जूनियर गर्ल्स नेशनल फुटबॉल चैंपियनशिप 2024-25 टियर 2 पर बीकानेर की लड़कियों का कब्ज़ा
INN/Jaipur, @Infodeaofficial
रेतीले धोरों में फुटबॉल खेलती लड़कियां एक अलग ही जोश और जज्बा दर्शाती हुई नजर आती है। बीकानेर से 75 किलोमीटर दूर ढिंगसरी गांव की इन लड़कियों ने हाल ही में राजस्थान से खेलते हुए बेलगाम में कर्नाटक को 3-1 से हराकर जूनियर गर्ल्स नेशनल फुटबॉल चैंपियनशिप 2024-25 टियर 2 पर कब्ज़ा किया। इन्होंने 60 साल बाद राष्ट्रीय खिताब जीता जो राज्य के लिए गर्व की बात है।
पूर्व राज्य खिलाड़ी और अर्जुन पुरस्कार विजेता मगन सिंह राजवी के बेटे विक्रम सिंह राजवी यहां जूनियर लड़कियों को प्रशिक्षण दे रहे हैं। बीकानेर के ढींगसारी गांव में, जहां पर्याप्त बिजली और पानी की आपूर्ति अभी भी एक दूर की कौड़ी है और बाल विवाह व्यापक हैं, राजवी ने अपने गांव में बालिकाओं को फुटबॉल से परिचित कराकर अपने पिता की विरासत को आगे बढ़ाने का फैसला किया।
अखिल भारतीय फुटबॉल महासंघ (एआईएफएफ) के राष्ट्रीय टूर्नामेंट के लिए चुनी गई 22 सदस्यीय टीम में ढींगसरी गांव में स्थापित मगन सिंह राजवी स्पोर्ट्स फाउंडेशन की 12 युवा प्रशिक्षित खिलाड़ी बालिकाएं थी। राजवी ने दूरदर्शन को बताया कि इन बालिकाओं को इस साल कोटा में राज्य स्तरीय टूर्नामेंट के दौरान चुना गया था। राज्य स्तरीय फुटबॉलर राजवी कहते हैं कि उनके गांव से राज्य का प्रतिनिधित्व करने वाली ज्यादातर लड़कियां फुटबॉल खेलती हैं। इसमें काफी मेहनत लगी, लेकिन मैंने उन्हें आश्वासन दिया कि लड़कियां सुरक्षित रहेंगी। मैंने उन्हें समझाया कि फुटबॉल खेलने से उनके लिए नए रास्ते खुलेंगे और उन्हें नौकरी पाने में मदद मिलेगी।\” राज्य फुटबॉल सचिव शेखावत ने कहा, \”ये लड़कियां गांवों से आती हैं और मिट्टी में प्रशिक्षण लेती हैं।
कोच विक्रम सिंह राजवी कहते हैं कि ढिंगसरी गांव में राष्ट्रीय फुटबॉल चैंपियनशिप जीतने वाली राजस्थान टीम के सदस्यों के साथ मिलकर बच्चों को प्रशिक्षित किया जा रहा है। ये बच्चे आर्थिक रूप से कमजोर पृष्ठभूमि से आते हैं, जहां उनके पिता \”पशुपालन से जो कुछ भी जुटा पाते हैं, उससे घर चलाते हैं।\” \”उनके पास पैसे नहीं हैं और वे अपनी बेटियों को स्कूल नहीं भेजते। 12 साल की उम्र तक उनमें से अधिकांश की शादी हो जाती है। गांव में अकादमी खोलने के पीछे एक कारण यह बदलाव लाना था। जब उन्होंने माता-पिता को अपनी लड़कियों को खेलने के लिए भेजने के लिए मनाने की कोशिश की, तो उन्हें अनेक दिक्कतें आई।
टूर्नामेंट शुरू होने पर विक्रम ट्रॉफी जीतने वाली अंडर-19 टीम और एआईएफएफ कोच के साथ यात्रा पर गए थे। उन्होंने कहा कि कोच बनने के लिए एआईएफएफ द्वारा अलग-अलग सर्टिफिकेट कोर्स करने होते हैं, पूर्व में उनके पास ऐसा कोई सर्टिफिकेट नहीं था परंतु अब सर्टिफिकेट कोर्स कर चुके हैं तथा उन्हें हाल ही में डी लाइसेंस मिला है।\” उल्लेखनीय है कि अखिल भारतीय फुटबॉल महासंघ ने \’विजन 2047\’ के साथ अपने रणनीतिक रोडमैप का अनावरण किया था। जिसमे लंबे समय से प्रतीक्षित रोडमैप, \’विजन 2047\’ से उम्मीद है कि देश की आजादी के शताब्दी वर्ष में, भारत एशियाई फुटबॉल का एक नया पावरहाउस भी बनकर उभरेगा। इसके तहत बालिकाओं को इस खेल से जोड़ने नए कोच तैयार करने सहित विभिन्न प्रयास किया जा रहे हैं।
इसी के साथ अब पुराने में तक तोड़ते हुए ग्रामीण अपनी बेटियों को इस फुटबॉल अकादमी में भेज रहे हैं यही नहीं यहां पर आपको बहुत छोटी उम्र की लड़कियां भी मिलती है जिनकी आंखों में चमक दिखाई देती है। यह चमक है उस सपना की जो इन्हें घर से उस खेल के मैदान तक ले आया है। यह बालिकाएं रहती है कि पहले केवल गांव से लड़के ही खेलते थे पर अब खेलने प्रारंभ होने के बाद इस गांव की लगभग हर बेटी इस खेल मैदान में खेलने आता है और माता-पिता का भी नेशनल चैंपियनशिप जीतने के बाद इतना विश्वास जमा है कि वह अपनी बेटियों का भविष्य अब खेलों में देखने लगे हैं। हाल ही में दक्षिण एशियाई फुटबॉल महासंघ चैम्पियनशिप (सैफ चैंपियनशिप) मे भी इस अकादमी की मुन्नी भांभू ने नेपाल में राजस्थान का प्रतिनिधित्व किया है।
वह गांव जहां लड़कियों की 12 से 14 की उम्र में शादी कर दी जाती थी वहां के माता-पिता अब कहने लगे हैं कि हमारी बेटियां पढ़ाई और खेल दोनों जारी रखेंगी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के उस सपने को साकार करेगी जिसमें देश की हर बेटी, गांव की हर बेटी स्वयं को खेल में भी प्रतिस्थापित कर सके। हालांकि मंजिल अभी दूर है पर इन आंखों का जज्बा, कुछ कर गुजरने की चाह और खेल के मैदान में बहता पसीना आने वाले स्वर्णिम भविष्य की कहानी कहता नजर आता है कि वह दिन दूर नहीं जब हमारी बेटियां अंतरराष्ट्रीय मंच पर फुटबॉल में भारत का प्रतिनिधित्व करेंगी।