बढ़ती बेरोजगारी सरकार के लिए बड़ी चुनौती खड़ी करने जैसी
भरत संगीत देव, आईएनएन, नई दिल्ली ; @infodeaofficial;
आज देश की संसद से लेकर देश के कोने-कोने में बेरोजगारी को लेकर लोगों ने यहाँ तक की मोदी जी ने भी पकौड़े बेचने वाले को एक रोजगार बताकर देश में निराशा का माहौल बना दिया है। देश के युवा वर्ग, नेताओं और अन्य लोगों ने भी इस बात को लेकर काफी रोष व्यक्त किया, लेकिन सच्चाई यह है कि बेरोजगारी की समस्या देश में अचानक प्रकट नहीं हुई बल्कि यह दशकों से सरकारी नीतियों का परिणाम है। वर्तमान सरकार भी इसी दौर में है, आपको बता दूँ कि 2013 में चुनावी रैलियों के दौरान मोदी जी ने देश में विकास और रोजगार देने को मु य मुद्दा बनाया और लगभग हर सभा में हर साल 1-करोड़ लोगों को रोजगार देने का वादा किया लेकिन सरकार इसमें पिछले 4 सालों से फिसड्डी साबित हो रही है। 1- करोड़ की जगह कुछ लाख तक सिमट कर रह गया है। 2017 में मात्र 2 लाख 31 हजार, 2015 में लगभग 1 लाख 55 हजार, 2014 में 4 लाख 21 हजार ही जॉब सृजित हुए।
बता दें कि मनमोहन सरकार ने 2009 में ही 10 लाख से अधिक जॉब्स दी थी जो कि मोदी जी के पूरे 5 साल के कार्यकाल में भी स भव होती नजर नहीं आ रही है। जिस प्रकार सरकार रोजगार को लेकर कमजोर दिखाई दे रही है उससे तो यही लगता है कि देश में पहले से रिक्त पदों को ही भर दे तो बहुत बड़ी गनीमत और उपलब्धि होगी मोदी सरकार के लिए लेकिन ऐसा सपने में सोचने और राई का पहाड़ बनाने जैसा प्रतीत होता है। देश में 14 लाख डॉक्टर, 27 लाख अध्यापक, 6 हजार केंद्रीय विश्व विद्यालयों में प्रोफेसरों की जगह खाली पड़़ी हुई है। मोदी सरकार की सभी योजनाएं कमोबेश नागरिकों पर ही केंद्रित है लेकिन अब तक अपने वायदे पूरे करने में विफल रही हंै। हृरुह्र ने भी बताया कि भारत में साल दर साल बेरोजगारी बढ़ती जा रही है। संस्था ने बताया कि इसकी मूल वजह भारत में शिक्षण संस्थान बेरोजगारों की फसल उगाने की फैक्ट्री बन कर रह गए हैं। इसमें कोई दो राय नहीं की सभी को नौकरी नहीं मिल सकती है लेकिन सरकार द्वारा स्वरोजगार के अवसर भी उपलब्ध कराने के लिए किये गए प्रयासों को कागजों में सिमटा कर रखने की बजाय जमीनी स्तर पर लाने का काम करना चाहिए। डिजिटल इंडिया और रोबोटिक तकनीक के माध्यम से युवा वर्ग में नौकरी छिनने डर है, छंटनी होने का डर हमेशा लगा रहता है। उसको भी सरकार को ई- गवर्नेंस के चक्कर में नजरअंदाज नहीं करना चाहिए। साल 2027 तक भारत विश्व में सर्वाधिक श्रम वाला देश होगा। 65 फीसदी युवा वर्ग वाले देश में शिक्षा और कौशल के स्तर पर रोजगार नहीं दे पाना और ऊपर से पकौड़े बेचने जैसी बात वो भी मोदी जी द्वारा कही उचित नही लगती।