होमोसेप दिलाएगा मैन्युअल स्केवेंजिंग से निजात
RItesh Ranjan/Chennai, @royret
भारत देश में सेप्टिक टैंक को साफ़ करने के दौरान हर साल सैकड़ो लोगों की मौत की घटना सामने आती है। वर्ष 2020 में सामाजिक न्याय और अधकारिता मंत्रालय ने लोकसभा में बताया की मानव द्वारा सेप्टिक टैंक की सफाई के दौरान 19 राज्यों और केंद्रशासित प्रदेश में 340 लोगों की मौत हुई। देश के कई हाई कोर्ट ने इन मौतों पर सज्ञान लेते राज्य सरकारों को इस बात के लिए फटकार भी लगाई है लेकिन इसके बावजूद भी सीवेज की सफाई के लिए मानव को उपयोग में लाया जाता है। इस सबनध में वर्ष 2013 में भारत में एक कानून पास किया गया जिसमे सीवेज की सफाई में मानव के उपयोग पर प्रतिबन्ध लगा दिया है इसके बावजूद भी अभी भी मानव को इस काम में लगाया जाता है।
देश के 40 प्रतिशत घर सेप्टिक टैंक से जुड़े हुए है। जिसकी सफाई के लिए मानव सहायता ली जाती है। कई हाई कोर्ट ने विभिन्न राज्य के राज्य सरकार को हिदायत दी है की वह इस कार्य में मानव संसाधन को उपयोग में न लाये। वर्ष 2021 में सरकार ने एक आंकड़े में बताया था की 66,692 ऐसे लोग है जो अभी भी इस काम में लगे हुए है। इस समस्या का समाधान अब आईआईटी के प्रोफेसर प्रभु राजगोपाल और उनकी टीम ने खोज लिया है।
प्रोफेसर प्रभु बताते है कि वर्ष 2015 में इसके लिए उन्होंने और उनके छात्रों ने एक प्रयोग किया था जो कि इन सफाई कर्मियों के लिए कुछ ख़ास लाभकारी नहीं था। उस प्रयोग में एक रोबोट प्रकार की मशीन का निर्माण किया गया जो सेप्टिक टैंक के अंदर जाकर अंदर के परिदृश्य के बारे में बाहर स्क्रीन पर साड़ी जानकारी देती थी। लेकिन सफाई कर्मचारी आंदोलन के सदस्यों से मिलने के बाद उन्होंने लगा की इस तकनीक से इन सफाई कर्मियों को कोई फायदा नहीं होने वाला। उसके बाद उन्होंने इस तकनीक को और विकसित करने कि योजना बनाने लगे तभी उनके पास उनका छात्र दिवांशु कुमार उनके पास आया और उनसे इस योजना पर काम करने कि इच्छा जताई। उसके बाद प्रोफेसर प्रभु ने और दिवांशु ने इसपर काम करना शुरू किया। वर्ष 2019 में दिवांशु ने अपने फाइनल ईयर के प्रोजेक्ट में सेप्टिक टैंक कि सफाई के लिए होमोसेप मशीन का इजात किया।
दिवांशु बताते है कि इसे तैयार करने में करीब तीन साल लगे। वर्ष 2019 अपने फाइनल ईयर के प्रोजेक्ट में जब उन्होंने इसका प्रोटोटाइप बनाया तब उन्हें काफी सराहना मिली।उसके बाद उन्हें इस प्रोटो टाइप को विकसित करने के लिए स्पॉन्सरशिप मिला और उन्होंने इस मशीन का निर्माण किया। उसके बाद ही उनके इस परियोजना पर आगे काम करने के लिए देवांशु और उसके साथियों ने मिलकर सॉलिन्स इंटीग्रिटी प्राइवेट लिमिटेड कंपनी का गठन किया है जिसके पास इस मशीन की तकनीक का पेटेंट है। दिवांशु कंपनी के मुख्या कार्यकारी अधिकारी है और भावेश नारायणी प्रोडक्ट डेवलपमेंट के प्रमुख। इस परियोजना में इनकी मदद कैपजेमिनी, गेल फाउंडेशन, विन फाउंडेशन एलएंडटीएस और नेशनल स्टॉक एक्सचेंज फाउंडेशन कर रही है।
भावेश बताते है की अभी इस मशीन पर काफी शोध किये जा रहे है। फ़िलहाल इस मशीन को ट्रेक्टर की मदद से उपयोग में लाया जा रहा है लेकिन हम इसमें और सुधार का प्रयास कर रहे है। इस मशीन को एल्बो टर्निंग के लिए भी तैयार करने का प्रयास किया जा रहा है। हम इस मशीन को और पोर्टेबल बनाने का प्रयास कर रहे है जिससे की इसके संचालन के लिए ट्रेक्टर या किसी भारी वाहन की आवश्यकता न पड़े।
इस मशीन में एक रॉड होता है जिसके चारो ओर ब्लेड लगे रहते है। जो उलटे कहते की तरह खुलता है। यह मशीन सेप्टिक टैंक के अंदर जाकर खुलता है और अंदर की गाद को पानी के साथ मिला देता है। बाद में इस पुरे अवसाद को सक्शन पंप की मदद से बाहर निकल दिया जाता है ।