श्रेष्ठ भारत एक भारत की दिशा में उन्होंने काम किया है। गरीब, अनाथ, कमजोर महिला की पीड़ा को उन्होंने सही मायने में उजाकर करने में अहम भूमिका अदा की है।
साहित्य एवं भावनात्मक दृष्टि से कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक उन्होंने एकता का सूत्रपात करने में योगदान दिया है। वास्तव में वे दूसरों के लिए प्रेरणा बनकर उभरी है।
कॉलेज की हिंदी विभागाध्यक्ष डॉ. श्रावणी भट्टाचार्या ने संचालन करते हुए बताया कि सम्मेलन का विषय अहिंदी भाषियों का हिंदी में योगदान तथा हिंदी और रोजगार की संभावनाएं रखा गया है। सम्मेलन में हिंदी सेवियों डॉ. श्रीधर पराडकर, प्रोफेसर विनोद तनेजा, डा. मिन्हानुदीन, डॉ. गुरिन्दर कौर, डॉ. अंजली पटेल, पवन कुमार, डॉ. निर्मला मौर्या, रुशाली शिवप्रसाद, डा. कृष्णा दुर्रानी का सम्मान किया जाएगा।
इसके साथ ही प्रोफेसर अवनीश कुमार, प्रोफेसर राजनारायण शुक्ल, डा. बिन्देश्वरी अग्रवाल समेत 19 साहित्यकारों एवं समाजसेवियों को भी सम्मानित किया गया। इस अवसर पर उन्मुक्त-महामहिम केशरीनाथ त्रिपाठी, कश्मीर संदेश, धूमिक का काव्य संग्रह-प्रासंगिकता के विविध संदर्भ, खिलती कलियां, विश्वनाथ प्रताप तिवारी की आलोचनात्मक दृष्टि नामक पुस्तकों का लोकार्पण भी किया गया।
श्री जैन महासंघ चेन्नई के अध्यक्ष सज्जनराज मेहता भी मंच पर मौजूद थे। इस अवसर पर कश्मीरी संगम की सचिव डॉ. बीना बुदकी, स्टैला मैरिस कॉलेज की सचिव सिस्टर सृजन व कालेज की प्राचार्य डॉ. रोजी जोसफ, दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा की पूर्व कुलसचिव प्रोफेसर निर्मला एस. मौर्या, जैन समाज के वरिष्ठ सदस्य सिद्धेचन्द लोढ़ा, कमला मेहता समेत अनेक गणमान्य लोग मौजूद थे। डा. ए. फातिमा ने धन्यवाद ज्ञापित किया।