धर्म व जाती बताना अब जरूरी नहीं

 

श्रेया जैन, आईआईएन/चेन्नई, @Infodeaofficial

ब लोगों के लिए यह जरूरी नहीं रह गया कि वे अपना जाती व धर्म के बारे में किसी को जानकारी दें। नौ साल की जद्दोजहत के बाद तमिलनाडु की महिला के प्रयास से यह सम्भव हो पाया है। तमिलनाडु के वेलूर जिले की रहने वाली स्नेहा जो पेशे से वकील है कोर्ट में एक लम्बी लड़ाई लड़कर यह हक पायया कि अपना धर्म या सरनेम दिखाने के लिए बाध्य नहीं है।

स्नेहा को आधिकारिक रूप से नो कास्ट नो रिलीजन सर्टिफिकेट मिल गया है। यानी अब सरकार दस्तावेजों में इन्हें जाति बताने या उसका प्रमाण पत्र लगाने की कोई जरूरत नहीं होगी। एमए स्नेहा वेलूर के तिरुपत्तूर की रहने वाली है। वह बतौर वकील तिरुपत्तूर में प्रैक्टिस कर रही हैं। अब सरकार के द्वारा इन्हें जाति व धर्म न रखने की इजाजत मिल गई है।

स्नेहा व उनके माता पिता हमेशा से किसी आवेदन पत्र में जाति एवं धर्म का कालम खाली छोड़ते थे। लंबे समय से जाति धर्म से अलग होने के उनके संघर्ष की जीत 5 फरवरी को हुई।

जब उन्हें सरकार की ओर से यह प्रमाण पत्र मिला। 5 फरवरी को तिरुपत्तूर जिले के तहसीलदार टीएस सत्यमूर्ति ने स्नेहा को नो कास्ट नो रिलीजन सर्टिफिकेट सौंपा।

स्नेहा इस कदम को सामाजिक बदलाव के तौर पर देखती हैं। वहां के अधिकारियों का कहना है कि उन्होंने इस तरह का सर्टिफिकेट पहली बार बनाया है।

स्नेहा ने इस प्रमाणपत्र के लिए 2010 में अप्लाई किया था लेकिन अधिकारी उनके आवेदन को टाल रहे थे। 2017 में उन्होंने अधिकारियों के सामने अपना पक्ष रखना शुरू किया।

स्नेहा ने कहा कि तिरुपत्तूर की सब कलक्टर बी.प्रियंका पंकजम ने सबसे पहले इसे हरी झंडी दी। इसके लिए उनके स्कूल के सभी दस्तावेज खंगाले गए। जिसमें किसी में भी उनका जाति धर्म नहीं लगा था।

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