हिंदी को थोपने के बजाय उसकी जरूरत को समझाएं
आईएनएन/चेन्नई, @Infodeaofficial
केंद्र सरकार द्वारा तृभाषिय फार्मुला लागु करने के घोषणा की है उसके बाद से तमिलनाडु में इसका खासा विरोध देखने को मिल रहा है। कई राजनैतिक पार्टियां, नेता, फिल्मी हस्तियां व कई आमजन इस फैसले के विरोध में अपनी आवाज बुलंद कर रहे हैं। हालांकी तमिलनाडु भाजपा इकाई के नेता केंद्र सरकार के इस फैसले को सही बता रहे हैं। इंफोडिया ने इस बारे में कुछ शिक्षाविद और राजनेताओं से इस मसले पर उनका पक्ष जानने की कोशिश की। प्रस्तुत है उनसे की गई बातचीत का कुछ अंश।
हिंदी को तमिलनाडु पर थोपने के बजाय इस बात पर विशेष ध्यान देना चाहिए कि कैसे हम लोगों को उसकी जरूरत के बारे में समझाएं। यह कहना है कि वीआईटी शिक्षण संस्थान के संस्थापक जी. विश्वनाथन का।
इंफोडिया ने जब उनसे पूरे प्रकरण पर बात की तो उन्होंने साफ शब्दों में कहा कि यह नियम आज का नहीं बल्कि सबसे पहले वर्ष 1968 में यह फार्मुला लागु किया गया था।
इस फार्मुले के तहत हिंदी प्रदेशों में हिंदी, अंग्रेजी भाषा के बजाय आधुनिक हिंदी भाषा को विकल्प में रूप में पढऩा था। जिसमें प्रमुखता दक्षिण भारतीय भाषाओं को दी जाती। जिस वक्त इसे लागु किया गया उस वक्त शिक्षा राज्य का विषय होता था लेकिन आपातकाल के बाद यह केंद्र के हाथ आ गया।
अबतक की केंद्र सरकार इस मुद्दे को लेकर गम्भीर ही नहीं थी और अचानक से नींद खुलने पर मनमानी नहीं की जा सकती। आज का तमिलनाडु दशकों पहले जैसा नहीं है। आज के लोग प्रदेश के बाहर नौकरी व पढ़ाई के लिए जाते हैं और बाहर के प्रदेश के लोग यहां आते हैं। इसलिए यह हमें लोगों पर छाडऩा चाहिए वह किसी भाषा के प्रति अपनी रूचि रखते हैं।
ऊर्दु से ज्यादा तमिल की मुझे है अच्छी जानकारी
तमिलनाडु की श्रममंत्री डा. निलोफर कबिल का कहना है कि मेरा प्रेम और ज्ञान ऊर्दु के मुकाबले तमिल से ज्यादा है।
जब उनसे केद्र सरकार के तीन भाषा वाले फार्मुले के बारे में पूछा गया तो उन्होंने दो टुक में जवाब दिया कि मेरा इस मसले पर वही जवाब है जो हमारी सरकार है।
मै तीन भाषा वाले फार्मुले का सर्मथन नहीं करती हुं। उन्होंने कहा कि तमिलनाडु में रहना है तो तमिल को जानना जरूरी है और तमिलनाडु के लोगों को अपनी भाषा और संस्कृति से काफी प्यार है। ऐसे में कोई हमपर बाहर से कोई अन्य भाषा व अपनी संस्कृति
कोई भी कितनी भी भाषा सीख सकता है यह व्यक्ति की रूचि पर निर्भर
तमिलनाडु में तीन भाषा को लागु करना असम्भव समान है। लेकिन इससे यह जाहिर नहीं होता कि तमिलनाडु में रहने वाला व्यक्ति तमिल व अंग्रेजी के अलावा और कोई भाषा नहीं पढ़ सकता।
आज भी यहां के शिक्षण संस्थानो में फ्रेंच, अरबिक, हिंदी जैसे विषयों की पढ़ाई होती है। यह कहना है कि एसआरएम ग्रुप के संस्थापक और पेरम्बलुर के सांसद डा. टी. आर. पारीवेंदर का।
जिन्हें जिस और जीतनी भाषा में रुचि है वह उतनी भाषा पढ़ सकते हैं। उन्होंने कहा कि 1965 के दौरान हिंदी के खिलाफ जो आंदोलन हुआ है वह अभी भी तमिल लोगों के जहन में है।
कुछ द्रविड़ पार्टियां सत्ता में इसी मुद्दे को तूल देकर आई हैं। ऐसे में वो पार्टियां हिंदी को तमिलनाडु में आने नहीं देंगी। हां लेकिन हिंदी सिखने के लिए कोई भी किसी को नहीं रोक रहा है। अब मुझे दिल्ली जाकर संसद में अधिकांश लोगों की कही बात समझ नहीं आएगी इसका कारण है कि मुझे हिंदी का कोई ज्ञान नहीं। अब इस उम्र में मेरी अंदर इच्छा जाग रही है कि मै हिंदी सीखुं।
इस मुद्दे के लिए यह सही वक्त नहीं
तमिलनाडु में तीन भाषा को लागु करने के लिए केंद्र सरकार को यही उचित समय मिला था? अभी कई ऐसे महत्वपूर्ण मुद्दे हैं जिसपर केंद्र सरकार को गम्भीरता से विचार करना चाहिए।
आरणी सीट से जीते कांग्रेस सांसद एमके विष्णु प्रसाद का कहना है कि राज्य में जल संकट, निपाह और कई ऐसे मानव जीवन को प्रभावित करने वाले मुद्दे हैं लेकिन उन विषयों पर केंद्र सरकार का ध्यान क्यों नहीं जाता।
एनडीए सरकार तमिलनाडु के साथ हमेशा सौतेला व्यवहार क्यों करती है? इस संवेदनशिल मुद्दे को छूने के बजाय जन हितैषी मुद्दों पर पहले काम करना चाहिए। यदि व्यक्ति रहेगा तब जाकर वह भाषा व अन्य चिजों के बारे में सोचेगा।
आज तमिलनाडु की जनता जल संकट से जुझ रही है, क्या केंद्र सरकार ने उसके लिए कुछ सोचा है? हम हिंदी के खिलाफ नहीं है पर खिलाफ इस बात के हैं कि इसे कैसे लागु किया जा रहा है।