आईआईटी मद्रास ने विकसित किया स्वदेशी पोत यातायात सेवा

रितेश रंजन, आईएनएन/चेन्नई, @royret

इसमें कोई संदेह नहीं है कि आजादी के बाद से लंबे समय तक हमारे देश को विज्ञान से लेकर तकनीक तक के लिए विदेशों का मुँह देखना पड़ता था, लेकिन पिछले कुछ सालों के दौरान भारतीय वैज्ञानिकों की लगन और भगीरथ प्रयास की बदौलत अब दिन पर दिन दूसरे देशों पर यह निर्भरता कम होती जा रही है।

भारत को आत्मनिर्भर बनाने के इसी प्रयास के तहत आईआईटी मद्रास के प्रोफेसर के. मुरली ने स्वदेशी पोत यातायात सेवा विकसित किया है। गौरतलब है कि अभी तक इसके लिए हमारे देश को अन्य देशों द्वारा विकसित तकनीक पर निर्भर रहा होना पड़ता था। हालांकि इसमें मौजूद जटिलताओं और इसके चलते उपभोक्ताओं को हो रही परेशानियों को देखते हुए इस क्षेत्र में हमारे देश ने अब सरल के साथ-साथ नई और स्वदेशी तकनीक का विकास कर लिया है।

गौरतलब है कि इंटरनेशनल मेरीटाइम आर्गेनाइजेशन (आईएमओ) कन्वेंशन सेफ्टी ऑफ़ लाइफ-एट-सी (सोलास) के तहत व्हेसेल ट्रैफिक सर्विस (वीटीएस) अनिवार्य है। इसके अलावा भावी योजनाओं में सहायता प्राप्त करने के लिए वीटीएस प्रणाली के तहत, रडार एवं एआईएस आदि दिशा खोजने वाले उपकरणों और वीएचएफ व अन्य सेवाओं के माध्यम से यातायात छवि को संकलित भी किया जाता है।

सूत्रों के मुताबिक इस आधुनिक उपकरण को एक प्रभावी समुद्री यातायात संगठन और संचार व्यवस्था के साथ-साथ उसके व्यवहारिक प्रयोग की आसानी को ध्यान में रखकर तैयार किया गया है। यह सभी सूचनाओं को एक ही ऑपरेटर वर्किंग एन्वॉयरमेंट में एकीकृत करने के साथ-साथ जरूरत पड़ने पर किसी अन्य टेक्नोलॉजी को भी काफी कम कीमत पर, बड़ी आसानी के साथ इससे जोड़ा जा सकता है। गौरतलब है कि विदेशी तकनीक में इसके लिए लंबी प्रक्रिया के साथ-साथ ऊंची क़ीमत भी देनी पड़ती है।

मौजूदा सिस्टम

वर्तमान में देश भर के समुद्री तटों पर लगभग 15 वीटीएस सिस्टम कार्य कर रहे हैं, लेकिन हर एक का अपना अलग वीटीएस होने के कारण इनमें आपसी एकरूपता का अभाव है। बंदरगाह अधिकारियों के अनुसार सॉफ्टवेयर वीटीएस सिस्टम में एक्सेसिबिलिटी प्रणाली सीमित है और उपयोगकर्ता को पूरी तरह से इस सिस्टम के प्रदाता पर निर्भर रहना पड़ता है। इसके अलावा बंदरगाहों के रखरखाव, उन्नयन और अन्य परिचालन प्रणालियों के साथ इसके एकीकरण की लागत भी काफी महंगी है।

गौरतलब है कि मानकीकरण और एकरूपता जैसी चुनौती का समाधान करने के लिए ही नेशनल टेक्नोलॉजी सेंटर फॉर पोर्ट्स एंड वाटरवेस एंड कोस्ट (एनटीसीपीडब्लूसी) ने स्वदेशी वीटीएस सॉफ्टवेयर विकास की अवधारणा बनाई और भारत के प्रमुख बंदरगाहों ने अत्याधुनिक तकनीक को विकसित करने की जिम्मेदारी एनटीसीपीडब्लूसी को सौंपी। इसके बाद इस परियोजना में आईआईटी मद्रास को शामिल किया गया और ओसियन इंजीनियरिंग विभाग के प्रोफेसर के. मुरली के नेतृत्व में वर्ष 2021 में इस पर काम शुरू करके 2022 के अंत तक इस स्वदेशी तकनीक को विकसित कर लिया गया।

इस स्वदेशी तकनीक को व्यव्हार में लाने से सालाना लगभग डेढ़ करोड़ रुपए कि बचत होनी निश्चित है। दरअसल वर्तमान में इस तकनीक को देश के 6 प्रमुख बंदरगाहों पर इस्तेमाल में लाने का कॉन्ट्रैक्ट मिला है, जिसमें पहला प्रोजेक्ट तिरुवनंतपुरम के विलइनाज्म पोर्ट के नाम है। एनटीसीपीडब्ल्यूसी द्वारा विकसित स्वदेशी प्रणाली में परिपक्व ईएनसी मैप इंजन, ज़ोन मॉनिटरिंग और अलार्म, मौसम पूर्वानुमान सेवा, मौजूदा पोर्ट और टर्मिनल ऑपरेटिंग सिस्टम, इंटरऑपरेबिलिटी और राष्ट्रीय सुरक्षा के संदर्भ में गोपनीयता आदि शामिल है।

अब इसका व्यवसायीकरण हो चुका है और इसका लाइसेंस आईआईटीएम स्टार्टअप मैरीटाइम टेक्नोलॉजी प्राइवेट लिमिटेड को दिया गया है।

फिलहाल, हमने इसके लिए आवश्यक सॉफ्टवेयर विकसित कर लिया है और अब इस तकनीक के लिए आवश्यक सेंसर के स्वदेशी उत्पादन पर काम कर रहे हैं, जो एक दो सालों में पूरा हो जाएगा। प्रोफेसर के मुराली, ओसियन इंजीनियरिंग विभाग, आईआईटी मद्रास

इस स्वदेशी तकनीक का सबसे बड़ा फायदा इसकी कम कीमत है। इसके अलावा विदेशों से इस तकनीक को खरीदने के लिए हमें सारा भुगतान एक साथ करना पड़ता है लेकिन यहाँ देश में बनी इस भारतीय तकनीकी के लिए चरणबद्ध भुगतान किया जा सकता है।

इसमें सबसे बडी सुविधा यह है कि जरूरत या सुझाव या के अनुसार इसे अपग्रेड किया जा सकता है। बाहर के देशों के साथ ऐसा करने के लिए है हमें भारी कीमत चुकानी पड़ती है। सुनील पालीवाल, चेयरमैन, चेन्नई पोर्ट ट्रस्ट

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