चित होने के बाद फाउल गेम पर उतारू राजस्थान पत्रिका

आईआईएन/चेन्नई, @Infodeaofficial  
बात—बात पर लंबे व ऊबाऊ लेखों के जरिए दूसरों को नीति—सिद्धांत का उपदेश देने वाला राजस्थान पत्रिका खुद ही कानून व सिद्धांतों की धज्जियां उड़ाने में जुटा है। यह संस्थान न केवल कर्मचारियों का शोषण व उत्पीड़न करते हुए तानाशाही रवैया अपना रहा है, बल्कि न्यायालय के आदेशों को बहानेबाजी करके मानने से इनकार कर रहा है। इस संस्थान के मुखिया दूसरों को नसीहत देते फिरते हैं, लेकिन उनका ही संस्थान पर न्यायालय, कानून और विधिक संस्थाओं का मखौल उड़ाने के आरोप लग रहे हैं। 
   
ताजा मामला मजीठिया मामले में राजस्थान पत्रिका को उच्च न्यायालय से मिले सेटबैक का है। उच्चतम न्यायालय द्वारा स्पष्ट आदेश है कि समाचार पत्रों व संस्थाओं को पत्रकारों व अन्य कर्मचारियों को मजीठिाया वेज बोर्ड के अनुसार वेतन, भत्ते व अन्य लाभ देने ही होंगे, लेकिन यह संस्थान अब बेशर्मी पर उतारू हो गया है।
इस संस्थान ने मजीठिया वेज बोर्ड की अनुशंसाओं को लागू करने में तरह—तरह की बहानेबाजी और इसके अनुसार वेतन लाभ की मांग करने वाले कर्मचारियों का उत्पीड़न शुरू कर दिया है।
न्यायालयों द्वारा कर्मचारियों के पक्ष में आदेश आए हैं तो यह संस्थान कानूनी प्रक्रिया का दुरुपयोग करते हुए इन आदेशों को अटकाने और लटकाने का प्रयास कर रहा है।
हाल ही मद्रास उच्च् न्यायालय ने इस संस्थान द्वारा उत्पीड़नात्मक कार्रवाई के तहत किए गए स्थानांतरण पर अंतरिम रोक लगाते हुए इस अवधि का वेतन भुगतान का आदेश दिया तो यह उस आदेश को ही मानने से इनकार कर रहा है।
   
बता दें कि पत्रकारिता जगत में काला अध्याय शुरू करते हुए राजस्थान पत्रिका ने मजीठिया वेज बोर्ड की अनुशंसाओं को लागू कर वेतन व लाभ मांगने वाले कर्मचारियों का न केवल उत्पीड़न शुरू कर दिया है, बल्कि संपादकीय विभाग में पत्रकार के रूप में कार्य कर रहे कर्मचारियों को कागजी हेरफेर के माध्यम से गैरपत्रकार साबित करने की कोशिश में जुटा है।
इस संस्थान ने बदले की कार्रवाई करते हुए ऐसे पत्रकारों व कर्मचारियों का स्थान दूरदराज क्षेत्रों में किया है, ताकि कर्मचारी परेशान होकर नौकरी छोड़ दें। 
   
वर्ष 2018 में राजस्थान पत्रिका के चेन्नई संस्करण के कार्यालय में संपादकीय व अन्य विभागों के 5 व्यक्तियों श्रमायुक्त के यहां आवेदन देकर गुहार लगाई कि उच्चतम न्यायालय के आदेश के अनुपालन में उन्हें मजीठिया आयोग के वेतन व अन्य लाभ दिलाए जाएं। उच्चतम न्यायालय द्वारा यथाशीघ्र दावे का निपटारा कर समाचार संस्थाओं से पत्रकारों व कर्मचारियों को मजीठिया लाभ दिलाने के स्पष्ट आदेश के बावजूद विभाग इस आवेदन पर दो माह तक कुंडली मारकर बैठा रहा।
इस बीच राजस्थान पत्रिका प्रबंधन को इस बात की भनक लग गई। दावा करने वाले पत्रकारों व कर्मचारियों की हिम्मत तोडऩे के लिए प्रबंधन ने मार्केटिंग विभाग के दो कर्मचारी राजीव कुमार ईश्वर और रूपाराम जांगिड़ का तबादला कर दिया। अपने स्थानांतरण को राजस्थान पत्रिका की उत्पीड़नात्मक कार्रवाई बताते हुए दोनों ने श्रमायुक्त के यहां आवेदन दिया, जिस पर मामले की सुनवाई पूरी होने तक स्थानांतरण पर रोक लगाने का आदेश जारी हुआ।
हालांकि श्रमायुक्त के इस आदेश को दरकिनार करते हुए संस्थान ने स्थानांतरण रद्द नहीं किया। पत्रिका प्रबंधन की उत्पीड़नात्मक कार्रवाई पर रोक लगाने के लिए दोनों श्रम न्यायालय पहुंचे, लेकिन वहां भी राहत नहीं मिली। इसके बाद दोनों ने मद्रास उच्च न्यायालय में याचिका लगाकर स्थानांतरण को चुनौती दी।
सुनवाई के बाद उच्च न्यायालय ने स्थानांतरण आदेश पर फौरी रोक लगाते हुए दोनों कर्मचारियों को इस अवधि का वेतन भुगतान करने के आदेश दिए। साथ उच्च न्यायालय ने श्रम न्यायालय को तीन माह के भीतर मामले का निस्तारण करने का आदेश दिया।
उच्च न्यायालय का आदेश लेकर जब राजीव कुमार ईश्वर और रुपाराम जांगिड़ राजस्थान पत्रिका के चेन्नई कार्यालय आए तो स्थानीय प्रबंधन ने यह कहकर पल्ला झाड़ लिया कि उन्हें इस संबंध में जयपुर मुख्यालय से अभी तक कोई निर्देश नहीं मिले हैं।
प्रबंधन अब येनकेन प्रकारेण मामले को टरकाना में जुटा है और उच्च न्यायालय के आदेश की अवमानना कर रहा है। दोनों ने इस मामले में कोर्ट में अवमानना याचिका दायर कर दी है, जिसपर पोंगल बाद सुनवाई की सम्भावना है। 
बता दें कि मजीठिया वेजबोर्ड की सिफारिशों को लागू करने के लिए केंद्र सरकार ने अधिसूचना जारी की थी और लंबी सुनवाई के बाद सर्वोच्च न्यायालय के तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश सदाशिवम की पीठ ने अखबार मालिकों को मजीठिया वेज बोर्ड सिफारिशों को तत्काल प्रभाव से लागू करते हुए इसका लाभ कर्मचारियों को देने का आदेश दिया था।
बावजूद इसके अखबार मालिकानों ने सिफारिशों को लागू नहीं किया। वर्ष 2014 में पत्रकार व अखबार कर्मियों ने सिफारिश को लागू न करने पर सर्वोच्च न्यायालय में एक याचिका भी दायर की थी, जिस पर सुनवाई करते हुए न्यायमूर्ति रंजन गोगोई की पीठ ने पुन: आदेश दिया कि अखबार मालिकों को पत्रकारों व कर्मचारियों को मजीठिया वेजबोर्ड का लाभ देना होगा। 
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