पुरालेखण की प्रक्रिया में ‘ओपन फोरम’ने डिजिटल दुविधा पर चर्चा की

 आईएनएन/ नई दिल्ली, @Infodeaofficial.

भारत के विविध सिनेमा ने दुनिया भर में फिल्म समुदाय का ध्यान एवं भाव आकृष्ट किया है। वर्ष 1913 में दादासाहेब फाल्के की प्रथम मूक फिल्म राजा हरिश्चंद्र से लेकर वर्तमान तकदेश ने फिल्मों का एक गुलदस्ता प्रस्तुत किया है जो क्षेत्रों, भाषाओं एवं संस्कृतियों तक फैला हुआ है। किंतु जब यह फिल्में बॉक्स ऑफिस पर अपना जीवन जी लेती हैं तब क्या होता है ? इस संदर्भ में परिरक्षण अत्यंत महत्वपूर्ण है। भारत अंतर्राष्ट्रीय फिल्म महोत्सव (आईएफएफआई) के ओपन फोरम का दूसरा दिन ‘भावी पीढ़ी के लिये डिजिटलीकरण, पुनर्नवीकरण, एवं परिरक्षण की अविलंब्य आवश्यकता’ लेकर सामने आया ।

सुप्रसिद्ध फिल्म निर्माता एवं भारत अंतर्राष्ट्रीय फिल्म महोत्सव 2018 की तकनीकी समिति के अध्यक्ष श्री ए के बीर ने चर्चा की शुरुआत करते हुए कहा कि तकनीक ने अनेक वर्षों बाद पुरानेपन, रासायनिक परिवर्तनों एवं अन्य ख़राबियों से जूझ रही फिल्मों के भंडारण में बहुत ही सहायता की है। डिजिटलीकरण ने उसी रंग एवं गहराई के साथ फिल्मों को संरक्षित करने में समर्थ बनाया है जिस रंग एवं गहराई के साथ वह आरंभ में तैयार हुईथीं । यद्यपि पुनर्नवीकरण से रचनात्मक हल्केपन का ख़तरा भी पैदा हुआ।

उन्होंने चेतावनी दी कि “कभी कभी जो व्यक्ति पुनर्नवीकरण की प्रक्रिया से संबंधित होता है वह तकनीक से प्रभावित होकर वर्षों पूर्व तैयार किये गए मूल स्वरूप में एक नयापन देने में प्रवृत्त हो सकता है। ”यहां सुधार की मात्रा पुनर्नवीकरण करने वाले के ‘नीतिपरक बोध’ पर निर्भर करती है। उन्होंने निश्चयपूर्वक कहा कि यह ठीक उसी स्वरूप में होना चाहिये जिसमें इसकी रचना कीगई थी तथा इसकी गहराई व रंगत अक्षुण्य रखी जानी चाहिये। उन्होंने कहा किएक फिल्म का पुनर्नवीकरण करते समय उस व्यक्ति का सम्मान किया जाना चाहिये जिसने किसी विचारको साकार करने के लिये कुछ निश्चित प्रकार की चैतन्यता की रचना करने हेतु ढेर सारा प्रयास किया था।

स्वीडिश फिल्मों के पुनर्नवीकरण की प्रक्रिया पर प्रकाश डालते हुए स्वीडन के इंगमार बर्मन सेंटर की निदेशक सुश्री जानिके अहलुण्ड ने कहा कि स्वीडिश फिल्मों के भंडारण का कार्य वर्ष 2010 में सरकार द्वारा मुहैया अच्छी खासी सहायता राशि से प्रारंभ हुआ। यह प्रक्रिया ख्यातनाम स्वीडिश फिल्म निर्माता इंगमार बर्मन द्वारा शतवर्षीय उत्सव को देखते हुए शुरु की गई थी । सभी फिल्मों का पुनर्नवीकरण किया गया एवं दुनिया भर के पूर्वव्यापी फिल्म महोत्सवों तक यह फिल्में पहुंची।

