माओवादी हिंसा में हुए दिव्यांग,पर नहीं टूटे हौसले
अदम्य साहस के साथ दिखाई उत्कृष्ट खेल प्रतिभा-पुनेम सन्ना
आईएनएन/बस्तर, @Infodeaofficial
बस्तर ओलंपिक में जहां पर नक्सल हिंसा में दिव्यांग हुए खिलाड़ियों ने अपने मजबूत इरादे के साथ उत्कृष्ट खेल प्रतिभा का प्रदर्शन किया। ऐसे ही नक्सली हिंसा को छोड़ मुख्य धारा में आएं आत्मसमर्पित आरक्षक बने सुकमा जिले अंतर्गत दोरनापाल के गांव पालेमपाठ निवासी पुनेम सन्ना ने भी व्हील चेयर में दौड़ लगाई। उन्होंने बताया कि वह करीब 22 साल की उम्र में सन 2000 में नक्सलियों के सम्पर्क में आया।
मुझे बताया की सशस्त्र विद्रोह से ही हमारे जीवन में बदलाव आएगा मुझे तो खाना मिल जाता था पर मेरे घर वाले भूखे ही रहते थे.बमुश्किल जीवन यापन करते थे। ये सब देखकर मैं छत्तीसगढ़ सरकार की समर्पण नीति से प्रभावित होकर 2012 में समर्पण कर मुख्य धारा में आया। मुख्य धारा में आने के बाद सन 2013 मुझे डीआरजी में आरक्षक के रूप में नियुक्त किया गया। मुझे और मेरे परिवार को इसका कीमत भी चुकाना पड़ा।
नक्सलियों ने मेरे बड़े भाई जोगा सन्ना को भी मौत के घाट उतार दिया। अगस्त 2013 में गस्ती के दौरान अचानक नक्सलियों ने अंधा धुंध फायरिंग सहित बम ब्लास्ट हुई। मेरे साथी जवान शहीद एवं मेरे बाएं पैर बुरी तरह से प्रभावित हो गया। जिससे मैं अब चलने में असमर्थ हु। परन्तु मेरे इरादे नहीं टूटे है और इस बस्तर ओलम्पिक में भाग लिया।