दक्षिण से बढ़ रही ‘रेल’ की रफ़्तार
जीएम कुलश्रेष्ठ इन्फोडिया से विशेष बातचीत में बताते हैं कि तकनीक की मदद से रेल यात्रियों के लिए सेवा सहज और सुगम बनाने के लिए कई विशेष परियोजनाएं शुरू की गयी हैं।
आईआईएन/चेन्नई, @Infodeaofficial
रेलवे गतिमान है और इसकी गति इधर हाल के कुछ वर्षों में और अप्रत्याशित रूप से द्रुतगामी होने की ओर बढ़ रही है। रेलवे की इस सफलता की कहानी बयां की जाए और दक्षिण रेलवे और खासकर चेन्नई की चर्चा न हो, ऐसा कैसे हो सकता है? पहले इंटीग्रल रेल कोच फैक्ट्री (आईसीएफ) ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के महत्वाकांक्षी ट्रेन-18 परियोजना को सफलतापूर्वक पूरा कर ट्रैक पर दौड़ा दिया।
अब दक्षिण रेलवे ट्रेन परिचालन को लाभकारी, पर्यावरण हितैषी, गतिमान और नवोन्मेष अपनाकर सुरक्षित व आसान बना रही है। दक्षिण रेलवे की इस सफलता के नायक हैं महाप्रबंधक (जीएम) आरकेे कुलश्रेष्ठ हैं। देश के अन्य रेल जोनों के लिए मिसाल स्थापित कर रहा दक्षिण रेलवे अनुसंधान, तकनीक और अभिनव प्रयोग के काॅकटेल से सेवा क्षेत्र का ऐसा उत्पाद तैयार कर रहा है, जो भारतीय रेलवे का मील का पत्थर बनेगा।
जीएम कुलश्रेष्ठ इन्फोडिया से विशेष बातचीत में बताते हैं कि तकनीक की मदद से रेल यात्रियों के लिए सेवा सहज और सुगम बनाने के लिए कई विशेष परियोजनाएं शुरू की गयी हैं। इससे न केवल रेल यात्रा सुलभ, सुरक्षित और सुविधाजनक होगी, बल्कि रेलकर्मियों का कार्य भी आसान होगा।
हाल ही रामेश्वरम स्थित ब्रिज के पानी के नीचे के भाग का मुआयना अंडरवाटर ड्रोन की मदद से किया गया। 100 बरस से अधिक के इस ब्रिज की मरम्मत के लिए काफी मशक्कत करनी पड़ती थी।
पानी के ऊपर के हिस्से पर ब्रिज की मरम्मत और देखभाल का काम मुश्किलों भरा होता था। रेलकर्मी जान जोखिम में डालकर इसकी मरम्मत करते थे।
खासकर पानी के अंदर जाकर ब्रिज के कलपुर्जों की जांच करना अधिक जोखिम और कठिनाई वाला होता है। अब यह काम अंडरवाटर ड्रोन से किया जा रहा है।
रेलवे को विश्वस्तरीय बनाने में देश की विख्यात इंजीनियरिंग व शोध संस्थाएं भी रेलवे के साथ काम कर रही हैं। कुलश्रेष्ठ ने बताया कि आईआईटी मद्रास के साथ मिलकर अभी कुछ प्रयोग किए जा रहे हैं। इन प्रयोगों का नतीजे रेल मंत्रालय को भेजे जाएंगे। स्वीकृति मिलने के बाद ही इसे भारतीय रेल अपने विभिन्न जोनों में जरूरत के अनुसार काम में लाएगी।
मसलन, पम्बन ब्रिज पर पानी के अंदर अंडरवाटर ड्रोन से जांच व देखरेख परियोजना आईआईटी मद्रास के पूर्व छात्रों द्वारा बनाई गयी कंपनी प्लानिस टेक्नोलॉजी द्वारा विकसित अंडरवाटर ड्रोन ‘आरओवी बेलुगा’ की मदद से किया जा रहा है। यह अभी प्रायोगिक तौर पर किय जा रहा है।
देश में रेलवे उन चुनिंदा संस्थाओं में शामिल है, जिनका आधारभूत ढांचा विशाल है। इतने बड़े ढांचे का रखरखाव व देखभाल करना आसान नहीं है। कुलश्रेष्ठ ने बताया कि रेलवे एरियल ड्रोन की मदद से अपने आधारभूत ढ़ाचों का मुआयना कर रही है। साथ ही रेलवे अपनी संपत्ति व नई परियोजनाओं की निगरानी में ड्रोन की सहायता ले रहा है। नई लाइनों को बिछाने, लाइन दोहरीकरण, मीटरगेज से ब्राडगेज आमान परिवर्तन कार्यों की निगरानी भी एरियल ड्रोन से किया जाएगा।
भारतीय रेलवे के पास बड़ा भूमि बैंक भी है। इनमें से बहुत सी संपत्तियों पर अवैध कब्जे भी थे। कुलश्रेष्ठ ने ऐसी संपत्तियों की पहचान कर उन्हें अवैध कब्जा मुक्त बनाने का अभियान शुरू किया। वो बताते हैं कि आईआईटी मद्रास और आरडीएसओ लखनऊ के साथ मिलकर रेल संपत्ति, रेल परिसर, रेलवे लाइन व आधारभूत ढांचे के निरीक्षण व संरक्षण के लिए तकनीक का प्रयोग किया जाएगा। रेल मंत्रालय द्वारा इन तकनीकों की स्वीकृति मिलने के बाद दक्षिण रेलवे ही नहीं, बल्कि अन्य रेलवे भी इसका लाभ ले सकेंगे।
इन तकनीकों की मदद से जारी परियोजनाओं की सतत निगरानी और इनकी आॅनलाइन रिपोर्ट सीधे विभाग के अधिकारियों व रेल मंत्रालय तक पहुंच सकेगी। हालांकि अभी यह प्रस्ताव रेल मंत्रालय के पास विचाराधीन है। वर्तमान में दक्षिण रेलवे सेंगोट्टै और पुनालुर सेक्शन के दुर्गम रास्तों के ट्रैक की निगरानी के लिए ड्रोन के इस्तमाल पर विचार कर रही है। दक्षिण रेलवे ने ही पहली बार रेलवे के अंडरवाटर ढांचों के निरीक्षण, मरम्मत व रखरखाव के लिए ड्रोन की मदद लेना शुरू किया है।