
आईएनएन/चेन्नई, @Infodeaofficial
तमिलनाडु में उच्च शिक्षा के लिए देश के विभिन्न हिस्से से विद्यार्थी यहां के शैक्षणिक संस्थानों में पढऩे आते हैं। यहां के शिक्षण संस्थानों की महत्ता काफी ज्यादा होने के कारण तमिलनाडु के अलावा देश के विभिन्न राज्यों से यहां विद्यार्थी उच्च शिक्षा के लिए तमिलनाडु को अपना विकल्प चुनते हैं।
इन संस्थानों में दाखिला मिलना आसान नहीं है। बाबजूद इसके इन संस्थानों में दाखिला दिलाने का लोभ देकर कई शातिर लोग विद्यार्थियों और उनके अभिभावकों को बेवकुफ बनाकर उनसे अच्छी खासी रकम एंठ लेते हैं और पैसे खर्च करने के बावजूद भी उन विद्यार्थियों को इन संस्थानों में दाखिला नहीं मिलता।
वीआईटी, एसआरएम, हिंदुस्तान, सत्यभामा, लोयला आदि ऐसे शिक्षण संस्थान है जहां हर साल दाखिले के लिए विद्यार्थियों की भीड़ उमड़ती है। इसी का फायदा उठाकर कुछ लोग विद्यार्थी और अभिभावकों को दाखिला दिलाने के नाम पर धोखाधड़ी करते हैं। हालांकी इस संबंध में शिक्षण संस्थानों की तरफ से कई बार नोटिस जारी किया गया है कि ऐसे फ्रॉड से बचकर रहें। वहीं इन संस्थानों की शिकायत पर कई बार ऐसे फ्रॉड पुलिस के हत्थे भी चढ़े हैं लेकिन हर साल ये फ्रॉड अपने काम करने के तरीके में बदलाव करते रहते हैं, जिससे पुलिस का इनतक पहुंचना काफी मुश्किल होता है।
डिजिटल तकनीक का कर रहे इस्तमाल
इन फ्राड के पास जाने कैसे ये डेटा उपलब्ध हो जाते हैं, जिससे यह पता चल जाता है कि कौन सा विद्यार्थी किस कोर्स के लिए किस कॉलेज में दाखिला लेने के लिए फार्म भरा है। उसके दसवीं और बारहवीं में अंक कितने हैं। यही नहीं इन लोगों के पास फार्म में दिए गए उनके नम्बर भी होते हैं जिसपर फोन कर ये लोग खुद को उस शिक्षण संस्थान का कर्मचारी बताकर उनसे बातचीत करते है और कुछ रकम बताकर उस संस्थान में दाखिले का दावा करते हैं।
कई विद्यार्थी और अभिभावक इनके जाल में फस जाते हैं और उनके पास रकम और सर्टिफिकेट जमा करा देते हैं। जिसके बाद ये लोग अपनी दुकान समेट उस ऑफिस से फरार हो जाते हैं। हर बार एसे लोग अलग-अलग जगह पर अपनी ऑफिस खोलते हैं और लोगों को चकमा बनाते हैं। जबतक इस बात की शिकायत पुलिस में की जाती है आरोपी मौके से फरार हो जाते हैं।
गौरतलब है कि चेन्नई समेत कई अन्य जगहों में दाखिले के नाम पर ऐसे फ्राड पहले भी हुए हैं। जिसमें पुलिस को कई बार कामयाबी भी मिली है पर इन घटनाओं में पर स्थाई रूप से लगाम नहीं लगाया जा सका है। ऐसे मामलों में जरूरी है कि अभिभावक, संस्थान और पुलिस तीनों सर्तक रहे और ऐसा कुछ भी होने पर तुरंत संबंधित संस्थान और पुलिस थाने को सूचित करें।
ऐसा करके ही इन धोखाधड़ी के मामलों पर रोक लगाई जा सकती है। इनसबमें सबसे ज्यादा नुकसान उन विद्यार्थियों का होता है जो उस संस्थान में पढऩे का सपना सजोए रहते हैं और उनका पैसा व साल दोनों बर्बाद हो जाता है।
शिक्षित शातिर अपराधी से रहे सावाधान

ऐसे काम में जो लोग शामिल हैं वह शिक्षित अपराधी है जिन्हें हर प्रकार की तकनीक की जानकारी होती है। इसलिए ये लोग अभिभावकों को बेवकुफ बनाने में कामयाब होते हैं।
वीआईटी की तरफ से मै अभिभावकों और विद्यार्थियों को यही सलाह दुंगा कि वह सीधे कॉलेज में आकर दाखिले की प्रक्रिया में हिस्सा लें। कॉलेज कभी भी आपसे नकदी नहीं मांगता हम सारा काम ड्राफ्ट और चेक में करते हैं। जी. विश्वनाथन, संस्थापक वीआईटी
फर्जी वेबसाइट बना करते हैं धांधली

फर्जी वेबसाइट तैयार कर दाखिले की प्रक्रिया में फ्राड गैंग खासकर के वैसे विद्यार्थियों को फसाते हैं जिनके कम अंक होते हैं या फिस जिन्हें उम्मीद नहीं होती कि उन्हें बड़े संस्थानों में दाखिला मिल जाएगा।
फर्जी वेबसाइट में ये फार्म के माध्यम से सारी जानकारी एकत्र कर लेते हैं और अभिभावकों को ठगते हैं। हर अभिभावक को ऐसे फर्जीवाड़े से बचने के लिए सीधे शिक्षंण संस्थान से संपर्क में रहना चाहिए। टी. आर. पारीवेंदर, संस्थापक, एसआरएम ग्रुप
फर्जीवाड़े से व्यवसाय व शिक्षण संस्थानों को हो रहा नुकसान

दाखिले में फर्जीवाड़े से अधिकांश विद्यार्थियों को उनका मनचाहा विषय नहीं मिल पाता और शिक्षंण संस्थानों में दाखिले में कमी देखने को मिल रही है।
एजुकेशन कंसलटेंट विद्यार्थियों को विभिन्न प्रकार के विकल्प देकर उन्हें बेहतर शिक्षण संस्थानों में दाखिला दिलाते हैं, नहीं तो विद्यार्थी ट्रेड के साथ बह जाते हैं अपनी रुचि के अनुसार नहीं।
जैसे अगर एक साल कम्पयूटर साइंस की मांग है तो अधिकांश विद्यार्थी उसी विषय को चुनते हैं। इस फर्जीवाड़े की वजह से हम जैसे पेशेवर कंसलटेंट को भी शक की नजर से देखते हैं। वहीं कई शिक्षण संस्थानों में दाखिले में पिछले कुछ सालों में गिरावट देखने को मिली है। संजीव सिंह, संस्थापक, 360 सोल्युशन, एजुकेशन कंसलटेंसी
समय और पैसे का होता है नुकसान

दाखिले में फर्जीवाड़े की वजह से कई बार विद्यार्थियों का भविष्य अधर में लटक जाता है। कइयों का साल बर्बाद होता है तो कइयों को अपना मनचाहा विषय नहीं मिल पाता है।
मेरी बेटी के साथ भी कुछ ऐसी ही घटना घटी, जिसमें एमबीबीएस में सीट दिलाने के नाम पर हमसे पैसे एठ लिए गए लेकिन दाखिला नहीं मिला। अंत में हार कर मुझे अपनी बेटी का दाखिले अगले साल एमबीबीएस के बजाय बीडीएस में कराना पड़ा। वीना शर्मा, पीडि़त अभिभावक