उन्होंने इस बात पर भी ज़ोर दिया कि यह आवश्यक रूप से सिर्फ श्रेणीबद्ध गुणवत्ता नहीं है जो हमेशा यह निर्धारित करती हो कि किसी फिल्म को पुनर्नवीकरण के लिये चयनित किया जाना है। उन्होंने कहा कि इन फिल्मों के अधिकार किसके पास हैं, यह पता लगाना अक्सर एक कठिन कार्य होता है। उन्होंने साथ में जोड़ा कि चूंकि अनेक फिल्म निर्माता गुज़र चुके हैं, इसलिये संस्थान उन रिश्तेदारों का पता लगाने के लिये एक व्यापक शोध प्रणाली से गुजरता है जिनके पास यह अधिकार पाए जा सकते हैं।

सुश्री जानिके के विचारों का खण्डन करते हुए राष्ट्रीय फिल्म संग्रहालय के निदेशकश्री प्रकाश मैग्दम ने कहा कि संसाधनों एवं समय की सीमाओं को ध्यान में रखते हुए फिल्मों का डिजिटलीकरण चयनित रूप में किया जाना चाहिये। उन्होंने कहा,“फिल्मों को डिजिटल स्वरूप में संरक्षित किया जाए या फिर सेल्युलोइड स्वरूप की ओर लौटा जाए, यह संग्रहण में जुड़े लोगों के समक्ष एक डिजिटल असमंजस प्रस्तुत करता है। किंतु फिल्मों के संग्रहण के लिये कोई सार्वभौमिक उत्तर या समाधान नहीं हैं।”

उन्होंने बताया कि संग्रहण की प्रक्रिया के लिये सेल्युलोइड लंबी अवधि की सर्वश्रेष्ठ उपलब्ध प्रक्रिया है। “यदि आप इसको एक नियंत्रित वातावरण में रखते हैं, यह 150 से भी अधिक वर्षों तक सुरक्षित बनी रह सकती है।” श्री प्रकाश मैग्दम ने आगे कहा कि प्रचार सामग्री, जो किसी भी फिल्म की खिड़कियां होती हैं, उनका फिल्मों के साथ ही डिजिटलीकरण किया जाना चाहिये।

पुरालेखीय अधिग्रहण, मुंबई के प्रमुख श्री सुभाष छेड़ा श्रोताओं को फिल्मों के पुनर्नवीकरण एवं पुरानी फिल्मी पत्रिकाओं को इकट्ठा कर उनकेएवं अन्य स्मरणीय सामग्रियों केविशद आंकड़ासंचय की अपनी निजी यात्रा पर ले गए। उन्होंने इस पर भी ध्यान दिलाया कि चूंकि फिल्में छवियों एवं धवनियों का संग्रह होती है, लिहाज़ा ध्वनि समेत छवियों के पुनर्नवीकरण पर भी ध्यान दिया जाना चाहिये। उन्होंने कहा किफिल्मों के डिजिटलीकरण एवं पुनर्नवीकरण में अभिगम्यता एक और आयाम है जिसमें असावधानी नहीं होनी चाहिये।

फेडेरेशन ऑफ फिल्म सोसाइटीज़ ऑफ इण्डिया के अध्यक्ष श्री किरन वी शांताराम ने कहा कि उनका संघ पुराने सिनेमा को युवा पीढ़ी तक ले जाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। फिल्म निर्देशक श्री आर धनराज एवं श्री कार्तिक जे शिंदे भी उपस्थित थे। श्री किरण वी शांताराम ने आयोजन मेंप्रतिष्ठित तेलुगू फिल्म निर्माता स्वर्गीय के बी तिलक पर श्री एन गोपालकृष्णन द्वारा लिखित एक पुस्तक का विमोचन भी किया। फेडेरेशन ऑफ फिल्म सोसाइटीज़ ऑफ इण्डिया के उपाध्यक्ष श्री एन शशिधर ने ओपन फोरम के दौरान हुई चर्चा का संचालन किया।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *