संसदीय समिति ने की गर्भपात समय सीमा बढ़ाने की सिफारिश

भरत संगीत देव, आईएनएन, नई दिल्ली; @infodeaofficial;  

हिलाओं के सशक्तिकरण से जुड़े कई मामलो में से एक मुद्दा गर्भपात कराने से स बंधित है, जिसमें महिलाओं को अभी तक 46 साल पुराने कानून में निहित 20 हफ्ते की समय सीमा का पालन करना पड़ता है। देश में महिलाओं के सशक्तिकरण से जुड़े मामलों के लिए गठित समिति ने 20 हफ्ते की समय सीमा को 24 हफ्ते करने की सिफारिश की है। इसकी ठोस वजह यह है कि कानून के चंगुल से बचने के लिए अधिकांश महिलाएं जो 20 हफ्ते से ऊपर हो जाती है उनको झोलाछाप डॉक्टरों से गर्भपात कराने को मजबूर होना पड़ता है। हाल ही में जारी द लैसेन्ट ग्लोबल हेल्थ की रिपोर्ट ने उजागर किया है कि भारत देश में प्रतिवर्ष लगभग 1.50 करोड़ से भी अधिक महिलाएं गर्भपात कराती है। इनमे से 1.15 करोड़ महिलाओं का गर्भपात झोलाछाप डॉक्टरों ने किया था।

जिसके फलस्वरूप बहुत बड़ी सं या में महिलाओं की मौत हो जाती है। ग्रामीण क्षेत्रों में महिलाओं को गर्भ ठहरने का पता देरी से लगता है और अधिकतर आनुवंशिक रोगों का पता भी 20 हफ्ते के बाद ही लगता है, इसलिए भी ससंदीय समिति ने इसको बढ़ाने की सिफारिश की। भारत देश में भी अब शहरों में पश्चिमी देशों की तरह महिलाएं शादी करने से पहले लिव इन रिलेसनशिप में रहना पसंद करती है। देश में आधुनिक जीवन शैली और इसके बदलते स्वरूप को देखते हुए 46 साल पुराने कानून में निहित 20 हफ्ते की समय सीमा को बढ़ाना एक उचित कदम होगा। अभी तक यह कानून सिर्फ शादीशुदा महिलाओं के लिए ही था लेकिन बदलते माहौल को देखते हुए इसमें बदलाव की स त जरूरत है। अब सभी वयस्क महिलाओं को समान रूप से गर्भपात कराने का समान अधिकार मिलना चाहिए। महिला सशक्तिकरण की दिशा में यह एक बेहतर कदम होगा। देश में कार्यरत अनेक एनजीओ, ट्रस्टों, संस्थाओं आदि जो बच्चों और महिलाओं के स्वास्थ्य और उनके संरक्षण से जुड़ी हुई है उन्होंने संसदीय समिति की गर्भपात समय सीमा को 20 हफ्ते से 24 हफ्ते करने की इस सिफारिश का स्वागत किया है।

 

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