आईएनएन/नई दिल्ली @Infodeaofficial
केंद्र सरकार देश में सिंचित भूमि बढ़ाने के उपायों पर काम कर रही है, लेकिन इस लक्ष्य की प्राप्ति में ऊर्जा की भूमिका चुनौती के रूप में है। ऐसे में गैरपारंपरिक ऊर्जा स्रोत किसानों की सिंचाई के सस्ते व टिकाऊ साधन बन सकते हैं। विशेष कर पवन ऊर्जा व सौर ऊर्जा किसानों को पारंपरिक ऊर्जा से मुक्ति दिलाकर सिंचाई के लिए पर्याप्त बिजली दिलाने की क्षमता रखता है।
केंद्रीय नवीन व नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय के संयुक्त सचिव भानु प्रताप यादव ने सोमवार को चेन्नई स्थित नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ विंड एनर्जी (एनआईडब्ल्यूई) द्वारा ‘स्माल विंड टरबाइन’ विषयक तीन दिवसीय अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन के उद्घाटन के पश्चात कहा कि देश की अपार ऊर्जा जरूरतों को पूरा करने के लिए वर्तमान सरकार द्वारा वैकल्पिक ऊर्जा पर जोर देने के चलते पारम्परिक ऊर्जा पर निर्भरता घट रही है। यह उन लोगों के लिए एक अच्छा संकेत है जो कि नवीकरणीय ऊर्जा के क्षेत्र में काम कर रहे है और उसपर अपनी निर्भरता बढ़ा रहे हैं।
उन्होंने कहा कि वर्ष 2022 तक हमारा लक्ष्य 175 गीगा वाट ऊर्जा का उत्पादन नवीकरणीय ऊर्जा क्षेत्र से करने का है। अब तक 73 गीगा वाट उत्पादन का लक्ष्य प्राप्त कर लिया गया है। उन्होंने कहा कि भारत का लक्ष्य वर्ष 2030 तक एक तिहाई कार्बन उत्सर्जन कम करने का है। इस पर भी युद्ध स्तर पर काम किया जा रहा है। समय रहते हम इस लक्ष्य को हांसिल कर लिया जाएगा।
फिलहाल भारत पवन ऊर्जा उत्पादन के क्षेत्र में विश्वभर में चौथे स्थान पर और सौर ऊर्जा व नवीकरणीय ऊर्जा उत्पादन के क्षेत्र में पांचवें स्थान पर आता है।
यादव ने कहा कि भारत में पवन ऊर्जा की सम्भावनाएं अभी काफी है। इससे न केवल पारम्परिक ऊर्जा पर निर्भरता घटेगी, बल्कि रोजगार के अवसर भी बढ़ेंगे। अभी अंडमान निकोबार द्वीप समूह जैसे दूरदराज के स्थानों पर नवीकरणीय ऊर्जा का उपयोग कर बिजली आपूर्ति व्यवस्था पर कार्य किया जा रहा है। लद्दाख जैसे पहाड़ी इलाकों में सौर और पवन ऊर्जा से बिजली प्रदान करने के मॉड्यूल भी तैयार किए जा रहे हैं।
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