आईएनएन/चेन्नई, @Infodeaofficial
लोकसभा एवं तमिलनाडु की 22 सीटों पर हुए विधानसभा चुनाव के बाद अब राजनीतिक दलों की नजरें राज्यसभा की सीटों पर है। तमिलनाडु में छह सीटें खाली हो रही है। विधानसभा में संख्याबल को देखा जाएं तो एआईडीएमके छह में से तीन सीटें अपने कब्जे में कर सकती है। पिछले दिनों चुनाव में किए वादे के अनुसार एआईएडीएमके को एक राज्यसभा सीट पीएमके को देनी होगी।
ऐसे हालात में उसके बाद केवल दो सीटें बचेंगी। लेकिन दावेदारों की सूची लम्बी है। ताजा हालात को देखते हुए एआईएडीएमके के लिए राज्यसभा उम्मीदवारों का चयन काफी टेढ़ा होगा। मुख्यमंत्री एडपाडी के. पलनीसामी एवं उप मुख्यमंत्री ओ. पन्नीरसेल्वम के बीच चल रही रस्साकशी इसमें बाधा बन रही है। इनके बीच चल रही खींचतान के चलते ही केन्द्र में मंत्री की कुर्सी भी हाथ से छीन गई। इसी साल जुलाई में राज्यसभा की सीटों के लिए चुनाव होने हैं।
एआईएडीएमके की ओर से के.पी. मुन्नुसामी, नाथन आर.विश्वनाथन, सी.वी. राधाकृष्णन, सी. पोन्नियन रेस में बताए जा रहे हैं। उधर पीएमके की तरह भाजपा भी राज्यसभा की एक सीट की मांग कर रही है। इसके लिए पार्टी के नेताओं ने ईपीएस-ओपीएस तक अपनी डिमांड रख दी है हालांकि इसे लेकर कोई औपचारिक वार्ता अभी नहीं हुई है। ओपीएस के बेटे रविन्द्रनाथ कुमार को मंत्री पद के लिए चली खींचतान के बाद से ही ओपीएस-ईपीएस में दरार बढ़ चुकी है।
पलनीसामी राज्यसभा सदस्य एवं पूर्व राज्यमंत्री आर. वैद्यलिंगम को मंत्री बनाना चाह रहे थे। एआईएडीएमके के बीच चल रहे मतभेदों के चलते एआईएडीएमके केन्द्र में मंत्री पद से वंचित रह गई। ओ. पन्नीरसेल्वम अपने पुराने रसूखों के बूते फिर से पार्टी में साख बनाने में जुटे हैं। ओपीएस खेमे की ओर से पार्टी में महासचिव पद हासिल करने को लेकर जोर-आजमाइश शुरू हो चुकी है।
ओपीएस को लगता है कि पार्टी दक्षिण में और बेहतर कर सकती हैं क्योंकि विधानसभा उप चुनाव में पार्टी में दक्षिण से पांच सीटें जीती हैं तो लोकसभा की एक सीट। जबकि विधानसभा उप चुनाव में एआईएडीएमके ने पश्चिमी क्षेत्र से तीन सीटें तथा उत्तर क्षेत्र से केवल एक सीट जीत पाई। जबकि डीएमके ने पश्चिम क्षेत्र से तीन, उत्तर क्षेत्र से चार तथा मध्य क्षेत्र से तीन सीटें जीती थीं।
एआईएडीएमके के एक वरिष्ठ नेता ने बताया कि आने वाले स्थानीय निकाय चुनाव में भी पार्टी को अपनी प्रभावी उपस्थिति साबित करनी है। यह तभी संभव होगा जब ओपीएस-ईपीएस मतभेद भुलाकर पार्टी को एकजुट करने के लिए जुटेंगे। वरना सरकार एवं पार्टी दोनों के लिए अच्छा नहीं होगा।
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