बेटियों को पढ़ाने के लिए छोड़ दिया गाँव
दर्शिता चौबे, आईएनएन/ग्वालियर, @Infodeaofficial
शिक्षित लोग शिक्षा का मूल्य समझतें हैं | शहरी इलाकों में धन संपदा से परिपूर्ण लोगों का बिना भेद भाव करे अपने बच्चों को पढ़ाना आम बात है | परन्तु विषम परिस्थितियों से लड़ते हुए सारी सुविधाओं का त्याग कर अपने बच्चों के उज्जवल भविष्य का निर्माण करने का सामर्थ्य रखने वाली ममता कम ही देखने को मिलती है|
आज हम आपको कुछ ऐसे लोगों से परिचित कराना चाहते हैं जिन्होने अपनी बेटियों को पढाने के लिए अपना गाँव छोड़ दिया | ग्वालियर के डी बी सिटी इलाके में झोपड़ी में रहने वाली गुड्डीबाई , रामधकेली , मिथलेश और फूलनदेवी नईपुरा गाँव की रहने वाली हैं | बहुत ही कम उम्र में तीनो का विवाह हो गया | गाँव में मर्द खेती बाड़ी करते थे और महिलाएं घरों में रह बच्चों को पालतीं थी | चारों का जीवन गाँव की आम महिलाओं की भाँती बीत रहा था किन्तु उनको जीवन की सार्थकता का अभाव सदेव महसूस होता था |
जैसे उनका जीवन चुल्ह-चौके तक सीमित था , वे नहीं चाहतीं थी कि उनकी बेटियों को भी यही जीवन मिलें | इन चारों की यही सोच इनको ख़ास बनाती है | चारो ने ठान लिया कि वे अपनी बेटियों को पढ़ाएंगी | लेकिन इस मार्ग में अर्चने बहुत थी | गाँव में कम ही लड़कियां पढ़ती थी और जो गिनी चुनी गाँव के इकलौते सरकारी विद्यालय जाती भी थी तो वहां शिक्षक मौजूद नहीं होते थे | सरकार द्वारा लाई हुयी शिक्षा से सम्बंधित योजनाओं की सफलता के दावों की सत्यता आम लोगों के संघर्ष की कहानियाँ प्रकट करती हैं |
अनपढ़ होते हुए भी शिक्षा के मूल्य को समझने वाली इन महिलाओं ने हार नहीं मानी | उन्होंने गाँव छोड़ने का फैसला किया | शुरुआत में चारों के इस फैसले से उनके पतियों को आपत्ती थी , पर महिलाओं की ज़िद के आगे वे झुक गए | चारों परिवारों ने गाँव में अपना घर और काम छोड़ दिया तथा ग्वालियर शहर की तरफ रवाना हो गए | यहाँ जगह ढूंढ उन्होंने रहने के लिए मिट्टी के घर बनाएं |
आय के लिए किसी ने बेलदारी का काम चुना तो किसी ने कारीगरी करने का निर्णय लिया | अपनी बेटियों का दाखिला एक प्राइवेट स्कूल में कराया और साथ ही उनका ट्यूशन भी लगवा दिया | बेटियों की पढ़ाई का खर्चा इतना हो जाता है कि वे ना तो पेट भर खा पातें है न मन के कपडे पहन पाते हैं |
अपनी बेटियों को शिक्षित करने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं | बेटियों को भी अपने माता – पिता के संघर्ष और त्याग का आभास इतनी कम उम्र में हो चुका है | कोई पढ़ लिख कर अफसर बनना चाहती है तो कोई डॉक्टर |
पिछड़े हुए भारत की ये बढ़ती सोच एक मिसाल है | सभी सुविधाओं के होते हुए भी जो लोग बेटियों को पढ़ाने के पक्ष में नहीं हैं उनको इन महिलाओं से प्रेरणा लेनी चाहिए |
Waaao again😊😊 it’s being a proud moment and I feel very proud to you❤️❤️ well done darshi❤️✌️❤️ keep going and do motivate the people ✌️✌️👏👏👏
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